किन्नौर जिले के लोकसाहित्य में राम-कृष्ण चरित गायन परंपरा

किन्नौर के लोकसाहित्य में राम, शिव, कृष्ण का वर्णन यत्र-तत्र मिलता है। लोक कहावतों, मान्यताओं के अनुसार इनका वर्णन कुछेक पुस्तकों में मिलता है

Update: 2021-09-04 19:02 GMT

मुकेश चंद नेगी, मो.-8628825381

किन्नौर के लोकसाहित्य में राम, शिव, कृष्ण का वर्णन यत्र-तत्र मिलता है। लोक कहावतों, मान्यताओं के अनुसार इनका वर्णन कुछेक पुस्तकों में मिलता है। लोक गायन की दृष्टि से परंपरागत प्रचलन तो नहीं है, लेकिन विशेष त्योहारों में गीत गायन भी किया जाता है। इतिहास इस बात को साक्षी करता है कि पौराणिक दंत कथाओं में राम, कृष्ण चरित गायन सुनाए जाते हैं। राम चरित गायन में राम के वनवास के दिनों में सुदूर जंगल में शिकार करते हुए वर्णन किया गया है कि 'रामा आयरू ला चाले अर्थात राम शिकार करते जा रहे हैं।
'रामा लोक्ष्मोना भाई, दुवै दौन दुरे बौने, डोके बंदारू रूए, डोके टिपकु पानी।Ó इसकी बोली विशुद्ध हिंदी मिश्रित पहाड़ी बोली में गायन है। कृष्ण चरित गायन में भगवान शिव वृंदावन से बालक रूपी, जिसे कामरु गांव में देवता बद्री विशाल के रूप में लाकर स्थापित किया। बुशहर रियासत के पहले राजा श्रीकृष्ण के पौत्र प्रद्युमन कामरु के राजा थे। लोक गायन की दृष्टि से मथुरा-वृंदावन का वर्णन मिलता है जिसे सर्दियों में फागुली त्योहार के अवसर पर गाया जाता है, जिनमें दो-चार व्यक्ति छोटे-छोटे ढोलक बजाकर गाते हैं। प्रत्येक वर्ष युला कंडे में जन्माष्टमी के अवसर पर लोग इक_े होते हैं और झील के मध्य बने मंदिर में श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं। फिर छोटोक्स यानी कि दोस्ती के रिश्तों में कोई भी बंधन बना लेता है। स्त्री पुरुष या स्त्री स्त्री पुरुष। पावन पर्व मनाया जाता है। सबसे अधिक लोक गायन का प्रचलन शिव का मिलता है। शिवरात्रि को लगभग किन्नौर के हर गांव में एक दिन रात भर शिव की पूजा कर गायन किया जाता है।
यहां के लोकगायन में संग गीथंग यानी ब्रह्म मुहूर्त का गीत पांडवों का गीत है। इसमें पांडवों और कौरवों की संख्या का पता चलता है। कहा गया है कि 5 पांडव कौरवों की संख्या 60 से अधिक शक्तिशाली हैं। यह गीत काफी लंबा है, इसलिए इसकी कुछ पंक्ति किन्नौर की बोली में वर्णित किया है। इस गीत में नाती ने अपनी बहन कुंती को दिखा देने का वर्णन किया है : 'हाला लानते हुना जादो वेरांग। कोय ता लानाते भगवान जिऊ गिथांग।
कागुलिऊ अक्षेर आ रंग इ ई। कुंती देवी बारह बोरसंग सेवा लांगिशा। कुंतिस लो तोश या ऋषि मामा, बारह बॉर्संग सेवास आंगुबोरांग केराइं। बोरांगलांग्योश बुले रंगस्टिंगली। कुंती ने ऋषि से वर मांगा, दोबारा संतान प्राप्ति की। ऋषि ने बारह वर्ष तपस्या के बाद कुंती को वर दिया 5 पांडव, जो कि 60 पुत्र से अधिक शक्तिशाली थे। ऋषि ने कुंती से कहा कि जब मुर्गा ब्रह्म मुहूर्त से पहले बांग रहा था तो कुंती की बहन जाग चुकी थी। इसलिए उसे 60 कौरवों का वर दिया था। यानी कि सुबह को मुर्गा बांग देने से पहले ऋषि से वर मांगना था। इसलिए इस गीत को सांग गीथांग ब्रह्म का गीत कहा जाता है। लोक कवि ने इन गीतों को किन्नौर की बोली में वर्णित किया है। लिपि न होने के कारण गीतों में गाया गया है। इस प्रकार किन्नौर में एक ही बोली में इसका स्वरूप मिलता है। अलग बोलियां होने के कारण और बोलियों में गीतों का अभाव दिखाई देता है।


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