खबर है कि बीजेपी अमरिंदर सिंह से गठबंधन की पूरी कीमत वसूलने की फ़िराक में लगी है और पंजाब लोक कांग्रेस से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. भले ही बीजेपी कितना भी दावा करे, सच्चाई यही है कि उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में बीजेपी अभी भी पंजाब में काफी कमजोर है. इसका सबसे बड़ा कारण था शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन. दोनों दलों ने साथ मिल कर पांच बार चुनाव लड़ा और बीजेपी को अकाली दल ने कभी भी 117 सीटो में से 23 से अधिक सीट नहीं दी. सच्चाई यह भी है कि अकाली दल के साथ गठबंधन करने से पहले भी बीजेपी कभी भी पंजाब में सभी 117 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ी थी. 1992 के चुनाव में बीजेपी अधिकतम 66 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और बीजेपी का सर्वश्रेष्ठ प्रदार्शन 2007 के चुनाव में दिखा जब बीजेपी 23 में से 19 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही थी.
बीजेपी की जिद NDA को नुकसान पहुंचाएगी
कृषि कानूनों की आड़ में अकाली दल ने 2020 में बीजेपी से अपना 23 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया. बीजेपी भले ही दावा करती रही कि वह पंजाब के सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है, पर उसे अकाली दल की जगह किसी और दल के साथ गठबंधन की तलाश थी और यह तलाश अमरिंदर सिंह पर जा कर रुकी. पर अब बीजेपी पंजाब लोक काग्रेस से अधिक सीटों पर लड़ना चाहती है. हकीकत यह है कि बीजेपी के पास चुनाव में जमानत बचाने लायक भी पर्याप्त प्रत्याशियों का आभाव है. अगर बीजेपी अपने दम पर चुनाव लड़ती है तो उसका खाता खुलना भी मुश्किल हो जाएगा. वैसे भी पंजाब सिख बहुल प्रदेश है और बीजेपी को पंजाब में एक हिन्दू पार्टी के रूप में ही देखा जाता रहा है.
इस गठबंधन में एक तीसरी पार्टी भी शामिल है – शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) जिसके अध्यक्ष सुखदेव सिंह ढींढसा हैं जिन्होंने अकाली दल से अलग हो कर इस वर्ष मई के महीने में ही अपनी पार्टी का गठन किया था. ढींढसा को भी गठबंधन में कुछ सीट तो मिलेंगी ही. अगर बीजेपी अपनी जिद से पीछे नहीं हटती है तो फिर पंजाब में एनडीए की सरकार बनना असंभव है. वहीं दूसरी तरफ कैप्टन अमरिंदर सिंह हैं जिन्होंने पूर्व में अपने दम पर कांग्रेस पार्टी को चुनाव जिताया था. वह पंजाब के पुराने और जानेमाने कद्दावर नेता है. अमरिंदर सिंह सिखों के बीच लोकप्रिय भी हैं और किसान नेताओं से उनके अच्छे संबंध हैं.
बीजेपी पुरानी पार्टी होने के बावजूद भी कमजोर है
एक सुलझे हुए नेता की तरह अमरिंदर सिंह ने प्रस्ताव दिया है कि गठबंधन उसी को अपना प्रत्याशी बनाए जिसके जीतने की सम्भावना सबसे अधिक हो. इसका मतलब यह हुआ कि सीटों के बंदरबांट की जगह तीनों दल हर एक सीट से अपने प्रत्याशियों की लिस्ट ले कर आएं और उनमें से जो सबसे अधिक मजबूत पाया जाए उसे ही टिकट दी जाए, चाहे वह किसी भी दल का नेता हो. शायद यही सबसे बेहतरीन फार्मूला है, क्योंकि जहां पंजाब लोक कांग्रेस तथा शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) नए दल हैं और उनका यह पहला चुनाव होगा, बीजेपी पुरानी पार्टी होने के बावजूद भी कमजोर है.
पंजाब में वैसे भी इस बार चुनाव जीतना काफी कठिन साबित होने वाला है. इस बार हरेक सीट पर चौकोनिया चुनाव होने वाला है. मैदान में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तो होगी ही, उनके खिलाफ शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार तथा कैप्टन आरिंदर सिंह के नेतृत्व वाले गठबंधन का प्रत्याशी भी होगा. अगर बीजेपी को पंजाब की राजनीति में अपनी जगह बनानी है तो उसे अमरिंदर सिंह को ही आगे रखना पड़ेगा और अपनी जड़ें फैलानी होंगी. फ़िलहाल अमरिंदर सिंह की बातचीत सीटों के बंटवारे के बारे में केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत से चल रही है, जो कि बीजेपी के पंजाब प्रभारी हैं. शायद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा या फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पंजाब की उलझन को सुलझाने के लिए आगे आना होगा ताकि बिना और समय बर्बाद किए नया गठबंधन चुनाव प्रचार में जुट जाए. वर्ना बीजेपी की जिद या लालच के कारण कहीं ऐसा ना हो जाए कि बीजेपी खुद भी डूबे और साथ में अमरिंदर सिंह को भी ले डूबे.