रक्षाबंधन विशेष: संस्कृति-विरासत और पर्व-त्योहारों के बदलते जीवन मूल्य

रक्षाबंधन विशेष

Update: 2021-08-22 12:01 GMT

शशि सिंह।

भाई-बहन के आपसी अपनत्व, स्नेह और कर्तव्य बंधन से जुड़ा त्योहार है रक्षाबंधन। एक ऐसा पर्व जो भाई-बहन के रिश्ते में नवीन ऊर्जा और मजबूती का प्रवाह करता है। बहनें इस दिन बहुत ही उत्साह के साथ अपने भाई की कलाई में राखी बांधने के लिए आतुर रहती हैं। जहां यह त्योहार बहन के लिए भाई के प्रति स्नेह को दर्शाता है तो वहीं यह भाई को उसके कर्तव्यों का बोध कराता है।

रंग-बिरंगे धागे से बंधा ये पवित्र बंधन सदियों पहले से चला आ रही है जिसकी जड़ें हमारी संस्कृति से बहुत ही गहराई के साथ जुड़ी हुई हैं। यह पर्व सात्विक भावनाओं का बंधन है जो भाई को सिर्फ अपनी बहन की नहीं बल्कि दुनिया की हर लड़की की रक्षा करने हेतु प्रतिबद्ध करता है।
इस त्योहार का अपना एक अलग स्वर्णिम इतिहास है, लेकिन बदलते समय के साथ इसमें भी बहुत से बदलाव आए हैं। आज आधुनिकता हमारे मूल्यों और रिश्तों पर हावी होती जा रही है। रिश्तों में मजबूती और प्रेम की जगह दिखावे ने ले ली है। चलिए एक नजर डालते हैं क्या मिला हमें विरासत में और क्या सहेजा हमनें बदलते दौर में.....
भाई बहन के प्रेम से जुड़ा ये त्योहार बहुत ही अनूठा है, ये न केवल भाई बहन के रिश्ते को मजबूती और नवीन ऊर्जा का संचार करता है बल्कि ये सामाजिक, पारिवारक प्रतिबद्धता और सभी को एक सूत्र में पिरोने का पर्व है। ये पर्व जाति और धर्म की दीवारों से परे भावनाओं को भावनाओं से जोड़ने का पर्व है जो हमें हमारे पूर्वजों से विरासत में मिला है।
ये त्योहार प्रमुख रूप से रक्षा के साथ जुड़ा हुआ है, जो किसी की भी रक्षा करने को प्रतिबद्ध करता है। अपनी बहन के साथ दुनिया की हर लड़की की रक्षा का वचन लिया जाए तो सही मायनों में इस त्योहार का उद्देश्य पूर्ण हो सकेगा।
धर्मों की दीवार से परे रक्षाबंधन की कहानियां
पौराणिक कहानियां भी जुड़ी हैं इस पर्व से- द्रोपदी ने भी एक बार श्रीकृष्ण के हाथ से बहता हुआ रक्त रोकने के लिए उनके हाथ पर अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर बांधा था और भगवान कृष्ण ने भरी सभा में उन्हें अपमानित होने पर चीर बढ़ाकर उनकी लाज रखी। कथा यह भी है कि पार्वती को भगवान विष्णु ने अपनी बहन माना था और शिव के साथ विवाह में भाई के रूप में सारे कर्तव्य निभाए थे।
एक कहानी इतिहास से निकलती है- जब सिकंदर दुनिया फतेह करने के लिए निकला था तब उसकी पत्नी ने हिंदू राजा पुरु की कलाई पर धागा बांधकर उन्हें मुंहबोला भाई बनाकर सिकंदर को न मारने के वचन लिया और राजा पुरु ने भी अपनी इस वचन का मान रखते हुए सिकंदर को जीवन दान दिया था।
इसी तरह से एक और प्रचलित कहानी है जिसके अनुसार मेवाड़ की विधवा महारानी कर्मावती को जब बहादुरशाह के आक्रमण करने की सूचना मिली तो वे घबरा गई और उन्होंने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की याचना की। हुमायूं ने भी अपने वचन का पालन किया और बहादुर शाह से युद्ध लड़कर उनके राज्य की रक्षा की।
रक्षाबंधन की जड़ें हमारी संस्कृति से बहुत ही गहराई के साथ जुड़ी हुई हैं। भाई तो बहन की रक्षा करता ही है लेकिन साथ ही बहन भी अपने भाई की हर विपत्ति से रक्षा की प्रार्थना करती है।
राखी और बदलते मूल्य
ये रंग-बिरंगे धागे भले हैं कच्चे होंं, लेकिन इनमें बंधा प्यार और विश्वास बहुत मजबूत होता है जो हर विपत्ति में रक्षा करता है। हमारी संस्कृति में बहुत पहले से रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा चली आ रही है।
