सजगता का समय

जब कोरोना का खतरा फिर बढ़ चला है, तब प्रधानमंत्री के स्तर पर चिंता स्वाभाविक ही नहीं,

Update: 2021-03-18 04:30 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | जब कोरोना का खतरा फिर बढ़ चला है, तब प्रधानमंत्री के स्तर पर चिंता स्वाभाविक ही नहीं, आवश्यक भी है। प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्रियों की बैठक सदा सकारात्मक होती है और इससे देश के कोरोना योद्धाओं का मनोबल मजबूती पाता है। प्रधानमंत्री ने सही कहा है कि घबराने की जरूरत नहीं है, बस हमें 'कड़ाई भी और दवाई भी' की नीति पर काम करना है। उनका यह कहना भी बहुत मायने रखता है कि कोरोना से लड़ाई में हमें कुछ आत्मविश्वास मिला है, लेकिन यह अति आत्मविश्वास में नहीं बदलना चाहिए। दरअसल, यही हुआ है, जिसकी ओर प्रधानमंत्री और अनेक विशेषज्ञ इशारा कर रहे हैं। लोगों की थोड़ी सी लापरवाही खतरे को बढ़ाती चली जा रही है। पिछले महीने ही 9-10 फरवरी को ऐसा लगने लगा था कि अब कोरोना जाने वाला है, नए मामलों की संख्या 11,000 के पास पहुंचने लगी थी, लेकिन अब नए मामलों की संख्या 29,000 के करीब है। यह सही है, 9-10 सितंबर 2020 के आसपास हमने कोरोना का चरम देखा था, जब मामले रोज 97,000 के पार पहुंचने लगे थे। इसमें दुखद तथ्य यह है कि तब भी महाराष्ट्र सबसे आगे था और आज भी 60 प्रतिशत से ज्यादा मामले अकेले इसी राज्य से आ रहे हैं। लॉकडाउन तो तात्कालिक आपात उपाय है, महाराष्ट्र के लोगों को लंबे समय तक के लिए अपनी आदतों में परिवर्तन लाना पड़ेगा। देश के लिए यह सोचने और स्थाई सुधार का समय है, ताकि पिछले साल की तरह कोरोना संक्रमण वापसी न कर सके। आंखें खोलकर आंकड़ों को देखना होगा। पिछले सप्ताह से तुलना करें, तो इस सप्ताह कोरोना मामलों में 40 प्रतिशत से ज्यादा वृद्धि हुई है, जबकि मरने वालों की संख्या में 35 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा। संक्रमण भी बढ़ा है और मौत का खतरा भी, तो फिर हम क्यों कोरोना दिशा-निर्देशों की पालना में लापरवाही बरत रहे हैं। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के सामने सही सवाल रखा है, 'यह चिंता की बात है कि आखिर कुछ इलाकों में जांच कम क्यों हो रही है? कुछ इलाकों में टीकाकरण कम क्यों हो गया है? मेरे ख्याल से यह समय गुड गवर्नेंस को परखने का है।' अब अपने-अपने स्तर पर मुख्यमंत्रियों को ज्यादा सचेत होकर लोगों को सुरक्षित करना होगा। कोरोना से लड़ाई में किसी कमी के लिए केवल केंद्र सरकार के फैसलों को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जिन राज्यों ने अच्छा काम किया है, उन्हें अपने काम को अभी विराम नहीं देना चाहिए और जिन राज्यों में प्रशासन लापरवाह हुआ है, उनकी नींद टूटनी चाहिए। अभी लापरवाही किसी अपराध से कम नहीं है। यह सूचना तो और त्रासद है कि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में 10 फीसदी से ज्यादा वैक्सीन बर्बाद हो रही है। कौन लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं, यह तय करते हुए कमियों को दूर करना होगा। यह अफसोस की बात है कि मुख्यमंत्रियों को रोज शाम दवा की निगरानी के लिए कहना पड़ रहा है। एक बड़ी चिंता गांवों में कोरोना संक्रमण रोकने की है। तुलनात्मक रूप से गांव अभी सुरक्षित हैं, तो यह किसी राहत से कम नहीं। गांवों में यह स्थिति बनी रहे, वे ज्यादा सुरक्षित हों, चिकित्सा सेवा के मामले में संपन्न हों, तो देश को ही लाभ होगा। कोरोना की नई लहर के एक-एक वायरस को उसके वर्तमान ठिकानों पर ही खत्म करना होगा, ताकि व्यापक लॉकडाउन की जरूरत न पड़े।


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