सौदे पर सवाल

यह किसी से छिपा नहीं है कि देश के सैन्य मोर्चे में वायुसेना की अहमियत क्या है! समय-समय पर जरूरत पड़ने पर वायुसेना ने यह साबित भी किया है। हालांकि सरकारों को इसका महत्त्व भलीभांति पता है |

Update: 2021-12-25 01:40 GMT

यह किसी से छिपा नहीं है कि देश के सैन्य मोर्चे में वायुसेना की अहमियत क्या है! समय-समय पर जरूरत पड़ने पर वायुसेना ने यह साबित भी किया है। हालांकि सरकारों को इसका महत्त्व भलीभांति पता है, लेकिन अफसोस है कि कई बार ऐसे फैसले लिए जाते हैं, जिसका आधार स्पष्ट करना मुश्किल हो जाता है। कुछ समय पहले सरकार ने उनतीस हाक एडवांस जेट प्रशिक्षण विमान खरीदने की योजना बनाई थी, मगर बाद में खरीदे जाने वाले विमानों की संख्या घटा कर बीस कर दी गई। संख्या में बदलाव का कारण क्या था, यह साफ नहीं था।

आमतौर पर सरकार के इस तरह के फैसले बहस के केंद्र में नहीं आ पाते, इसलिए समय के साथ ऐसे मामले स्पष्ट भी नहीं हो पाते। लेकिन प्रशिक्षण विमानों की खरीद से संबंधित इस फैसले को लेकर भाजपा सांसद जुएल ओराम की अध्यक्षता वाली रक्षा संबंधी एक संसदीय समिति ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। समिति ने सरकार से खरीद की योजना में किए गए बदलाव की वजह, समस्या और बाध्यताओं को लेकर सवाल किए हैं।
गौरतलब है कि इस स्तर के सौदे में तकनीकी कर्मचारी और वाणिज्यिक मूल्यांकन से संबंधित शर्तों, जमीनी स्तर पर परीक्षण करके उपकरण के प्रदर्शन के मानदंडों की जांच और संबंधित खरीदारी के संदर्भ में बोली लगाने वालों में सबसे कम मूल्य की बात करने वाले के साथ लागत की तुलना करने जैसी प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद ही किसी विक्रेता को कीमतों पर बातचीत के लिए बुलाया जाता है। लेकिन संसदीय समिति के मुताबिक, यह पता लगाया जा सकता है कि अगर अपेक्षित शर्तों का अनुपालन नहीं किया गया, तब विक्रेता को मोलभाव के लिए क्यों आमंत्रित किया गया! यह अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि सुरक्षा के मोर्चे को मजबूत करने के लिहाज से एक संवेदनशील सौदे में भी तय नियम-कायदों या शर्तों का पूरी तरह पालन करने का खयाल नहीं रखा गया।
पहले से निर्धारित प्रक्रिया के तहत इतने उच्च स्तर पर अगर बिना किसी मजबूत आधार के खरीदे जाने वाले विमानों की संख्या में बदलाव कर दिया जाता है या विक्रेता को आमंत्रित करते हुए शर्तों का खयाल रखना जरूरी नहीं समझा जाता है तो इसे कैसे देखा जाएगा! जाहिर है, इस मसले पर सरकार अपने ही फैसले पर संसदीय समिति के सवालों को लेकर असुविधा का सामना कर सकती है।
यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वायुसेना में पहले भी महत्त्व खो चुके लड़ाकू विमानों के समांतर पायलटों की कमी चिंता का कारण रही है। जबकि आज बदलती वैश्विक परिस्थितियों और खासतौर पर भारत के कुछ पड़ोसी देशों की बढ़ती सैन्य ताकत को देखते हुए वायु सेना के मोर्चे पर भी हर स्तर की तैयारी रखना वक्त का तकाजा है।
शायद इसी के मद्देनजर संसदीय समिति ने प्रशिक्षण विमानों से संबंधित अतिरिक्त सिम्यूलेटर खरीदने की सिफारिश की, ताकि प्रशिक्षण की सुविधाओं के अभाव में वायुसेना में पायलटों के पदों की संख्या पर प्रभाव न पड़े। यों वायुसेना के पास फिलहाल शुरुआती से लेकर उच्चस्तरीय प्रशिक्षण विमानों की संतोषजनक तादाद है, जिसमें हाक एमके-132 जैसे उन्नत प्रशिक्षण विमान सेवा में हैं, मगर वक्त और हालात की नजाकत को देखते हुए जरूरत के मुताबिक नए सौदे के लिए सरकार कोशिश कर रही है।
विडंबना यह है कि इस मामले की संवेदनशीलता को समझने के बावजूद प्रक्रिया और फैसले के स्तर पर कोताही देखी जा रही है। इससे बचा जा सकता है। संसदीय समिति ने इसी ओर ध्यान दिलाया है। उम्मीद है कि सरकार इस मसले पर समिति के सवालों का कोई संतोषजनक जवाब सामने रखेगी।

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