आरबीआई : भावी पीढ़ियों के लिए जरूरी है वसीयत

इसके अलावा, जब भी कोई व्यक्ति नई संपत्ति खरीदता है या उनकी वित्तीय और गैर वित्तीय संपत्ति में परिवर्तन होता है; वह अपनी वसीयत की आय को बदल सकता है।

Update: 2021-11-18 01:53 GMT

चार साल पहले भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की 2017 की 'इंडियन हाउसहोल्ड फाइनेंस सर्वे' रिपोर्ट में बताया गया था कि औसत भारतीय परिवार के पास अपनी संपत्ति का 84 फीसदी रियल एस्टेट और अन्य भौतिक सामान में, 11 फीसदी सोने में और शेष पांच फीसदी वित्तीय संपत्ति में है। यहां तक कि ज्यादा बैंक खाते खुलने और म्यूचुअल फंड, बीमा, डाकघर बचत और बैंक जमा जैसे वित्तीय साधनों की लोकप्रियता बढ़ने के बावजूद वित्तीय परिसंपत्तियों में भी धीमी वृद्धि हुई है।

कार्वी प्राइवेट वेल्थ द्वारा की गई सालाना इंडिया वेल्थ रिपोर्ट से पता चलता है कि वित्तीय परिसंपत्तियों में निवेश का अनुपात पांच साल पहले के 57.25 फीसदी के मुकाबले 2019 में बढ़कर 61 फीसदी हो गया। इससे यह भी निष्कर्ष निकला कि इसी अवधि में भौतिक संपत्ति (रियल एस्टेट और सोना) का हिस्सा घट रहा था। यह जानना महत्वपूर्ण है कि भारतीय अपनी बचत और निवेश के पसंद को भौतिक और वित्तीय परिसंपत्तियों में विस्तारित कर रहे हैं।
आय में वृद्धि और संपत्ति के अधिग्रहण के साथ भावी पीढ़ियों के लिए इसे बनाए रखने और प्रबंधित करने की जिम्मेदारी आती है। यहीं पर अधिकांश लोग गलती करते हैं, वे अपनी विरासत छोड़ने की स्पष्ट योजना नहीं बनाते। बीते वर्षों में, विशेष रूप से कोविड से संबंधित अप्रत्याशित और असामयिक मौतों के चलते कई परिवारों के लिए धन के बावजूद उसे हासिल कर पाना मुश्किल हो गया, जो उनके प्रमुख अर्जक या परिवार के मुखिया के पास था।
एक वसीयत या कानूनी दस्तावेज बनाना, जिसमें बताया गया हो कि कोई अपनी वित्तीय और अन्य संपत्तियों को कैसे वितरित करना चाहता है, हमारे लिए पूरी तरह से नई बात है। इसके अलावा, हमारे समाज में एक अंधविश्वास है कि वसीयत लिखने वाले व्यक्ति की जल्दी मृत्यु हो सकती है। यह भी माना जाता है कि वसीयत तभी लिखनी चाहिए, जब कोई बहुत बूढ़ा हो जाए।
जबकि वसीयत एक ऐसा दस्तावेज है, जो न केवल आपकी सभी भौतिक एवं वित्तीय संपत्तियों को सूचीबद्ध करता है, बल्कि यह आपको यह तय करने की भी अनुमति देता है कि आप कौन-सी संपत्ति किसे देना चाहते हैं। उत्तराधिकार के जटिल नियम आपके निर्णय की एक छोटी-सी गलती के कारण आपके बच्चों और उत्तराधिकारियों को एक कटु विवाद में डाल सकते हैं।
हालांकि वित्तीय परिसंपत्तियों में नॉमिनी के प्रावधान के चलते थोड़ी स्पष्टता है, लेकिन आभूषण जैसी अन्य संपत्तियों के मामले में ऐसा नहीं है। इसके अलावा, कई भारतीय परिवारों में अब भी संयुक्त स्वामित्व की व्यवस्था है, जो स्पष्ट दस्तावेज और नॉमिनी सुविधाओं का पालन नहीं कर सकते हैं और अचल संपत्ति के मामले में नॉमिनी सुविधाएं नहीं हैं। यह देखते हुए कि भारत में हर गुजरते साल में घर का स्वामित्व बढ़ रहा है, गृह स्वामियों के लिए इससे संबंधित एक स्पष्ट दस्तावेज होना जरूरी है कि उनके बाद उनकी संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा।
