हिंदू, हिंदुत्व का मुद्दा उठाकर बीजेपी के पाले में गेंद कर गए राहुल गांधी
बीजेपी के पाले में गेंद कर गए राहुल गांधी
शंभूनाथ शुक्ल।
अपने को हिंदू बता कर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने जाने-अनजाने आरएसएस (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) के उस कथन की पुष्टि कर दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू (Hindu) है. भले वह हिंदू धर्म को मानता हो या किसी अन्य धर्म को अथवा नास्तिक ही क्यों न हो. राहुल गांधी ने 12 दिसंबर को जयपुर में कांग्रेस की रैली में कह दिया कि वे हिंदू तो हैं, लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं. राहुल गांधी के बयान ने सेकुलर (Secular) राजनीतिक दलों को बेचैन कर दिया है. उनको समझ नहीं आ रहा, कि कैसे राहुल गांधी बीजेपी (BJP) के पाले में जा कर खेलने लगे. आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए उनका यह बयान बीजेपी को फ़ायदा पहुंचाने वाला हो गया.
अगले वर्ष फ़रवरी में जिन पांच राज्यों में चुनाव है, उनमें से पंजाब में कांग्रेस की सरकार है. वहां उन्होंने अपनी भूल से अपने ही पाले के मज़बूत खिलाड़ी और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस से अलग कर दिया है. जबकि 2017 में इन्हीं कैप्टन अमरिंदर सिंह के बूते वहां कांग्रेस सत्ता में पहुंच सकी थी. अन्यथा उसके पहले के दो टर्मों से वह लगातार विपक्ष में बैठ रही थी. राहुल गांधी ने कैप्टन को बीजेपी से कांग्रेस में गए नवजोत सिंह सिद्धू के उकसावे पर पार्टी से बाहर किया, जो ख़ासे विवादास्पद रहे हैं. वहां कांग्रेस की प्रतिद्वंदी शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) से समझौता किया हुआ है और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) भी वहां काफ़ी शिद्दत से लड़ रही है. अब बीजेपी भी लड़ेगी और संभावना यह है, कि देर-सबेर वह कैप्टन से कोई समझौता करे.
प्रियंका की मेहनत पर पानी
इसके अतिरिक्त पिछले दो महीने से उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने बीजेपी को मज़बूत चुनौती दी हुई है. उन्होंने बीजेपी के सवर्ण, ख़ासकर ब्राह्मण वोटों में सेंध लगाई है. और सेकुलर वोटर भी उन्हें पसंद कर रहा है. साथ ही वे कांग्रेसी नेता, जो पिछले पांच वर्षों से पस्त पड़े थे, पुनः मैदान में आ गए हैं. ऐसे समय राहुल गांधी के इस बयान ने कांग्रेस की उड़ान पर ब्रेक लगा दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और बीजेपी दोनों के लिए राहुल गांधी का बयान मुफ़ीद हो गया है.
वाम की उलटी नीति
राहुल गांधी के जिन भी सलाहकारों ने उन्हें ऐसा बयान देने को प्रेरित किया हो, उसने उन्हें एक ऐसी बहस में उलझा दिया है, जिससे उनका निकलना मुश्किल है. ख़ुद को हिंदू कहना और नरेंद्र मोदी को हिंदुत्ववादी बताना, यह प्रश्न उन्हें एक अंतहीन बहस की तरफ़ ले जाएगा. हिंदू और हिंदुत्व की व्याख्या करना राहुल गांधी के लिए सहज नहीं होगा. राहुल गांधी समझ नहीं पा रहे हैं, कि आज़ादी के बाद से देश का अल्पसंख्यक कांग्रेस पर भरोसा करता रहा है. जहां कहीं भी जो भी समुदाय अल्प संख्या में हो, उसका भरोसा सदैव कांग्रेस पर रहा. भले कांग्रेस राज में सांप्रदायिक दंगे ख़ूब होते रहे हों, लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय को सदैव लगता रहा, कांग्रेस उसे बचाएगी. ऐसे में खुद को बार-बार हिंदू बता कर वे क्या कहना चाहते हैं.
अब राहुल गांधी ने उसे भी मंझधार में छोड़ दिया है. क्या राहुल धर्मशास्त्र के विद्वान हैं? क्या उन्हें पता है, हिंदू धर्म क्या है? उन्हें शायद यह भी नहीं पता होगा, कि व्यक्ति के मानने या न मानने से कोई हिंदू नहीं होता. अगर उसके मां-बाप हिंदू हैं तब ही वह लोक में हिंदू धर्म का व्यक्ति कहा जा सकता है. राहुल गांधी की दादी जन्मना हिंदू ब्राह्मण थीं. उनके पति पारसी थे. उनका विवाह ज़रूर हिंदू पद्धति से हुआ लेकिन उनकी संतानें भी हिंदू हुईं, इसकी व्याख्या तो कोई शंकराचार्य ही कर सकता है. राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी जन्म से ईसाई हैं, तब फिर वे कैसे यह घोषणा कर सकते हैं, कि वे हिंदू हैं? और अगर हिंदू धर्म में उनकी श्रद्धा है, तो इसे बताने की ज़रूरत क्या है.
