Punjab Assembly Elections : सिद्धू नहीं, चन्नी नहीं तो आखिर कौन बनेगा पंजाब का अगला सीएम?

चुनाव सिर पर है, लेकिन पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) के अंदर का घमासान शांत होने का नाम नहीं ले रहा

Update: 2022-01-12 15:54 GMT

प्रवीण कुमार चुनाव सिर पर है, लेकिन पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) के अंदर का घमासान शांत होने का नाम नहीं ले रहा. ऐसे में अगर ये सब यूं ही चलता रहा तो कहना गलत नहीं होगा कि पंजाब की सत्ता को बरकार रखने की कांग्रेस की हसरतों पर पानी फिर सकता है. कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने भले ही तय किया हो कि मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा, लेकिन पंजाब इकाई के दो अहम किरदार मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) इसको लेकर अनर्गल बयानबाजी से बाज नहीं आ रहे हैं.

एक तरफ नवजोत सिंह सिद्धू ने यह कहकर केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती दे डाली है कि हाईकमान नहीं, बल्कि "पंजाब के लोग" तय करेंगे कि पंजाब का नया सीएम कौन होगा? वहीं, सीएम चन्नी का कहना है कि पार्टी को चुनाव से पहले सीएम उम्मीदवार की घोषणा कर देनी चाहिए. क्योंकि जब-जब पार्टी ने सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, वह हार गई है. लेकिन इन दोनों नेताओं की सोच और नसीहत से हटकर कांग्रेस हाईकमान जो कुछ सोच रही है या चुनाव बाद करने की तैयारी है उसका अंदाजा सोनिया, राहुल और प्रियंका के अलावा किसी एक और शख्स को है तो वो हैं कांग्रेस के बागी नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह.
सिद्धू नहीं, चन्नी नहीं तो फिर कौन बनेगा सीएम?
पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अभी भी अगर सीएम बनने की महत्वाकांक्षा पाले बैठे हैं तो इसका मतलब साफ है कि वह राजनीति में अभी भी नौसिखिए ही हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को क्लीन बोल्ड कर नवजोत सिंह सिद्धू ने जो काम किया है, वह पंजाब की सियासत में किसी और के बूते की बात नहीं थी. चाहे क्रिकेट का मैदान हो या फिर राजनीति का अखाड़ा, कैप्टन से बगावत की अदावत से नवजोत सिंह सिद्धू का नाता बहुत पुराना रहा है. याद करें तो 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब सिद्धू ने कांग्रेस का हाथ थामा था तब भी कैप्टन अमरिंदर की अगर चली होती तो सिद्धू की एंट्री नहीं होती.
2017 का चुनाव जीतने के बाद कैप्टन के ना चाहते हुए भी सिद्धू कैबिनेट मंत्री बने. उसके बाद बीते तीन साल में जो कुछ हुआ वह किसी से छिपा नहीं है. अंतत: कैप्टन को जाना पड़ा. तब शायद सिद्धू को भी नहीं पता था कि दिल्ली में बैठी गांधी परिवार की तिकड़ी ने उसके कंधे पर बंदूक सिर्फ कैप्टन अमरिंदर को निपटाने के लिए रखी थी. लिहाजा सिद्धू को अपनी जीत इसी में समझनी चाहिए कि वो पंजाब के प्रधान पद पर आज भी काबिज हैं. सिद्धू ने जिस तरह की बयानबाजी की है और जिस अंदाज में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का फैसला हाईकमान नहीं पंजाब के लोग तय करेंगे, वो ये भूल रहे हैं कि अगर हाईकमान को सिद्धू को सीएम बनाना होता तो सीएम पद से कैप्टन की विदाई के बाद वह एक दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी कराकर सिद्धू को उनकी हैसियत नहीं दिखाती. आज चन्नी की जगह पंजाब सिद्धू की लीडरशिप में चुनाव लड़ रहा होता.
कांग्रेस को पूर्ण बहुमत तभी चन्नी होंगे सीएम
