राहत और मनमानी: जनता से रिश्ता

चरणबद्ध तरीके से पूर्णबंदी हटाने के क्रम में करीब सात महीने बाद अब सिनेमाघर भी खुल गए।

Update: 2020-10-15 02:46 GMT
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चरणबद्ध तरीके से पूर्णबंदी हटाने के क्रम में करीब सात महीने बाद अब सिनेमाघर भी खुल गए। कारोबारी गतिविधियों को लंबे समय तक रोक कर रखने का नतीजा अर्थव्यवस्था पर साफ नजर आने लगा है। इस दृष्टि से सिनेमाघरों और दूसरी गतिविधियों को भी खोलना जरूरी था। मगर कोरोना विषाणु का प्रकोप अभी समाप्त नहीं हुआ है। सिनेमाघर जैसी जगहें ऐसी होती हैं, जहां सैकड़ों लोग देर तक एक बंद वातावरण में साथ बैठते हैं। ऐसे में अगर वहां कोई संक्रमित व्यक्ति पहुंचता है, तो बहुत सारे लोगों के लिए खतरा पैदा कर सकता है। हालांकि प्राथमिक जांच और संक्रमण रोकने संबंधी एहतियाती उपाय किए जा रहे हैं, पर अब तक के अनुभवों से यही जाहिर है कि बुखार नापने, हाथ की सफाई, मुंह ढंकने आदि जैसे उपाय संक्रमण रोकने में पूरी तरह मददगार साबित नहीं हो पाए हैं। इसलिए अनेक देशों में इस महामारी की लहर रह-रह कर उठती रही है। अभी हमारे यहां इसका खतरा कुछ अधिक बना हुआ है। पराली जलाने से वातावरण में धुएं की गाढ़ी परत जमा होने से संक्रमण फैलने की आशंका बढ़ गई है। सर्दी का मौसम शुरू हो रहा है और इस मौसम में हवा पृथ्वी की सतह के निकट संघनित होने लगती है। उस समय कोरोना का कहर बढ़ने का खतरा रहेगा।

जीवन की गतिविधियों को लंबे समय तक रोक कर नहीं रखा जा सकता, इसलिए कामकाज चलते रहने देना जरूरी है। हालांकि सरकारें लगातार हिदायत दे रही हैं कि लोग सावधानीपूर्वक घरों से बाहर निकलें और संक्रमण से बचने के लिए सभी जरूरी उपायों का पालन करें। मगर देखा जा रहा है कि जैसे ही बंदी हटनी शुरू हुई, लोग इस कदर मनमाने ढंग से घरों से बाहर निकलने लगे और बाजारों में भीड़भाड़ बढ़ने लगी, जैसे कोरोना का भय पूरी तरह समाप्त हो गया हो।

शारीरिक दूरी बनाए रखने, मुंह ढंकने जैसे नियमों का पालन करना अब भी जरूरी है, पर लोगों को जैसे इसकी कोई परवाह नहीं रह गई है। सरकारी दफ्तरों आदि में जहां इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है, वहां तो फिर भी लोग मुंह ढंके मिल जाएंगे, पर सामान्य बाजारों में इसका पालन करते कम ही लोग देखे जा रहे हैं। छोटे शहरों-कस्बों में चलने वाले सार्वजनिक वाहनों में सवारियां कोरोना काल से पहले की तरह ही ठूंस कर भरी जा रही हैं। लोग चाट-पकौड़े की दुकानों पर पहले की तरह भीड़ लगाए दिखने लगे हैं। यह सब देखते हुए चिंता बढ़ना स्वाभाविक है।

किसी भी महामारी से तब तक नहीं निपटा जा सकता जब तक कि लोग खुद सावधानी बरतते हुए उससे बचने का प्रयास न करें। बहुत सारी संक्रामक बीमारियां लोगों की मनमानी से फैलती और महामारी का रूप ले लेती हैं। ऐसा भी संभव नहीं है कि प्रशासन हर वक्त लोगों पर नजर रखे और उन्हें मुंह ढंकने, शारीरिक दूरी बनाए रखने जैसे खुद पालन किए जा सकने वाले नियमों को लेकर सख्ती बरते और दंड लगाए। बाजार और सिनेमाघर जैसे स्थान इसलिए खोले गए हैं कि लोगों को सुविधा हो सके और कारोबारी गतिविधियां भी चलती रहें। इसका मतलब यह नहीं कि इस तरह लोगों को मनमानी करने, अपने और दूसरे के जीवन को खतरे में डालने की छूट मिल गई है। जब तक कोरोना की भरोसेमंद दवा नहीं खोज ली जाती, तब तक इस महामारी का खतरा बना रहेगा। ऐसे में लोगों को खुद जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी होगी।

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