दुष्कर्म को रोकने के लिए मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारणों पर देना होगा ध्यान
उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुआ दुष्कर्म और हत्या का मामला देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क।उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुआ दुष्कर्म और हत्या का मामला देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि हाथरस का यह मामला न तो पहला है, और न आखिरी। इस तरह की लगातार घटने वाली दुखद घटनाएं मानवता को लज्जित करने के साथ ही एक सभ्य समाज के निर्माण पर सवालिया निशान भी खड़ा करती हैं, क्योंकि जैसे ही हम एनसीआरबी यानी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डालते हैं, महिलाओं के प्रति दुष्कर्म के भयावह आंकड़े समाज की एक अलग ही तस्वीर को हमारे सामने पेश करता है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 2018 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,78,236 मामले दर्ज हुए। भारत में 2019 में प्रतिदिन दुष्कर्म के औसतन 87 मामले दर्ज हुए और साल भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज हुए जो 2018 की तुलना में सात प्रतिशत अधिक हैं। एनसीआरबी का आंकड़ा कहता है कि पिछले एक दशक में बालिकाओं या महिलाओं के खिलाफ अपराध में 44 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इससे तस्वीर का एक पक्ष ही उभरकर सामने आता है, क्योंकि ये वे आंकड़ें हैं जो दर्ज किए गए, लेकिन कई बार तो परिवार लोक लज्जा या प्रशासन के उपेक्षात्मक रवैये के कारण अपनी प्राथमिक रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करा पाता है।