कीर्तिमान की ओर

किसी भी क्षेत्र में, खासकर खेलों में कीर्तिमान बनाने के लिए पूरी लगन, समर्पण, अपने कौशल को निरंतर निखारते रहने की जरूरत होती है।

Update: 2021-03-15 02:25 GMT

किसी भी क्षेत्र में, खासकर खेलों में कीर्तिमान बनाने के लिए पूरी लगन, समर्पण, अपने कौशल को निरंतर निखारते रहने की जरूरत होती है। वह भी जब कोई खिलाड़ी ऐसे खेल में अपनी काबिलीयत साबित करने के लिए संघर्ष कर रहा हो, जिसे दर्शकों, प्रायोजकों, सरकारी महकमों का समुचित समर्थन हासिल न हो, तो उसकी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। एक ऐसे वक्त में जब क्रिकेट का मतलब सिर्फ पुरुषों का खेल समझा जाता था और उसी के प्रोत्साहन, प्रश्रय पर सारा ध्यान केंद्रित हुआ करता था, तब भारतीय महिला क्रिकेट टीम को मिताली राज जैसी खिलाड़ियों ने अपने दम पर पहचान दिलाई। मिताली ने अब अपने दम पर कीर्तिमान भी बना डाला है।

उन्होंने अपने अब तक के खेल जीवन में दस हजार से अधिक रन बना लिए हैं। मिताली से कुछ ही आगे इंगलैंड की शार्लोट एडवर्ड्स का रिकार्ड है। शार्लोट अब हर तरह के क्रिकेट से संन्यास ले चुकी हैं। इस तरह मिताली के उनसे आगे निकलने की उम्मीद स्वाभाविक है। इसके अलावा भी मिताली के नाम कई रिकार्ड दर्ज हैं, जैसे वे एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में करीब सात हजार रन बनाने वाली एकमात्र खिलाड़ी हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा दो सौ बारह वनडे खेलने का रिकार्ड भी उन्हीं के नाम है।
इन कीर्तिमानों के बीच सबसे सराहनीय बात यह है कि मिताली ने एक ऐसे समय में क्रिकेट खेलना शुरू किया, जब महिला क्रिकेट को कोई अहमियत नहीं दी जाती थी। न तो उसके लिए प्रशिक्षक मिलते थे, न प्रायोजक, न दर्शक। क्रिकेट को सबसे अधिक कमाई वाला खेल माना जाता है, फिर भी महिला क्रिकेट को कहीं से प्रोत्साहन न मिल पाना, एक तरह से महिला खिलाड़ियों की क्षमता पर अविश्वास ही था।
पर मिताली जैसी खिलाड़ियों ने अपनी जिद और कौशल से लोगों को मानने पर मजबूर कर दिया कि उनमें भी दुनिया जीतने का दम है। हालांकि ऐसा नहीं कि दुनिया के अन्य देशों में महिला क्रिकेट टीमें नहीं थीं, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका की महिला क्रिकेट टीमें पूरे दमखम के साथ मैदान में थीं, पर भारत में महिला खिलाड़ियों के हुनर को बहुत बाद में पहचाना गया। खासकर दो साल पहले इंगलैंड में हुए विश्वकप में जब महिला क्रिकेट का टेलीविजन पर प्रसारण हुआ और दर्शकों ने बढ़चढ़ कर उसमें दिलचस्पी दिखाई, तब प्रायोजकों और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भरोसा हो गया कि केवल पुरुष टीम नहीं, महिला टीम को भी बराबरी से प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
हमारे देश और समाज में यह कोई पहली बार नहीं था कि महिला खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों से कमतर आंका जा रहा था और उनके जरूरी साजोसामान, प्रशिक्षण आदि को लेकर कंजूसी या फिर हिचक देखी जाती थी। हालांकि तुलनात्मक रूप से देखें तो पुरुष टीम में कई खिलाड़ी मिताली और अन्य महिला खिलाड़ियों से पीछे नजर आएंगे, पर जब भी क्रिकेट की बात होती है, पुरुष टीम की उपलब्धियों को ही ऊपर रखा जाता है।
इसीलिए मिताली ने एक बार कहा भी था कि पुरुष टीम की अपनी क्षमता है और हमारी अपनी, उनसे तुलना करने के बजाय हमारी क्षमता को केंद्र में रख कर हमारे बारे में बात की जानी चाहिए। यही बेबाकपन, साहस और अपने को साबित करने की जिद मिताली को इस मुकाम तक लेकर आई है। पिछले करीब दो दशक तक लगातार खेलते रहना और अपनी क्षमता को कहीं कम न होने देना भी उनका बड़ा हासिल है। उनके कीर्तिमान से निस्संदेह देश का मान बढ़ा है।

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