माना कि कांग्रेस आलाकमान इन दिनों व्यस्त है. राहुल और प्रियंका गांधी सोशल मीडिया के ज़रिये नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) सरकार को गिराने के प्रयास में व्यस्त हैं और सोनिया गांधी (Sonia Gnadhi) पंजाब में अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) सरकार को बचाने की योजना बनाने में व्यस्त हैं. वैसे भी राजस्थान में अभी चुनाव नहीं होने वाला है. उम्मीद है कि पंजाब से निपटने के बाद शायद पार्टी आलाकमान राजस्थान में सुलगते बगावत की भी सुध लेगी. कांग्रेस आलाकमान ने पिछले वर्ष भी सचिन पायलट से कुछ ऐसा ही वादा किया था जो आज तक पूरा नहीं हुआ. आलाकमान का सन्देश तो उन्हें मिल गया कि आप वापस जाइए और जो मिल जाए उसे ही मुकद्दर समझ लीजिए.
क्या आलाकमान सचिन पायलट की हैसियत देखना चाहती है
राहुल या प्रियंका गांधी का सचिन पायलट से नहीं मिलने का कारण स्पष्ट है. ठीक एक साल पहले जब पायलट बगावत का परचम लहराते हुए अपने समर्थकों के साथ गुरुग्राम के समीप मानेसर के एक रिज़ॉर्ट में लगभग एक महीने तक डेरा डाले हुए थे, तब प्रियंका गांधी ने ही उन्हें समझाया था और इस वादे के साथ उन्हें वापस जाने को कहा था कि उन्हें और उनके समर्थकों को प्रदेश की सरकार और पार्टी में समुचित पद दिया जाएगा. गांधी परिवार का पायलट से नहीं मिलने का कारण भी शायद यही रहा हो क्योंकि उन्हें पता चल चुका है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट के बारे में उनका आदेश या सिफारिश, कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं.
कहीं ऐसा तो नहीं कि पार्टी आलाकमान के दिल में सरफरोशी की तमन्ना जग गयी है और वह यह देखना चाहती है कि सचिन पायलट की क्या हैसियत है? इतना तो साफ है कि सचिन पायलट ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत के बाद दोनों युवा नेताओं की दावेदारी की अनदेखी की गयी थी. कांग्रेस पार्टी की परंपरा रही है कि युवा नेताओं को दबाओ और बुजुर्गों को आगे बढ़ाओ. इसी नीति के तहत राजस्थान में अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश में कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया. दोनों बुजुर्ग मुख्यमंत्रियों को इन युवा नेताओं को साथ ले कर चलना अपनी शान के खिलाफ लगा. सिंधिया ने बगावत की और कमलनाथ सरकार लुढ़क गयी. सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए और राज्य में बीजेपी की सरकार बन गयी.
पायलट तभी बगावत क्यों करते हैं जब कोई कांग्रेसी नेता पार्टी छोड़ कर जाता है
इस घटना के ठीक बाद सचिन पायलट ने भी बगावत कर दी थी पर दो कारणों से पायलट को वापस जयपुर जाना पड़ा था. पायलट के पास पर्याप्त समर्थन का आभाव था और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोध के कारण बीजेपी ने अपना कदम पीछे खींच लिया था.
सिंधिया की बीजेपी के साथ डील इतनी ही थी कि उन्हें राज्यसभा में भेजा जाएगा, केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा और उनके समर्थकों को राज्य में मंत्री पद मिलेगा. पर पायलट स्वयं मुख्यमंत्री बनना चाहते थे जो वसुंधरा राजे को मंज़ूर नहीं था. होता भी कैसे क्योंकि पायलट अगर बीजेपी में शामिल हो जाते तो वसुंधरा राजे का भविष्य अंधकारमय हो जाता.
पहली बार पायलट ने बगावत तब की थी जब सिंधिया ने कांग्रेस को झटका दिया था और दूसरी बार तब जब एक और युवा नेता जितिन प्रसाद कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए. एक पैटर्न सा बन गया है कि पायलट तब ही अपनी आवाज़ उठाते हैं जब कांग्रेस पार्टी में कोई और युवा नेता बगावत करता है. शायद उनमें उस इच्छाशक्ति की कमी है जो सिंधिया ने या जितिन प्रसाद ने दिखाया. इसी का लाभ अशोक गहलोत ले रहे हैं और संभवतः गहलोत ने पार्टी आलाकमान को सफलतापूर्वक समझा दिया है कि पायलट सिर्फ गिदड़ धमकी ही दे सकते हैं, कुछ और नहीं करेंगे.
राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने तक किसी युवा नेता को ऊपर आने का मौका नहीं मिलेगा?
पायलट एक युवा नेता हैं और इसमें कोई शक नहीं है कि वह एक कर्मठ नेता भी हैं. पर उनका हाल उस रोते हुए बच्चे की तरह होता जा रहा है जिसे मां दूध पिलाना छोड़ देती है. पायलट को यह सोचना पड़ेगा कि दो बार बगावती सुर अलापने से उन्हें क्या मिला और उन्होंने क्या खोया. एक साल पहले तक वह राजस्थान के उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे. और अब वह मात्र एक विधायक रह गए हैं जिसे विधानसभा में पीछे की सीट पर बैठना पड़ता है.
पायलट को निर्णय लेना होगा कि या तो वह सिर पर कफ़न बांध कर गहलोत के खिलाफ खुल कर बगावत करें और आर या पार की लडाई लड़ें या फिर कांग्रेस आलाकमान जो उन्हें लॉलीपॉप दे रहा है उसी से खुश हो जाए और यह मान ले की सब्र का फल मीठा होगा, क्योंकि कांग्रेस आलाकमान की नज़रों में वह भविष्य के नेता हैं. राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के पहले किसी युवा नेता को मुख्यमंत्री पद नहीं मिलेगा, ताकि राहुल गांधी से कोई युवा नेता आगे ना बढ़ जाए. और तब तक तो सचिन पायलट को सब्र के साथ इंतज़ार करना ही होगा. वर्ना दिल्ली के कूचों से उन्हें इसी तरह बेआबरू हो को कर बार-बार निकलना पड़ेगा.