इसके अलावा, वित्तीय साधनों के मामलों में भी सभी वित्तीय साधनों में नॉमिनी समान नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, जीवन बीमा के मामले में वर्ष 2015 से उत्तराधिकार स्पष्ट है, जब लाभार्थी नॉमिनी की अवधारणा पेश की गई थी। जीवन बीमा पॉलिसी में केवल परिवार के सदस्य (अभिभावक, पति-पत्नी और बच्चे) ही नॉमिनी हो सकते हैं। बीमा दावों की प्रक्रिया में किसे क्या मिलता है, इस पर विवाद की कोई गुंजाइश नहीं है। पीपीएफ पर भी यही नियम लागू होता है, क्योंकि पीपीएफ में नॉमिनी को खाताधारक की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी भी माना जाता है।
हालांकि, बचत खाते और डीमैट खाते के मामलों में नॉमिनी एक संरक्षक के रूप में रहता है, न कि कानूनी मालिक के रूप में। हालांकि यदि कोई प्रतिवादी नहीं रहता है, तो समाधान नॉमिनी के पक्ष में कर दिया जाता है। यहां तक कि संयुक्त खाते में भी मामला उतना आसान नहीं होता है, जितना कि माना जाता है। संयुक्त स्वामित्व वाले खाते में जब तक निर्दिष्ट न हो, कानून प्रत्येक खाताधारक को बराबर मानता है। और संयुक्त खाताधारकों में से एक की मृत्यु होने के बाद जीवित खाताधारक की पहुंच उसके अनुपात की सीमा तक सीमित रहती है, न कि संपूर्ण खाते तक।
यहां भी नॉमिनी को संरक्षक माना जाता है, न कि लाभार्थी और जीवित खाताधारक दूसरे खाताधारक की मृत्यु के पश्चात खाते का सही मालिक नहीं होता है। आम तौर पर, नॉमिनी विभिन्न खातों के संरक्षक बन जाते हैं, लेकिन उनके पास मूल स्वामी की अनुपस्थिति में उस खाते को संचालित करने की कोई कानूनी शक्ति नहीं होती है, भले ही वे मृतक के रिश्तेदार हों।
एक धारणा यह भी है कि वसीयत केवल अमीर लोग या वे ही बनाते हैं, जिनके पास अकूत संपत्ति है। आज, किसी भी संपत्ति वाले व्यक्ति को वसीयत लिखने पर विचार करना चाहिए, ताकि उनके स्वामित्व अधिकार स्पष्ट रूप से उनके उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित किए जा सकें। ऑनलाइन वसीयत बनाने की सेवाओं की शुरुआत ने वसीयत तैयार करना आसान बना दिया है।
वसीयत को पंजीकृत करना वांछित है, लेकिन यह हमेशा आवश्यक नहीं होता है और कोई एक साधारण कागज पर वसीयत बना सकता है; वह अपनी सभी संपत्ति को सूचीबद्ध करके यह लिख सकता है कि कौन-सी संपत्ति वह किसे देना चाहता है। किसी भरोसेमंद व्यक्ति के पास वसीयत की एक प्रति रखनी चाहिए। वही व्यक्ति यह सुनिश्चित करेगा कि निधन के बाद वसीयतकर्ता की इच्छा का पालन किया जाए।
गैर-पंजीकृत वसीयत के मामले में, वारिस इसका विरोध कर सकते हैं और मामले को अदालत में ले जा सकते हैं, यही वजह है कि मुकदमेबाजी से बचने के लिए वसीयत को पंजीकृत करवाना चाहिए। हालांकि पंजीकृत वसीयत की कुछ कमियां भी हैं, जैसे, जब इसे खोला जाता है, तो यह सार्वजनिक हो जाती है और इसके पंजीकरण में कुछ खर्च करना पड़ता है। हालांकि इसकी लागत बहुत ज्यादा नहीं होती है।
कोई व्यक्ति वसीयत बनाकर अपनी संपत्ति की जटिलता के आधार पर उसे 5,000 रुपये में पंजीकृत करा सकता है। वसीयत को जितनी बार चाहें, उतनी बार बदल सकते हैं, इसलिए कम उम्र के लोगों के पास उनकी एक वसीयत होनी चाहिए। इसके अलावा, जब भी कोई व्यक्ति नई संपत्ति खरीदता है या उनकी वित्तीय और गैर वित्तीय संपत्ति में परिवर्तन होता है; वह अपनी वसीयत की आय को बदल सकता है।
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