यह निष्कर्ष ताज़ा शोधात्मक विश्लेषणों से स्थापित हो चुका है। बेशक प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन, 17 सितंबर, एक बहाना हो सकता है, लेकिन टीकाकरण पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। यह देश के प्रधानमंत्री को शुभकामनाएं देने की अभिव्यक्ति हो सकती है। कमोबेश हमारे संस्कार दुआ देने के हैं, नफरत के नहीं। अलबत्ता टीकाकरण देश के नागरिकों में ही हुआ है और उन्हीं के सहयोग से यह कीर्तिमान हासिल किया गया है। ऐसे ऐतिहासिक मौके पर टीके के आविष्कारक वैज्ञानिकों और टीकाकरण के विराट मिशन में शामिल डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों को सलाम करना चाहिए। कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों टीकों के जरिए ही 2.5 करोड़ खुराकों का असंभव-सा लक्ष्य पूरा हुआ है। रूसी टीके स्पूतनिक-वी की खुराकें एक फीसदी से भी कम लोगों ने ली हैं। फाइज़र और जॉनसन आदि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के टीके फिलहाल भारत में उपलब्ध नहीं हैं, लिहाजा भारतीय कंपनियों के निरंतर प्रयासों को भी शाबाशी देनी चाहिए। दुनिया के करीब 150 देशों की आबादी भी 2 करोड़ नहीं है और भारत ने एक ही दिन में 2.5 करोड़ से ज्यादा खुराकें अपने नागरिकों को, अधिकांशतः मुफ्त, दी हैं। इससे बड़ा और मानवीय कीर्तिमान क्या हो सकता है? दरअसल भारत की पुरानी छवि गरीबी, अशिक्षा, अज्ञानता, कुपोषण, अभाव और कम स्वास्थ्य सुविधाओं की रही है, लेकिन अब हमने कोरोना महामारी का डटकर मुकाबला किया है। अब भी तीसरी लहर की आशंकाएं बरकरार हैं। अब भी संक्रमण मौजूद है, लेकिन औसत आदमी में टीकाकरण के बाद एंटीबॉडी, यानी प्रतिरोधक क्षमता, में काफी सुधार हुआ है, नतीजतन संक्रमण के आंकड़े लगातार घट रहे हैं। हम मानते हैं कि 2.5 करोड़ टीकाकरण की निरंतरता असंभव है, क्योंकि टीके आसमान से नहीं टपकते। उनके उत्पादन की क्षमताएं निर्धारित हैं। फिर भी 18 सितंबर की रात्रि 10 बजे तक, एक ही दिन में, 84 लाख से अधिक लोगों में टीकाकरण किया गया है। टीकाकरण पर 'बुखार' महसूस करने वाले आत्ममंथन करें कि कोरोना के इस भयावह दौर में, यदि, वे सरकार में होते, तो देश के हालात क्या होते?
कमोबेश राष्ट्रीय मुद्दों पर दूसरे की पीठ थपथपाना भी सीखना चाहिए। आलोचना के कई और विषय हो सकते हैं। अब यह स्पष्ट होने लगा है कि 31 दिसंबर, 2021 तक 108 करोड़ खुराकें देने का राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। सबसे बड़ा हासिल तो यह रहा कि कर्नाटक, बिहार, उप्र, मप्र और गुजरात राज्यों में सर्वाधिक टीकाकरण किया गया। संयोग है कि सभी राज्यों में भाजपा और एनडीए की सरकारें हैं। साफ है कि औसतन गरीब और रूढि़वादी राज्यों में भी टीके के प्रति आम आदमी के पूर्वाग्रह और शक टूटे हैं। उसे भरोसा है कि टीका ही महामारी के दौरान उसकी जि़ंदगी का अकाट्य सुरक्षा-कवच है। इसके बावजूद हमें यह नहीं भूलना है कि संक्रमण अभी भी जारी है। रोज तीस-पैंतीस हजार नए केस आ रहे हैं। हालांकि ये केस पहले से काफी कम हैं, लेकिन अभी संतोष कर लेने का वक्त नहीं है। जब तक संक्रमण पूरी तरह नहीं थम जाता, तब तक हमें सचेत रहना है। तीसरी लहर की आशंकाएं भी बराबर बनी हुई हैं। जो लोग टीका लगाने से रह गए हैं, उन्हें जल्द से जल्द टीका लगाना चाहिए तथा लोगों को कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन करना चाहिए। थोड़ी सी ढील भी भयंकर साबित हो सकती है। इसलिए हमें पहले की तरह सावधानी बरतनी है।