नूपुर को राहत

भाजपा की पूर्व विविदास्पद प्रवक्ता सुश्री नूपुर शर्मा को सर्वोच्च न्यायालय से आज बहुत बड़ी राहत यह मिली है कि उनकी याचिका पर 10 अगस्त को अगली सुनवाई तक उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हो सकती और न ही कोई नया मामला दर्ज करके उन्हें उसकी गिरफ्त में लिया जा सकता है।

Update: 2022-07-20 03:56 GMT

आदित्य चोपड़ा: भाजपा की पूर्व विविदास्पद प्रवक्ता सुश्री नूपुर शर्मा को सर्वोच्च न्यायालय से आज बहुत बड़ी राहत यह मिली है कि उनकी याचिका पर 10 अगस्त को अगली सुनवाई तक उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हो सकती और न ही कोई नया मामला दर्ज करके उन्हें उसकी गिरफ्त में लिया जा सकता है। नूपुर शर्मा ने सर्वोच्च अदालत में फिर से अर्जी दाखिल की थी कि उनके खिलाफ देश के विभिन्न राज्यों में दर्ज सभी एक जैसे मामलों को एक मुश्त करके सभी का तबादला दिल्ली में किया जाये। सुश्री शर्मा की जान-माल के लिए जिस तरह इस्लामी जेहादियों ने खतरा पैदा किया हुआ है वह भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश के लिए खुद ही में गंभीर चिन्ता का सबब है। टी.वी. के एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने इस्लामी हदीसों का हवाला देते हुए पैगम्बर हजरत मोहम्मद की निजी जिन्दगी के बारे में जो कहा था वह काशी विश्वनाथ धाम के ज्ञानवापी परिसर में स्थित मस्जिद में मिले शिवलिंग के बारे में कहे गये शब्दों की प्रतिक्रिया थी। मगर उनके इस कथन पर पूरे देश में मुस्लिम मुल्ला ब्रिगेड और उलेमाओं ने तूफान खड़ा कर दिया और उन्हें 'गुस्ताखे रसूल' कह कर उनका 'सर कलम' के हक में जुलूस निकालने शुरू कर दिये जिनमें 'सर तन से जुदा' के नारे लगाये गये। पहला सवाल तो यही है कि जिस मुल्क में हिंसा भड़काने के विचार फैलाने तक पर प्रतिबन्ध है। उस देश में सरेआम 'सर तन से जुदा' के नारे लगाने वालों की पहचान करके उन्हें अभी तक कानून के हवाले क्यों नहीं किया गया? दूसरा सवाल यह है कि धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटने वाले लोगों ने अभी तक ऐसे जुलूसों की भर्त्सना या निन्दा क्यों नहीं की और ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग क्यों नहीं की और उन्हें सख्त से सख्त सजा देने के लिए जनता को जागरूक क्यों नहीं किया ? लोकतान्त्रिक भारत में यह कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता कि कहीं गौरक्षा के नाम पर मासूम मुसलमानों का कत्ल कर दिया जाये या दूसरी तरफ इस्लाम धर्म के बारे में उसी की हदीसों का हवाला देने वाले का सर कलम करने के फरमान आम मुसलमानों में फैलाये जायें। हमने देखा कि नूपुर का कथित समर्थन करने के नाम पर ही दो मुस्लिम युवकों ने कितनी बेदर्दी से एक हिन्दू कन्हैया लाल की उसकी दुकान में घुस कर उसका छुरों से सर कलम किया और महाराष्ट्र के अमरावती शहर में भी एेसा वाकया एक 'कैमिस्ट' के साथ हुआ। मगर यह जेहादी जुनून अब रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है और नई शक्लों में नमूदार हो रहा है। इनमें से सबसे ताजा फितूर 'गजवा-ए-हिन्द' का है। जिसकी मंजिल पूरे हिन्दोस्तान को 2047 तक इस्लामी मुल्क बनाने की है। जरा इन सिरफिरों को कोई बतलाए कि जो 'गाजी और रहमतुल्लाह अलै' औरंगजेब हिन्दोस्तान की हुकूमत पर गालिब होने के बावजूद न तो हिन्दू संस्कृति का कुछ बिगाड़ सका और न हिन्दोस्तान की मिट्टी की तासीर को बदल सका, फिर भला ये मुल्ला-मौलवी, उलेमा और