इसमें कोई दो राय नहीं कि चरणजीत सिंह चन्नी कांग्रेस के लिए उपयोगी हैं लेकिन वो मुख्यमंत्री चुनाव बाद भी उसी परिस्थिति में बने रह सकते हैं जब कांग्रेस को पूर्ण बहुमत यानि स्पष्ट जनादेश मिल पाएगा. इसीलिए चन्नी कांग्रेस हाईकमान को बार-बार यह कहकर डरा रहे हैं कि पंजाब में कांग्रेस जिस भी चेहरे पर चुनाव लड़ना चाहती है उसकी घोषणा कर देनी चाहिए, वरना कांग्रेस चुनाव हार सकती है. चन्नी चाहते हैं कि हाईकमान उन्हें इस बात के लिए अधिकृत कर दे कि अगर पंजाब में कांग्रेस को जनादेश मिलता है तो चरणजीत सिंह चन्नी ही मुख्यमंत्री होंगे ताकि वो 32 प्रतिशत वोट बैंक वाली दलित मतदाताओं को समझा पाएं कि उनका नेता ही चुनाव लड़कर सीएम बनेगा.
दरअसल, पंजाब की राजनीति में दलितों और हिन्दुओं की उपेक्षा किस कदर होती रही है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि रामगढ़िया सिख बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले ज्ञानी जैल सिंह को छोड़ दें तो 1967 के बाद पंजाब में गैर जट कभी मुख्यमंत्री नहीं बना. जबकि जट सिख का मत प्रतिशत सिर्फ 19 प्रतिशत है. पंजाब की बदली राजनीतिक परिस्थिति में अब जबकि सबकी नजर राज्य के 70 प्रतिशत (38 प्रतिशत हिन्दू और 32 प्रतिशत दलित) वोटरों पर है, जिनके राजनीतिक नसीब में कभी सीएम की कुर्सी नहीं रही, कैप्टन को सिद्धू के हाथों क्लीन बोल्ड कराकर चन्नी को बतौर सीएम मैदान में उतार कांग्रेस ने अन्य पार्टियों से बाजी मार ली है.
अब कांग्रेस देखना चाहती है कि 32 प्रतिशत दलित और 38 प्रतिशत हिन्दू दलित सीएम चन्नी और हिन्दू डिप्टी सीएम ओपी सोनी पर कितना भरोसा जताते हैं. इतना ही नहीं सुखविंदर सिंह रंधावा जो जट सिख समुदाय से आते हैं उन्हें भी डिप्टी सीएम बनाया गया है. कांग्रेस हाईकमान ने 70 प्रतिशत के अलावा 19 प्रतिशत जट सिख मतदाता को भी साथ लाने की कोशिश की है. सूबे में कुल 34 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. लिहाजा कांग्रेस बिना सीएम उम्मीदवार घोषित किए यह परखना चाहती है कि पार्टी ने जो भरोसा इन नेताओं पर जताया है उनका कुल 89 प्रतिशत का वोट बैंक कांग्रेस के प्रति कितनी वफादारी करती है. मतलब साफ है, कांग्रेस को 117 सीटों वाली विधानसभा में 75 सीट तो चाहिए ही. कहने का मतलब यह कि स्पष्ट जनादेश वाली कांग्रेस में ही चन्नी खुद को सुरक्षित महसूस कर सकते हैं.
कैप्टन वाला समीकरण भी कम रोचक नहीं
पंजाब की पिच पर सीएम कुर्सी की रेस में कैप्टन अमरिंदर अभी भी बने हुए हैं. कैप्टन की तो बस एक ही दिली ख्वाहिश है और वह है अंतिम बार पंजाब के सीएम की कुर्सी. लेकिन जिस तरह का आत्मघाती मैच उन्होंने पंजाब में खेला है उसमें उनकी ख्वाहिश सिर्फ कांग्रेस हाईकमान ही पूरी कर सकती है और वो भी तब जब वह 15 से 20 सीटें अपनी पार्टी से जीतने में सफल होते हैं. मतलब यह कि कैप्टन की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस को अगर इतनी सीटें आती हैं तो तय मानिए कांग्रेस बहुमत से दूर रह जाएगी. क्योंकि आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल भी तो कुछ सीटें जीतेंगी ही. तो इस परिस्थिति में कांग्रेस के लिए कैप्टन अमरिंदर और कैप्टन अमरिंदर के लिए कांग्रेस उपयोगी हो जाएगी और सीएम बनने के लिए कैप्टन अमरिंदर अपनी पार्टी को कांग्रेस में मर्ज भी कर सकते हैं.
कांग्रेस को भी शायद कैप्टन को एक बार और सीएम बनाने में कोई ऐतराज नहीं होगा. सभी जानते हैं कि कैप्टन अमरिंदर का गांधी परिवार से किस तरह का नाता है. उस वक्त को कौन भूल सकता है जब 2014 में कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़ने से कतरा रहे थे, उस समय सोनिया गांधी के एक इशारे पर कैप्टन अमरिंदर अरुण जेटली के खिलाफ अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए थे और फिर वो न सिर्फ चुनाव लड़े, बल्कि उन्होंने जेटली को करारी मात भी दी थी. तो कांग्रेस हाईकमान इस तरह के तमाम समीकरणों पर नजर रखे हुए है. लिहाजा तमाम सियासी संभावनाओं और जोड़-तोड़ की राजनीति हालात से दो-दो हाथ करने के लिए कांग्रेस पार्टी चुनाव से पहले सीएम उम्मीदवार के नाम की घोषणा करने का रिस्क नहीं लेना चाहती है.
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