दमन की सत्ता
चीन सरकार द्वारा हांगकांग के अखबार एप्पल डेली को आखिरकार बंद करा देना इस बात का एक और सबूत है
चीन सरकार द्वारा हांगकांग के अखबार एप्पल डेली को आखिरकार बंद करा देना इस बात का एक और सबूत है कि किस तरह सरकारें अपनी आलोचना को लेकर असहनशील होती जा रही हैं। यह अखबार लोकतंत्र समर्थक माना जाता था। वह हांगकांग शहर पर नियंत्रण बढ़ाने के खिलाफ लगातार लिखता रहता था। उसका यह रवैया चीन और हांगकांग सरकार को चुभ रहा था। फिर तो चीन सरकार ने झूठे आरोप लगा कर इस अखबार के मालिक को गिरफ्तार कर लिया। अखबार की सारी संपत्ति जब्त करने, उसके कार्यालय में तलाशी लेने और पांच संपादकों को भी गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया।
अखबार पर आरोप था कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहा है और उसकी विदेशों से मिलीभगत है। पिछले साल ही चीन सरकार ने वहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया था, जिसके आधार पर यह कार्रवाई की गई। हालांकि इस कानून के तहत वहां बहुत सारे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है, मगर आधुनिक लोकतंत्र के इतिहास में पहली बड़ी घटना है कि किसी सरकार ने किसी अखबार की आलोचना से असहज होकर उसे बंद होने पर मजबूर कर दिया। भले चीन सरकार इस तरफ से आंखें मूंद ले, पर उस अखबार की आखिरी प्रतियां खरीदने के लिए जिस तरह लोगों ने भीड़ लगा दी, वह अपने आप में एक लोकतांत्रिक देश के भीतर खदबदा रहे आजादी के जज्बे के फूट पड़ने का बड़ा संकेत है।
दो साल पहले हांगकांग में शहर पर से नियंत्रण हटाने और लोकतंत्र बहाली को लेकर व्यापक विद्रोह फूटा था। उसे दबाने के लिए चीन सरकार ने दमन का सहारा लिया था। बड़े पैमाने पर नौजवानों को जेलों में ठूंसा गया, बहुत सारे पुलिस और सेना की गोलियों के शिकार बने। उस घटना की पूरी दुनिया में घोर निंदा हुई थी। एप्पल डेली ने भी विद्रोहियों के समर्थन और सरकार के विरोध में लगातार टिप्पणियां प्रकाशित की। तभी से वह सरकार की आंखों में चुभ रहा था।
चीन सरकार किस तरह अपने विरोध में उठने वाली आवाजों को दबाने की कोशिश करती और मीडिया में सिर्फ वही बातें प्रकाशित-प्रसारित देखना चाहती रही है, जो उसकी प्रशंसा में हों, यह किसी से छिपा नहीं है। इसीलिए इंटरनेट माध्यमों पर भी उसने अंकुश लगा रखा है। एप्पल डेली ने उसका अंकुश मानने से इनकार किया और अखिरकार उसे बंद होना पड़ा। उसकी रोज करीब अस्सी हजार प्रतियां बिकती थीं, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह हांगकांग में कितना लोकप्रिय अखबार था। जिस दिन बंद हुआ उस दिन उसकी दस लाख प्रतियां बिक गईं।
लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई दी जाती है, मगर यह भी छिपी बात नहीं है कि सरकारें अपने विरोध में उठने वाली आवाजों से असहज हो ही जाती हैं। लिहाजा किसी न किसी रूप में अभिव्यक्ति की आजादी को प्रभावित करने का प्रयास करती रही हैं। चाहे वह प्रलोभन देकर हो या फिर किसी तरह का अंकुश लगा कर या फिर दमन के जरिए। भारत में भी अपातकाल के समय मीडिया और सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने वालों पर अंकुश लगाने का प्रयास इसी का नतीजा था।