आत्मनिर्भरता का आधार है निजीकरण: यह समझने की जरूरत है रोजगार की पहली कसौटी है

आत्मनिर्भरता का मंत्र नए भारत के निर्माण का एक नया मूलमंत्र बन गया लगता है।

Update: 2021-02-18 16:36 GMT

आत्मनिर्भरता का मंत्र नए भारत के निर्माण का एक नया मूलमंत्र बन गया लगता है।इसकी अभिव्यक्ति वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत किए गए बजट में भी दिखाई दी और प्रधानमंत्री के संसद में दिए गए संबोधन में भी। इसमें उन्होंने निजीकरण का सहयोग लेने की वकालत करते हुए कहा कि यह सोच बीते युग की बात है कि सब कुछ सरकार करेगी। वित्त मंत्री ने आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार के जिस विजन को रखा, उसे समझने का प्रयास करें तो हमारे सामने आत्मनिर्भर भारत का स्पष्ट रोड मैप दिखाई देता है। 

सबका साथ, सबका विकास एवं सबका विश्वास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उद्योग, वाणिज्य, अवसंरचना, आर्थिक सुधारों की गति तेज करने और नई अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए निजीकरण एवं विनिवेश आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता हैं। इससे एक तरफ रोजगार के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलेगी तो दूसरी ओर समाज के सभी वर्गों के बेहतर जीवन स्तर के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, जल, स्वच्छता और कौशल की उपलब्धता के साथ-साथ ग्रामीण विकास को भी प्रोत्साहन मिलेगा। श्रम की उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र की कुशलता में भी महत्वपूर्ण वृद्धि होगी। इसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर की तरफ ही नहीं बढे़गी, बल्कि भारतीय युवाओं की आकांक्षाओं के अनुरूप नए भारत का निर्माण भी करेगी।



आत्मनिर्भरता के लिए सभी को रोजगार पहली कसौटी, निजी संस्थानों की भूमिका अहम

आत्मनिर्भरता के लिए सभी को रोजगार पहली कसौटी है। सीमित सरकारी नौकरियां एवं युवाओं की बढ़ती संख्या को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए निजी संस्थानों की भूमिका अहम हो जाती है। दिसंबर 2020 में 2.93 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले विनिर्माण क्षेत्र ने जनवरी 2021 में 2.97 करोड़ लोगों को रोजगार दिया। विनिर्माण क्षेत्र ही वृद्धि का इंजन बन सकता है। बशर्ते शोध एवं विकास द्वारा पुरानी नीतियों में सुधार के साथ इसे प्रोत्साहन दिया जाए। गैस पाइपलाइन, राजमार्ग, रेलवे, मेट्रो, विमानन आदि ऐसे क्षेत्र है, जिनमें रोजगार सृजन की अत्यधिक संभावनाएं हैं। सरकार निरंतर यह प्रयास कर रही है कि आत्मनिर्भर संभावना वाले उद्योगों की पहचान कर उनके निर्माण की क्षमता को बढ़ाकर रोजगार को बढ़ाया जा सके। श्रम उत्पादकता को बढ़ाने के लिए लोगों को कृषि से उद्योगों की तरफ मोड़कर भी रोजगार सृजन किया जा सकता है। इससे जहां कृषि क्षेत्र पर भार कम होगा तो अन्य उद्योगों का विस्तार होगा। आत्मनिर्भर भारत के लिए अर्थव्यवस्था को आधुनिक तकनीक से सुसज्जित होना होगा और बडे़ पैमाने पर युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण देना होगा।

आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में भारत ने सबसे लंबी छलांग स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगाई

आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में भारत ने सबसे लंबी छलांग स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगाई है। अमूमन एक वैक्सीन की खोज में पांच-छह साल लग जाते हैं। सीरम इंडिया एवं भारत बायोटेक द्वारा मात्र दस महीने में कोविड महामारी की दो-दो स्वदेशी वैक्सीन का बड़ी मात्रा में उत्पादन किसी ऐतिहासिक उपलब्धि से कम नहीं है। भारत ने दुनिया को यह भी दिखा दिया कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में नव प्रवर्तन और शोध एवं विकास में भारत विश्व के किसी भी देश से कम नहीं है। अवसंरचना की कमी स्वास्थ्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के मार्ग की बाधा है। इसके अलावा अस्पतालों, स्वास्थ्यकर्मियों की कमी, कम लोगों को बीमा सुरक्षा आदि कारणों का ऐसा चक्रव्यूह है, जहां से बिना निजी सहभागिता के बाहर नहीं निकला जा सकता। यद्यपि सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में गत वर्ष की तुलना में 2021 के बजट में वृद्धि की है, परंतु यह जनसंख्या के अनुपात एवं विकसित देशों की तुलना में अभी भी कम है। ऐसे में स्वास्थ्य के क्षेत्र में बुनियादी संरचना को मजबूत करने के लिए सार्वजनिक एवं निजी सहभागिता को और अधिक आकर्षक बनाया जाना चाहिए।
भारत विश्व में हथियारों का दूसरा बड़ा आयातक देश

पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार 2014 से 2019 तक भारत ने 16.75 अरब डॉलर के रक्षा उपकरणों का आयात किया। भारत विश्व में हथियारों का दूसरा बड़ा आयातक देश है। सरकार ने सौ से अधिक हथियारों एवं उससे संबंधित सामान के आयात पर प्रतिबंध ही नहीं लगाया, बल्कि देश में ही उनके उत्पादन को प्रोत्साहन भी दिया। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की असीम संभावनाओं पर खरा उतरते हुए निजी एवं विदेशी निवेशकों के आने के बाद से देश में उच्च तकनीक युक्त तोप, हल्के लड़ाकू विमान, मिसाइल आदि का उत्पादन प्रारंभ हो चुका है। इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के बाद न सिर्फ विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि उसका इस्तेमाल विकास कार्यों के लिए भी हो सकेगा। एक अनुमान के अनुसार 2025 तक देश का रक्षा क्षेत्र निजी क्षेत्र के सहयोग से न सिर्फ आत्मनिर्भर होगा, बल्कि भारत एक निर्यातक के रूप में भी उभरेगा। बजट में रक्षा क्षेत्र में 4.78 लाख करोड़ रुपये का आंवटन बताता है कि सरकार इस दिशा में गंभीरता से कार्य कर रही है।

आत्मनिर्भरता के लिए व्यय की गुणवत्ता को बढ़ाना होगा

आत्मनिर्भरता के लिए व्यय की गुणवत्ता को भी बढ़ाना होगा। यदि आज की परिस्थितियों में आठ-नौ प्रतिशत विकास दर को हासिल करना है तो बैंकों को अपने ऋण आवंटन में 14 से 15 प्रतिशत की वृद्धि करनी होगी। मौजूदा हालात में सरकारी बैंक ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में निजीकरण और सरकारी बैंकों का विलय ही सही उपाय है। बुनियादी ढांचे के लिए दीर्घ अवधि की पूंजी उपलब्ध करवाने में बीमा क्षेत्र अहम भूमिका निभा सकता है। बीमा क्षेत्र में एफडीआइ सीमा 74 प्रतिशत करने से इस क्षेत्र को नई पूंजी प्राप्त करने और करोबार बढ़ाने के साथ-साथ इसकी गुणवत्ता में भी सुधार होगा।

देश के विकास में बुनियादी संरचना की महत्वपूर्ण भूमिका

किसी देश के विकास में बुनियादी संरचना की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उद्योगों के विकास का सीधा प्रभाव देश की प्रगति को प्रभावित करता है। इसके लिए बहुत बड़े निवेश की आवश्यकता होगी, जो निजीकरण एवं विनिवेश के बिना कठिन है।


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