रसखान और मुंशी अजमेरी
हिंदी के एक भक्त कवि हुए हैं, सैयद मोहम्मद इब्राहीम ख़ान, जिन्हें बाद में रसख़ान के नाम से जाना गया. कृष्ण की भक्ति में लीन होकर उन्होंने सैकड़ों पद लिखे हैं. और ऐसे पद जो इस्लाम कि दृष्टि से सर्वथा धर्म-विरोधी हैं. पर न तो उनकी तत्कालीन मुस्लिम शासकों ने लानत-मलामत की और न ही मुस्लिम उलेमाओं ने. वे जीवन भर वृंदावन में रहे तथा आचार्यों के प्रिय भी. उनका बहुत सम्मान था. किंतु उन्हें किसी ने नहीं कहा, कि वे हिंदू बन जाएं. उनकी मृत्यु के बाद उनकी मज़ार बनवाई गई. इसी तरह का क़िस्सा मुंशी अजमेरी जी का है. मुंशी अजमेरी जी राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त के पिता के यहां गुमाश्ता थे. हिंदू धर्म में उनकी श्रद्धा थी, किंतु जन्म से वे मुसलमान थे. उनसे किसी आर्य समाजी ने कह दिया कि मुंशी जी आपकी हिंदू धर्म के प्रति अकट्य श्रद्धा है तो आप शुद्ध होकर हिंदू बन जाइए, उन्होंने कहा, क्यों मैं क्या अशुद्ध हूं, जो शुद्ध हो जाऊं? कहते हैं, एक बार वे किसी बीमारी से पीड़ित थे, उन्होंने ओरछा (ORCHHA) के राम राजा के मंदिर में जा कर आराधना की लेकिन मंदिर के पुजारी उन्हें मुसलमान समझ कर उन्हें अंदर न आने दे रहे थे. तब वे बाहर बैठ कर ही आराधना करने लगे. जब दो दिन हो गए और मुंशी बिना कुछ खाये-पिये पूजा में लीन रहे तब ओरछा के महराजा ने दख़ल की और वे मंदिर के अंदर विग्रह के समक्ष जा सके.
मैं हिंदू हूं, कहने से कोई हिंदू नहीं होता. न हिंदू कोई संख्या है. हिंदू एक मान्यता है. हिंदुत्व का शाब्दिक अर्थ हुआ, हिंदू धर्म का तत्त्व. स्वामी राम कृष्ण परमहंस का हिंदू भी एक तत्त्व था और महात्मा गांधी की हिंदू धर्म के प्रति अवधारणा भी एक तत्त्व थी. जवाहर लाल नेहरू भी एक हिंदू थे. लेकिन इन किसी ने भी अनावश्यक किसी भी जनसभा में यह घोषणा नहीं की कि वे हिंदू हैं. दरअसल राहुल गांधी को इस समय जो आधुनिक वामपंथी घेरे हुए हैं, वे उन्हें उसी राह पर ला रहे हैं जो बीजेपी कि है. कांग्रेस की समरसता को राहुल गांधी नहीं समझ पा रहे हैं. इसीलिए राहुल को नापसंद करने वाले कांग्रेसी भी इस पार्टी में बढ़ते जा रहे हैं. राहुल गांधी अनावश्यक विवादों से बचें.
हिंदू धर्म को सहारे की ज़रूरत नहीं
सच तो यह है, कि हिंदू धर्म को कभी राज्याश्रय की ज़रूरत नहीं पड़ी. आज़ादी के पहले के हज़ार वर्षों तक तो देश मुसलमानों अथवा ईसाई अंग्रेज शासकों के अधीन रहा. आज़ादी के बाद से राज्य का धर्म से वास्ता नहीं. इसके अतिरिक्त मुस्लिम शासकों के पहले भी राजा के धर्म, उसके मंदिर और उसके भगवान से प्रजा का कोई वास्ता नहीं रहा. हिंदुस्तान में राजा हमलावरों से प्रजा की रक्षा करता था, अपराधियों को दंड देता था तथा बदले में वह उपज का एक हिस्सा लगान के तौर पर लेता था. सौदागरों को निश्चिंत हो कर व्यापार करने के लिए कुछ कर चुकाना होता था. इसके अतिरिक्त राजा किसी विशेष धर्म के प्रति न अनुराग दिखाता था न द्वेष. इसलिए हिंदू धर्म को किसी राजनेता के सहारे की ज़रूरत कभी नहीं रही.
जनेऊ दिखाने की ज़रूरत नहीं धर्म के तत्त्व को समझें
ऐसे में बेहतर होता राहुल गांधी खुद को बार-बार हिंदू न बताएं न जनेऊ दिखाने की कोशिश करें. वे दत्तात्रेय गोत्र के ब्राह्मण हैं, यह सफ़ाई उनसे कोई नहीं मांग रहा. यह सफ़ाई सिर्फ़ शादी-विवाह में मांगी जाती है. वे हिंदू हैं, उनकी हिंदू धर्म में अगाध श्रद्धा है, इसे बताने की ज़रूरत उन्हें नहीं पड़नी चाहिए. इस देश में राजनीति के लिए धर्म की ज़रूरत कभी नहीं पड़ी. क्योंकि हिंदुओं को कभी लगा ही नहीं कि यह देश उनका नहीं है. शासक किसी भी धर्म का हो, लेकिन हिंदुओं के लिए भारत देश उनका रहेगा. अतः राहुल गांधी के लिए उपयुक्त यही रहेगा, कि वे सफ़ाई न दें. बेहतर रहे कि वे हिंदू धर्म के तत्त्व को समझें.