पुत्र मोह का जाल: कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ बैठक में सोनिया गांधी को दिखा पार्टी से बड़ा परिवार

कांग्रेस किस तरह बदलने के लिए तैयार नहीं, इसका प्रमाण है सोनिया गांधी की शीर्ष नेताओं के साथ हुई बैठक

Update: 2020-12-20 08:37 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कांग्रेस किस तरह बदलने के लिए तैयार नहीं, इसका प्रमाण है सोनिया गांधी की शीर्ष नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद यह संदेश देने की कोशिश कि एक तो पार्टी में सब कुछ ठीक है और दूसरे, अधिकांश नेता राहुल गांधी को ही फिर से अध्यक्ष बनाना चाह रहे हैं। यह इसलिए हास्यास्पद है, क्योंकि सोनिया गांधी की यह बैठक उन वरिष्ठ नेताओं के साथ ही थी जिन्होंने करीब चार माह पहले पार्टी के कामकाज के साथ-साथ नेतृत्व के रवैये पर भी गंभीर सवाल उठाए थे। यह समझना कठिन है कि पार्टी के इन वरिष्ठ नेताओं के साथ मुलाकात करने की जहमत चार माह बाद क्यों उठाई गई? कहीं यह संदेश देने के लिए तो नहीं कि उनकी आपत्तियों का कोई मूल्य-महत्व नहीं। सच्चाई जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस बैठक के जरिये यह बताने का अतिरिक्त प्रयास हुआ कि पार्टी राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष पद पर आसीन होते हुए देखना चाहती है। यह प्रयास पार्टी महासचिव रणदीप सुरजेवाला के इस विचित्र बयान के ठीक अगले दिन किया गया कि उनके समेत कांग्रेस के 99.9 प्रतिशत नेता राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के पक्ष में हैं। यह चाटुकारिता संस्कृति को खाद-पानी देने और पार्टी से ज्यादा परिवार को महत्वपूर्ण बताने के अलावा और कुछ नहीं।


जो भी कांग्रेसी यह हवा बना रहे हैं कि पार्टी का उद्धार केवल राहुल गांधी के पुन: अध्यक्ष बनने से ही हो सकता है वे काग्रेस के हितैषी नहीं कहे जा सकते हैं। जब यह शीशे की तरह साफ है कि राहुल की नाकामी के कारण ही कांग्रेस का बेड़ा गर्क हुआ है तब उन्हें फिर से अध्यक्ष पद पर बैठाने की कोशिश पार्टी के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही है। कांग्रेस इस सच की स्वीकारोक्ति में जितना देर करेगी उतना ही अपना नुकसान करेगी कि राजनीति राहुल के स्वभाव में नहीं है। सच तो यह है कि वह राजनीति कर भी नहीं रहे हैं। वह राजनीति करने के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी भड़ास निकालते रहते हैं। चूंकि उनका एकमात्र उद्देश्य प्रधानमंत्री को नीचा दिखाना है इसलिए वह अक्सर न्यूनतम राजनीतिक शिष्टता का परिचय भी नहीं देते। वास्तव में वह ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे देश की सत्ता उनकी निजी जागीर थी और मोदी ने उसे उनसे जबरन छीन लिया है। वह गांधी परिवार के सदस्य हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि उनकी सतही-छिछली राजनीति की भी जय-जयकार की जाए। आज के भारत में ऐसा नहीं होने वाला। यह बात सोनिया और राहुल गांधी की जी-हुजूरी करने वालों को जितनी जल्दी समझ में आए, कांग्रेस के लिए उतना ही बेहतर है।कांग्रेस किस तरह बदलने के लिए तैयार नहीं, इसका प्रमाण है सोनिया गांधी की शीर्ष नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद यह संदेश देने की कोशिश कि एक तो पार्टी में सब कुछ ठीक है और दूसरे, अधिकांश नेता राहुल गांधी को ही फिर से अध्यक्ष बनाना चाह रहे हैं। यह इसलिए हास्यास्पद है, क्योंकि सोनिया गांधी की यह बैठक उन वरिष्ठ नेताओं के साथ ही थी जिन्होंने करीब चार माह पहले पार्टी के कामकाज के साथ-साथ नेतृत्व के रवैये पर भी गंभीर सवाल उठाए थे। यह समझना कठिन है कि पार्टी के इन वरिष्ठ नेताओं के साथ मुलाकात करने की जहमत चार माह बाद क्यों उठाई गई? कहीं यह संदेश देने के लिए तो नहीं कि उनकी आपत्तियों का कोई मूल्य-महत्व नहीं। सच्चाई जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस बैठक के जरिये यह बताने का अतिरिक्त प्रयास हुआ कि पार्टी राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष पद पर आसीन होते हुए देखना चाहती है। यह प्रयास पार्टी महासचिव रणदीप सुरजेवाला के इस विचित्र बयान के ठीक अगले दिन किया गया कि उनके समेत कांग्रेस के 99.9 प्रतिशत नेता राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के पक्ष में हैं। यह चाटुकारिता संस्कृति को खाद-पानी देने और पार्टी से ज्यादा परिवार को महत्वपूर्ण बताने के अलावा और कुछ नहीं।

जो भी कांग्रेसी यह हवा बना रहे हैं कि पार्टी का उद्धार केवल राहुल गांधी के पुन: अध्यक्ष बनने से ही हो सकता है वे काग्रेस के हितैषी नहीं कहे जा सकते हैं। जब यह शीशे की तरह साफ है कि राहुल की नाकामी के कारण ही कांग्रेस का बेड़ा गर्क हुआ है तब उन्हें फिर से अध्यक्ष पद पर बैठाने की कोशिश पार्टी के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही है। कांग्रेस इस सच की स्वीकारोक्ति में जितना देर करेगी उतना ही अपना नुकसान करेगी कि राजनीति राहुल के स्वभाव में नहीं है। सच तो यह है कि वह राजनीति कर भी नहीं रहे हैं। वह राजनीति करने के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी भड़ास निकालते रहते हैं। चूंकि उनका एकमात्र उद्देश्य प्रधानमंत्री को नीचा दिखाना है इसलिए वह अक्सर न्यूनतम राजनीतिक शिष्टता का परिचय भी नहीं देते। वास्तव में वह ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे देश की सत्ता उनकी निजी जागीर थी और मोदी ने उसे उनसे जबरन छीन लिया है। वह गांधी परिवार के सदस्य हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि उनकी सतही-छिछली राजनीति की भी जय-जयकार की जाए। आज के भारत में ऐसा नहीं होने वाला। यह बात सोनिया और राहुल गांधी की जी-हुजूरी करने वालों को जितनी जल्दी समझ में आए, कांग्रेस के लिए उतना ही बेहतर है।


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