सवाल संघीय व्यवस्था का

भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत पश्चिम बंगाल में झोंक दी है।

Update: 2020-12-23 05:20 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत पश्चिम बंगाल में झोंक दी है। चुनावों की जिस तरह पार्टी तैयारी करती है और उसके लिए उसकी जो खास शैली अब तक दिखी है, उसके मद्देनजर इसमें कोई अचरज की बात नहीं है। लेकिन इस क्रम में जिस तरह एक बार फिर उसने संघीय व्यवस्था से जुड़े सवाल को खड़ा कर दिया है, वह जरूर पूरे देश की चिंता का विषय है। यही कारण है कि अशोक गहलोत, अमरिंद सिंह, भूपेश बघेल से लेकर आम आदमी पार्टी और डीएमके तक ने इस मामले में केंद्र के रुख का विरोध किया है। मुद्दा यह है कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उन तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को अचानक दिल्ली तलब करने का निर्देश दे दिया, जिनके पास दक्षिण 24-परगना जिले में जेपी नड्डा की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन तीनों अधिकारियों को भेजने से इनकार कर दिया है। घटना के अगले ही दिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को समन भेज कर 14 दिसंबर को दिल्ली हाजिर होने का निर्देश दिया था।


लेकिन राज्य सरकार ने इन दोनों अधिकारियों को दिल्ली ना भेजने के अपने रुख पर अडिग है। गौरतलब है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों को लेकर तनातनी का यह पहला मौका नहीं है। ऐसे विवाद हाल में बढ़ते गए हैं। जबकि भारतीय संविधान में संघीय गणराज्य की परिकल्पना के तहत राज्यों की स्वायत्तता का पूरा ख्याल रखा गया है। अखिल भारतीय सेवाएं भी उसी कड़ी में आती हैं, जहां इन अधिकारियों की नियुक्ति तो केंद्रीय स्तर पर होती है, लेकिन उनकी तैनाती उनके कैडर राज्य में होती है। फिर उनके तबादले और इस तरह के दूसरी प्रशासनिक जिम्मेदारी राज्यों पर होती है। नियमों के मुताबिक जब तक राज्य में तैनात किसी अधिकारी को संबंधित राज्य सरकार रिलीव नहीं कर देती, तब तक केंद्र सरकार उनकी प्रतिनियुक्ति नहीं कर सकती। ऑल इंडिया सर्विसेज 1969 के नियम 7 के अनुसार राज्य सरकार के तहत काम करने वाले सिविल अधिकारियों पर केंद्र कोई एक्शन भी नहीं ले सकता। यही नहीं, किसी विशेष स्थिति में एक्शन लेने की नौबत आ जाए, तो भी इसके लिए केंद्र और राज्य दोनों की सहमति जरूरी होती है। इसलिए यहां सवाल सवाल सिर्फ पश्चिम बंगाल का नहीं है। बल्कि यह केंद्र और राज्य के संबंधों से जुड़ा हुआ है। इसलिए केंद्र का नजरिया संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ है तो जाहिर है कि इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे।


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