पंडित के द्वारा मंत्रोच्चार के साथ यजमान के रक्षासूत्र बांधा जाता है तो वहीं पहले के समय में जब राजा युद्ध पर जाते थे तो उनकी रक्षा और विजय की कामना के साथ रक्षा सूत्र बांधा जाता था।
रक्षा बंधन से संबंधित जितनी भी कहानियां मिलती हैं उनसे पता चलता है कि लोगों ने विपरीत परिस्थितियों में भी राखी का मान रखते हुए अपने वचन को निभाया और अपनी बहन की रक्षा को हमेशा तत्पर रहे। यह पर्व हमारी संस्कृति और विरासत को दर्शाता है, लेकिन आज के बदलते समय में इस त्योहार पर भी आधुनिकता हावी होने लगी है, तब से आज तक यह परंपरा तो चली आ रही है लेकिन कहीं न कहीं हम अपने मूल्यों को खोते जा रहे हैं।
पुराने समय की ये परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है लेकिन इन रंग-बिरंगे धागों में अब अपनत्व की भावना और प्रेम की गर्माहट कम होने लगी है। एक समय में जिस तरह के उसूल और संवेदना राखी को लेकर थी शायद अब उनमें अब रुपयों के नाम की दीमक लगने लगी है जो धीरे-धीरे रिश्तों में प्रेम की जगह पैसे लेने लगे हैं।
आज के समय में रंग-बिरंग धागों की जगह चांदी और सोने की राखियों में ले ली है जिसके बदले भाई को भी उसी के अनुसार सामाजिक व्यव्हार का पालन करते हुए बहन को उपहार देना होता है, इसलिए भाई भी अपने कर्तव्यों को समझने के बजाय सिर्फ इस रिवाज को पूरा करने को ज्यादा सही समझता है। आज के इस आधुकनिकता के दौर में प्रेम और सद्भावना से ज्यादा दिखावे ने जगह ले ली है।
प्रेम और अपनत्व की जगह ले रहा सोशल मीडिया
आज के समय में सारे त्योहार सोशल मीडिया पर ही पूरे हो जाते हैं। चाहें कोई पर्व हो किसी का जन्मदिवस हो या सालगिरह अगर किसी ने एक पोस्ट कर दी तो सामने वाला व्यक्ति यही समझता है कि उक्त व्यक्ति उनसे बहुत प्रेम और अपनापन रखता है, लेकिन अगर सही मायने में देखा जाए तो स्टेटस लगाने के बजाए असल जिंदगी में उस व्यक्ति के प्रति पूरी ईमानदारी से रिश्ते को निभाया जाए तो जीवन ज्यादा सरल और सुखमय बना रहेगा। रिश्तों की गिरह मजबूत होंगी।
राखी का त्योहार भी इससे अछूता नहीं रहा है। लोग इन अनमोल क्षणों की आनंदपूर्वक जीने की बजाय सेल्फी लेने की होड़ में लगे रहते हैं ताकि वो जल्दी से #भाईबहनकाप्यार लिखकर पोस्ट कर सकें।
सुबह उठते ही हर किसी के स्टेटस पर बस रक्षाबंधन की तस्वीरें और वीडियो की भरमार होती है, लेकिन बजाय सोशल मीडिया पर दिखावे की जगह अगर असल जिंदगी में इन रिश्तों को प्रेमरुपी जल से सींचा जाए तो हमेशा परिवार में मजबूती बनी रहेगी।
राखी के त्योहार का मतलब केवल बहन की दूसरों से रक्षा करना ही नहीं होता है बल्कि उसके अधिकारो और सपनों की रक्षा करना भी भाई का कर्तव्य होता है, लेकिन क्या सही मायनों में बहन की रक्षा हो पाती है। आज के समय में राखी के दायित्वों की रक्षा करना बेहद आवश्यक हो गया है।
जहां एक तरफ भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन लेता है तो वहीं दूसरी और बौद्धिक क्षमता होते हुए भी उसे आज के समय में भी ये कहकर ऊंची शिक्षा से वंचित रखा जाता है कि आगे चलकर करना ही क्या है, चूल्हा-चौका ही करना है।
आज भी उसकी अस्मत को बार-बार नोचा जाता है। उसके अस्तित्व को चुनौती दी जाती है। उसके अधिकारों का हनन किया जाता है। राखी के दिन केवल अपनी बहन की रक्षा का संकल्प मात्र नहीं लेना चाहिए के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण नारी जगत के मान-सम्मान और अधिकारों की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए,ताकि सही मायनों में राखी के दायित्वों का निर्वहन किया जा सके।
Tags:    

Similar News

-->