औलिया पीरों के चिश्ती कहे जाने वाले लोग और उनके हामी इस हिन्दोस्तान का क्या बिगाड़ सकते हैं। यह मुल्क उस बप्पा रावल है जिसने आठवीं सदी के शुरू में ही आज के पाकिस्तान के शहर रावलपिंडी को सैनिक छावनी बना कर हिन्दू कुश पर्वतमाला के पार से आने वाले इस्लामी जेहादियों की सीने छलनी करने के पुख्ता इन्तजाम बांध दिये थे। बेशक उनकी मृत्यु के बाद दसवीं शताब्दी तक अफगानिस्तान तक इस्लाम धर्म का प्रादुर्भाव बढ़ गया और यहां कि बौद्ध व सनातनी हिन्दू जनता मुस्लिम हो गई और बाद में महमूद गजनवी के आक्रमण 1016 के बाद शुरू हुए और बाद में 1192 में मोहम्मद गौरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान को भारत के ही 'जयचन्द' मदद से हराया मगर 'गजवा-ए हिन्द' तब भी मुमकिन नहीं हुआ।संपादकीय :अमृत महोत्सव : दर्द अभी जिंदा है-2अमृत महोत्सवः दर्द अभी जिंदा हैमध्य प्रदेश में लोकतन्त्र जीतासंसद का मानसून सत्रसंसद का मानसून सत्रकर्ज जाल में फंसे राज्यवर्तमान 21वीं सदी में नफरत के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। मगर नूपुर शर्मा की एक प्रतिक्रियात्मक टिप्पणी के बहाने भारत के मुस्लिम समुदाय के लोगों के भीतर जिस तरह का जहर भरने की कोशिशें किसी और ने नहीं बल्कि 'अजमेर शरीफ' के खादिम चिश्ती कर रहे हैं उससे भारत के उन तमाम हिन्दू जियारतियों का भ्रम टूट गया है जो अजमेर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाते हुए मन्नते मांगते थे और चिश्तियों की जमात उन्हें अमन और इंसाफ की नसीहतें दिया करती थी। नूपुर शर्मा के मुद्दे पर सबसे ज्यादा जहर इन्ही चिश्तियों ने उगला है और भारत के हिन्दुओं के विश्वास को हिला कर रख दिया है। जबकि हर इंसाफ पसन्द हिन्दू ने नूपुर शर्मा के बारे में यही कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की प्रवक्ता होने की वजह से उन्हें संयम से काम लेना चाहिए था और अपनी प्रतिक्रिया बिना तैश में आये देनी चाहिए थी। वरना हिन्दोस्तान के लोगों को तो 'वीर हकीकत राय' का इतिहास पता है कि किस तरह एक छोटे से सात-आठ साल के बच्चे हकीकत राय को 'गुस्ताखे खुदा' बता कर लाहौर के काजियों ने उस पर इस्लाम कबूल करने के लिए बेइन्तहा जुल्म ढहाये थे । आ​िखर में जब उसके पिता भागमल खन्ना ने शाहजहां से फरियाद की थी तो शहर के सारे काजियों को किश्ती में बैठा कर उसे नदी में डुबो दिया गया था। मगर वह बादशाही राज था जिसमें नागरिकों के मूल अधिकारों या अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के कोई मायने नहीं थे। भारत को उस दौर से निकले सैकड़ों साल गुजर चुके हैं। मगर चिश्तियों और मुल्ला-मौलवियों व उलेमाओं की जहनियत आज भी नहीं बदली है। धर्मनिरपेक्ष भारत में जिस तरह मुसलमानों का तुष्टिकरण लगातार साठ साल तक होता रहा है उसी का नतीजा है कि बात-बात पर लोकतन्त्र की दुहाई देने वाले और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के कानून का हवाला देने वाले मुस्लिमों के पैरोकार अपने मजहब का मसला उठते ही औरंगजेब के दौर में पहुंच कर उसे 'रहमतुल्ला अलै' कहने लगते हैं और उन मुसलमानों को बरगलाते हैं जो मूल रूप से हिन्दू मां-बापों की औलाद ही रहे हैं और बाद में किसी वजह से मुसलमान बने हैं। असलियत में तो भारत के मुसलमान 'हिन्दू-मुस्लिम' ही हैं। मगर नूपुर ने क्या कमाल कर दिया!''एक जरा सी बात पे बरसों के याराने गयेचलो अच्छा हुआ, कुछ लोग तो पहचाने गये।

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