जांच पर सवाल
पूर्व और वर्तमान सांसदों, विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की धीमी जांच बहुत चिंताजनक है
पूर्व और वर्तमान सांसदों, विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की धीमी जांच बहुत चिंताजनक है। जिन मामलों में जल्दी फैसले आ जाने थे, वे भी अटके हुए हैं। कुछ आपराधिक मामले तो 15 साल पहले दर्ज हुए थे और मामले भी ऐसे, जिनमें दोष सिद्ध होने पर आजीवन कारावास की सजा भी हो सकती थी, लेकिन ऐसे मामलों में भी जांच की दिशा में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की धीमी कार्रवाई बहुत चिंता में डाल देती है। सीबीआई के पास विधायकों और सांसदों से संबंधित 163 आपराधिक मामले लंबित हैं, जबकि प्रवर्तन निदेशालय के पास 122 मामले। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसी जांच एजेंसियों को यथोचित ही फटकार लगाई है। 10-15 साल पहले दर्ज हुए मामलों में भी आरोपपत्र दायर नहीं किए गए हैं। देश के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना ने इन एजेंसियों से कारण बताने को कहा है। प्रवर्तन निदेशालय केवल संपत्तियों को कुर्क कर रहा है और इसके अलावा कुछ नहीं। तीन जजों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति रमना ने साफ कह दिया है कि मामलों को यूं लटकाए न रखें, आरोपपत्र दाखिल करें।
क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान