निजता पर नजर
इसी साल फरवरी में जब सरकार ने सूचना तकनीक कानून के तहत सोशल मीडिया की सामग्रियों से संबंधित नए प्रावधान लागू करने की घोषणा की थी,
इसी साल फरवरी में जब सरकार ने सूचना तकनीक कानून के तहत सोशल मीडिया की सामग्रियों से संबंधित नए प्रावधान लागू करने की घोषणा की थी, तभी यह साफ था कि इसमें निजता के मसले को लेकर कई सवाल उठेंगे। हालांकि सरकार का अब भी यह कहना है कि नए नियमों से आम लोगों की निजता का कोई हनन नहीं होगा, लेकिन सोशल मीडिया कंपनियां और खासतौर पर वाट्सऐप ने जिस तरह इसी मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है, उससे एक बार फिर निजता का सवाल विवाद के कठघरे में खड़ा हो गया है। हालत यह है कि इस मामले पर सरकार और सोशल मीडिया कंपनियां टकराव की मुद्रा में हैं।
वाट्सऐप का कहना है कि सरकार कानून के जिन प्रावधानों को लागू करने जा रही है, उससे लोगों की निजता सुरक्षित नहीं रहेगी। इस मसले पर वाट्सऐप ने दिल्ली हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वहीं कुछ दिन पहले फेसबुक ने यह घोषणा की थी कि वह भारत के सूचना तकनीक कानून में दर्ज प्रावधानों का अनुपालन करेगा। इससे कुछ देर के लिए लगा था कि संभवत: सरकार और सोशल मीडिया कंपनियों के बीच कोई समझ बन रही है और कोई बीच का रास्ता निकलेगा। लेकिन अब वाट्सऐप के ताजा रुख से मामला उलझता दिख रहा है। अब सरकार ने डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों को नए नियमों के अनुपालन पर ब्योरा देने के लिए पंद्रह दिनों का समय दिया है।
दरअसल, पूरे मामले में एक अहम पक्ष यह सामने आया है कि नए प्रावधानों के अमल में आने के बाद सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले लोगों की निजता किस हद तक सुरक्षित रहेगी। आशंका जताई जाती रही है कि सरकार कुछ परोक्ष रास्तों से लोगों की निजता और अभिव्यक्ति को निगरानी के दायरे में लाना चाहती है। लेकिन सरकार की ओर से यह भरोसा दिलाया जा रहा है कि नई व्यवस्था में सिर्फ वैसे संदेशों के स्रोत का पता लगाने की बात है, जिनसे हिंसा या अव्यवस्था फैलती है, देश की संप्रभुता को खतरा पैदा होता है या फिर अवांछित यौन या अश्लील सामग्रियों का प्रसार होता है। यों अब से पहले भी यह संभव रहा है, बस उसके लिए सरकार विशेष अधिकारों का प्रयोग करती रही है। लेकिन अब वाट्सऐप, फेसबुक या ट्विटर या दूसरी डिजिटल मीडिया कंपनियों को सरकार इससे संबंधित ब्योरों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ शिकायत और रिपोर्ट को लेकर एक ठोस तंत्र बनाने की बात कह रही है।
यों पिछले कुछ समय से वाट्सऐप अपने उपयोगकर्ताओं के लिए नए निजता नियमों को लेकर जिस तरह की स्वीकार्यता मांग रहा है, उस पर भी यही सवाल उठे हैं कि इससे लोगों की निजता जोखिम में रहेगी। मगर अब वाट्सऐप भारत के नए कानूनी प्रावधानों को निजता के लिहाज से सुरक्षित नहीं बता रहा है। इस जद्दोजहद में यह लगभग साफ है कि संवेदनशील मामलों की जांच या उन पर नजर के रास्ते एक ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश हो रही है, जिसमें चंद असामाजिक तत्त्वों की बेजा गतिविधियों के चलते सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले तमाम लोगों की निजता शायद जोखिम में रहे।
जाहिर है, 'आपत्तिजनक' की परिभाषा सरकार तय करेगी और उसकी नजर में जो सामग्री इस दायरे में होगी, उस पर नजर रखने के जरिए एक नई व्यवस्था बनेगी। इसमें क्या गारंटी है कि निगरानी के दायरे में साधारण लोगों की निजता के बाकी हिस्से नहीं आएंगे? ऐसी स्थिति में बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के क्या लोगों की अभिव्यक्ति के अधिकार सीमित नहीं होते चले जाएंगे? इसलिए नई व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिससे लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट नहीं पहुंचे और लोगों की निजता के हक की भी रक्षा हो।