साथ ही इस साल तिलहन उत्पादन 3.71 करोड़ टन रह सकता है जो पिछले साल 3.59 करोड़ टन से ज्यादा है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक किसानों को दी जा रही पीएम सम्मान निधि, किसानों के लिए लागू की गई विभिन्न योजनाओं के सफल क्रियान्वयन, कृषि शोध और किसानों के परिश्रम से खाद्यान्न उत्पादन वर्ष-प्रतिवर्ष रिकॉर्ड ऊंचाई बनाते हुए दिखाई दे रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में खाद्य सबसिडी कार्यक्रम गरीब वर्ग को सहारा देते हुए दिखाई दे रहा है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक कार्य पत्र में कहा गया है कि सरकार के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पिछले दशक में देश में जिस तेजी से गरीबी में कमी आ रही थी, उसे अकल्पनीय कोरोना संकट ने बुरी तरह प्रभावित किया और देश के अधिक जनसंख्या वाले बड़े प्रदेशों में गरीबी का स्तर बढ़ गया। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015-16 में भारत में 27.9 फीसदी लोग गरीब थे और इसमें लगातार कमी आती जा रही थी। कोरोना के एक साल ने गरीबी के मामले में देश को कई वर्षों पीछे धकेल दिया। आईएमएफ के कार्यपत्र में कहा गया है कि खाद्य सबसिडी कार्यक्रम कोविड-19 से प्रभावित वित्तीय वर्ष 2020-21 को छोड़कर अन्य वर्षों में गरीबी घटाने में सफल रहा है। कार्य पत्र में अमेरिकी शोध संगठन प्यू रिसर्च सेंटर के द्वारा प्रकाशित की गई उस रिपोर्ट को खारिज किया गया है जिसमें कहा गया है कि कोरोना महामारी ने भारत में साल 2020 में 7.5 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है। आईएमएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्यू का अध्ययन चलन से बाहर हो चुके संदर्भ पर आधारित था। कहा गया है कि यद्यपि 2020-21 के दौरान करीब 1.5 से 2.5 करोड़ लोग गरीबी में आ गए थे, लेकिन 80 करोड़ लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली से खाद्यान्न के मुफ्त वितरण की व्यवस्था ने बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी से उबारने में मदद की। गौरतलब है कि कोरोना महामारी शुरू होने के बाद मोदी सरकार ने अप्रैल 2020 में गरीबों को मुफ्त राशन देने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) की शुरुआत की थी। गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत लाभार्थी को उसके सामान्य कोटे के अलावा प्रति व्यक्ति पांच किलो मुफ्त राशन दिया जाता है।
पीएमजीकेएवाई के तहत अप्रैल 2020 से लेकर इस साल मार्च 2022 तक सरकार 2.60 लाख करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। इस साल अप्रैल से सितंबर तक 80 करोड़ जनता को मुफ्त में राशन देने से सरकार पर 80 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ आएगा। इस प्रकार खाद्य सुरक्षा से जुड़ी दुनिया की सबसे बड़ी योजना पर सरकार इस साल सितंबर तक 3.40 लाख करोड़ रुपए खर्च कर देगी। खास बात है कि एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड स्कीम के तहत कोई भी व्यक्ति देश के किसी कोने में इस योजना का लाभ ले सकता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि प्रचुर खाद्यान्न उत्पादन के कारण मुफ्त खाद्यान्न की आपूर्ति से गरीबों को राहत मिली है और करोड़ों लोगों को गरीबी के नए दलदल में फंसने से बचाया गया है। यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि जिस तरह कोविड-19 की आपदाओं के बीच भारत ने वैश्विक स्तर पर दुनिया के जरूरतमंद देशों को खाद्यान्न की आपूर्ति में अहम भूमिका निभाई है, उसी तरह एक बार फिर रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते भारत से गेहूं सहित अन्य खाद्यान्नों की मांग कर रहे जरूरतमंद देशों को खाद्यान्नों के अधिक निर्यात बढ़ाने का मौका मुठ्ठियों में लिया जा रहा है। चूंकि रूस और यूक्रेन मिलकर वैश्विक गेहूं आपूर्ति के करीब एक-चौथाई हिस्से का निर्यात करते हैं, लेकिन युद्ध के चलते इन देशों से गेहूं की वैश्विक आपूर्ति रुक गई है। ऐसे में 24 फरवरी के बाद भारत से गेहूं निर्यात में तेज इजाफा हो रहा है। स्थिति यह भी है कि अफ्रीका, पश्चिम एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के गेहूं आयात करने वाले अधिकांश देश जो गेहूं खरीदने के लिए रूस-यूक्रेन क्षेत्र पर निर्भर थे, उन्होंने अपनी जरूरत के लिए भारत को आपूर्ति आदेश भेजना शुरू कर दिए हैं। ऐसे में रूस और यूक्रेन की अनुपस्थिति की भरपाई भारत काफी हद तक कर रहा है।
इस समय भारत ही एकमात्र देश है जिसके पास बड़ी मात्रा में अधिशेष गेहूं भंडार है। आसान उपलब्धता के अलावा भारत को इन देशों को गेहूं की आपूर्ति करने का भौगोलिक लाभ भी हासिल है। उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश आदि लगातार निर्यात बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें घरेलू बाजार से काफी अधिक हैं। ऐसे में निर्यातक किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य की तुलना में ऊंचे दाम पर गेहूं खरीद रहे हैं। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद करती है। चूंकि घरेलू गेहूं उत्पादन में भी कोई कमी आने की संभावना नहीं है, ऐसी स्थिति ने गेहूं और चावल को लाभप्रद वाणिज्यिक फसल बना दिया है जिस पर उत्पादकों को तयशुदा अच्छी कीमत मिलती है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत से 2021-22 में लक्ष्य से भी अधिक 75 लाख टन से अधिक गेहूं का निर्यात हो चुका है। साथ ही भारत का गेहूं निर्यात वित्तीय वर्ष 2022-23 में दोगुने से अधिक के रिकॉर्ड स्तर को छू सकता है। हम उम्मीद करें कि यूक्रेन संकट के बीच खाद्यान्न प्रचुरता के कारण जहां पीएमजीकेएवाई के तहत इस साल अप्रैल से सितंबर तक 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त में राशन देने से उन्हें महंगाई से राहत मिलेगी, साथ ही भारत मौजूदा खाद्यान्न निर्यात अवसरों का लाभ लेकर अधिशेष खाद्यान्न के लिए नियमित और विश्वसनीय अन्न निर्यातक देश के रूप में उभरने का मौका मुठ्ठियों में लेते हुए दिखाई देगा।
डा. जयंतीलाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री