समस्याएं और वितंडा

हम बचपन से यह सुनते आए हैं कि सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा। हम अपने देश को विश्व गुरु बनाएंगे, ऐसे दावे भी किए जाते हैं। लेकिन आज हम अपने चारों ओर देखते हैं

Update: 2022-04-28 05:54 GMT

Written by जनसत्ता: हम बचपन से यह सुनते आए हैं कि सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा। हम अपने देश को विश्व गुरु बनाएंगे, ऐसे दावे भी किए जाते हैं। लेकिन आज हम अपने चारों ओर देखते हैं तो ये दावे खोखले दिखाई देते हैं, इनमें कोई सच्चाई नजर नहीं आती। पूरे देश में एक तरह से अराजकता का माहौल बना हुआ है। समाज को जातियों और धर्मों के नाम पर, मंदिर-मस्जिद के नाम पर, तो कहीं बिजली-पानी के नाम पर लड़ाया जा रहा है। जो नेता स्वयं को समाजसेवी बताते हैं, वे ही नए-नए विवादों को जन्म दे रहे हैं। दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, जहां देखो अशांति और डर का माहौल बनाया जा रहा है।

देश वैसे ही इस समय कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। बिजली-पानी, पर्यावरण प्रदूषण, बेरोजगारी, खराब सड़कें, महामारी से संबंधित परेशानियां। जिन लोगों पर इन समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी है, वे अपनी ऊर्जा मंदिर-मस्जिद और हनुमान चालीसा पढ़ने जैसे मुद्दों पर खर्च कर रहे हैं। नेताओं की सोच बिल्कुल स्पष्ट है। उनको मालूम है कि लोकतंत्र में आम आदमी केवल भीड़ तंत्र का हिस्सा है। वे यह भी जानते हैं कि सत्ता का रास्ता समाज की दरारों से होकर गुजरता है। इसलिए समाज को बांट कर रखो। हम भी बंटे हुए हैं और अपने घरों में दुबके हुए भी! हमारे जीवन के मायने तभी हैं, जब हम इन समस्याओं को लेकर अपनी आवाज बुलंद करें।

देश में चार करोड़ से अधिक लंबित मुकदमों का होना एक गंभीर स्थिति है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण के हाल ही में किए गए प्रयास आशाजनक हैं। भारत में प्राकृतिक न्याय और विवेक-सम्मत ढंग से मुकदमे निपटाने की दिशा में पुरजोर कोशिशें होनी चाहिए, और इस संदर्भ में लोक अदालतों और कुटुंब अदालतों को नए सिरे से कारगर बनाने की जरूरत है। इससे जिला अदालतों के ऊपर गैर-फौजदारी मुकदमों का बोझ घटेगा और साथ ही गरीब लोग भी अनावश्यक न्यायिक भागदौड़ और खर्चे से बचेंगे।

इलेक्ट्रिक वाहन, रेलवे का विद्युतीकरण, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के तहत बढ़ती औद्योगिक गतिविधियां, स्मार्ट शहर, संपूर्ण व्यवस्था का डिजिटलीकरण आदि के प्रयास तभी सफल होंगे, जब हमारे पास बिजली होगी। मगर देश में बिजली की कमी बढ़ रही है। आम आदमी से लेकर उद्योग धंधों तक, सब बिजली कटौती से जूझ रहे हैं। अक्षय ऊर्जा पर पूरा जोर लगाने के बावजूद अब भी हम ताप बिजली पर ही निर्भर हैं। ये ताप बिजलीघर कोयले से चलते हैं और कमी के कारण कोयले का आयात करना पड़ता है। कोयले के आयात में बाधा या फिर दाम बढ़ने जैसे कारकों से ताप बिजलीघरों की क्षमता पर असर पड़ता है और देश में बिजली की कमी हो जाती है।

भारत पूरी दुनिया में रसोई गैस का पहला, कोयले का दूसरा, कच्चे तेल का तीसरा, तरल प्राकृतिक गैस का चौथा और प्राकृतिक गैस का चौदहवां सबसे बड़ा आयातक है। क्यों न सबसे पहले हम ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें, क्योंकि ऊर्जा के बिना हम किसी भी क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं बन सकते।


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