उत्तर प्रदेश में धार्मिक लाइन पर चुनाव अभियान हावी है; धार्मिक ध्रुवीकरण सेे राजनीतिक दलों को लाभ

चुनाव के समय अगर कोई एक शब्द बार-बार दोहराया जाता है

Update: 2021-12-25 17:14 GMT

संजय कुमार । चुनाव के समय अगर कोई एक शब्द बार-बार दोहराया जाता है, तो वह है विकास। चुनाव अभियान के दौरान सभी राजनीतिक दल विकास के मुद्दे पर ही लड़ने का दावा करते हैं। पर उत्तर प्रदेश में जो दिख रहा है, वह दावों से एकदम अलग है। सभी राजनीतिक दल अपना आधार बढ़ाने के लिए या तो गठबंधनों पर भरोसा कर रहे हैं या फिर समुदायों को अपने पक्ष में करने के लिए धार्मिक प्रतीकों का सहारा ले रहे हैं। हालांकि, भाजपा पिछले पांच सालोें में योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा किए विकास कार्यों के नाम पर वोट मांगने का दावा कर रही है, लेकिन वह विकास के मुद्दे पर पूरी तरह भरोसा करती नहीं दिखती। इसकी बजाय, वह धार्मिक प्रतीकों और नारों का इस्तेमाल करके हिंदू वोटरों को रिझाने की कोशिश कर रही है, जो अन्य राज्यों की ही तरह यूपी में भी बहुमत में हैं। समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं है और वह मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए प्रतीकों और नारों का इस्तेमाल कर रही है। यूपी की राजनीति में ओवैसी की एआईएमआईएम नई प्रवेशी है, जो मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में करने के लिए धार्मिक लाइन पर अपील कर रही है। अगर भाजपा के लिए हिंदू वोट महत्वपूर्ण हैं तो सपा मुस्लिम वोटों पर निर्भर है। रुहेलखंड और पश्चिमी यूपी में मुस्लिम आबादी का घनत्व बहुत ज्यादा है। रुहेलखंड में मुस्लिम कुल वोटरों का 35% और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 32% हैं। अवध में उनकी संख्या 17% और पूर्वांचल में 16% है। अगर विधानसभा सीटों की संख्या के आधार पर देखें तो 30 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता 40% से अधिक हैं। 43 सीटें ऐसी है, जहां पर मुस्लिम वोटर 30-39% है। 70 अन्य सीटों पर उनकी संख्या 20-29% है। इस तरह कुल मिलाकर 143 सीटों पर मुस्लिम वोटरों की महत्वपूर्ण भूमिका है। 2017 के विधानसभा चुनाव परिणाम दिखाते हैं कि धार्मिक ध्रुवीकरण ने राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाया। जिन सीटों पर मुस्लिम 40 फीसदी से अधिक थे, सपा उन 30 सीटों में से 14 सीटें और 30% वोट पाने में सफल रही। इन सीटों पर ध्रुवीकरण से सपा ने मुस्लिम वोटरों के आकार की तुलना में अधिक सीटें जीतीं। लेकिन, जिन सीटों पर मुस्लिम वोटर 30-39 फीसदी थे, भाजपा वहां पर स्वीप करने में सफल रही। सीएसडीएस द्वारा चुनाव बाद कराए सर्वे के मुताबिक 2014 व 2019 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में हिंदू मतदाताओं ने बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में मतदान किया। 2019 के लोकसभा चुनाव में 59% हिंदुओं ने भाजपा को वोट दिया, जबकि 2017 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 50% हिंदुओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया। यहां तक कि 2007-2012 में हार के बावजूद भाजपा अच्छी संख्या में हिंदू मतों को अपने पक्ष में करने में सफल रही। दूसरी ओर, सपा मुस्लिम मतों को अच्छी संख्या में अपने पक्ष में सफल रही। चुनाव बाद सर्वे के डेटा के मुताबिक सपा करीब 45 से 50 फीसदी मुस्लिम वोट हासिल करती रही, जबकि यह वोट सपा के अलावा बसपा और कांग्रेस में भी विभाजित हुआ। सीएडीएस के सर्वे के अनुमान के मुताबिक यूपी में करीब 25% स्विंग वोटर हैं, जो मतदान से एक-दो दिन पहले ही वोट डालने का निर्णय करते हैं। ये वो वोटर हैं, जो किसी भी दल के प्रति निष्ठा नहीं रखते हैं, लेकिन वे प्रत्याशी व मुद्दे आदि को ध्यान में रखकर वोट देते हैं। इनमें बड़ी संख्या में वोटर उसी दल को वोट देते हैं, जो उन्हें जीतता हुआ दिख रहा हो। धुआंधार प्रचार से राजनीतिक दलों को यह धारणा बनाने में मदद मिलती है कि वे ही चुनाव जीत रहे हैं। डेटा के मुताबिक 41% स्विंग वोटरों ने उसी दल को वोट दिया जो उनकी राय में जीत रही थी, जबकि सिर्फ आठ फीसदी ने उनकी राय में हारने वाले दल को वोट किया।


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