सत्ता और चुनौतियां

वहां चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद जिस तरह से मुख्यमंत्री पद के लिए जोर आजमाइश शुरू हो गई थी, उससे लगा था कि पार्टी में दरार आ सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहे थे। धमकियां भी दी जाने लगी थीं कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया, तो उनके समर्थक विधायक पार्टी छोड़ने का फैसला कर सकते हैं।

Update: 2022-12-12 05:00 GMT

Written by जनसत्ता; वहां चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद जिस तरह से मुख्यमंत्री पद के लिए जोर आजमाइश शुरू हो गई थी, उससे लगा था कि पार्टी में दरार आ सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहे थे। धमकियां भी दी जाने लगी थीं कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया, तो उनके समर्थक विधायक पार्टी छोड़ने का फैसला कर सकते हैं।

मगर इसमें कई तकनीकी, व्यावहारिक और रणनीतिक दिक्कतें थीं। पहली बात तो यह कि वे विधायक नहीं हैं, मंडी लोकसभा सीट से सांसद हैं। उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का मतलब था कि एक संसदीय सीट और एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराने पड़ते। फिर सरकार चलाने के लिए केवल विरासत काम नहीं आती, उसके लिए नेतृत्व का गुण और सबको साथ लेकर चलने का कौशल भी होना चाहिए। दूसरी दावेदारी वहां के वरिष्ठ नेता मुकेश अग्निहोत्री की भी चल रही थी। मगर पार्टी आलाकमान ने बहुत सलीके से इस पेचीदगी को सुलझाया और सुखविंदर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री और मुकेश अग्निहोत्री को उपमुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंप कर संतुलन साधने का प्रयास किया।

एक स्वस्थ लोकतंत्र में राजनीतिक नेतृत्व की दावेदारी अच्छी बात है। मगर आजकल जिस तरह भारतीय राजनीति का मिजाज बदलता गया है, उसमें इस तरह राजनेताओं की जोर आजमाइश को पार्टी में अनुशासन की कमी माना जाने लगा है। इसका फायदा प्रतिद्वंद्वी पार्टियां उठाती देखी जाती हैं। इसलिए हिमाचल में मुख्यमंत्री पद को लेकर चले संघर्ष से स्वाभाविक ही पार्टी में टूट और बिखराव की आशंकाएं पैदा हुर्इं।

हालांकि वहां लोकतंत्र के लिए एक अच्छी मिसाल यह भी देखी गई कि विधायकों ने खुद हिमाचल से बाहर जाकर नहीं, बल्कि वहीं रह कर मामले को निपटाने पर जोर दिया और केंद्रीय नेतृत्व पर भरोसा जताया। शपथ ग्रहण के बाद दोनों नेताओं ने साथ मिल कर हिमाचल की बेहतरी के लिए काम करने का संकल्प दोहराया। हालांकि वहां के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री में राजनीतिक तालमेल का अभाव और वर्चस्व की लड़ाई कभी देखी नहीं गई, जिसके आधार पर आने वाले दिनों में किसी तरह की आशंका जताई जा सके। उपमुख्यमंत्री पद वीरभद्र सिंह के करीबी रहे मुकेश अग्निहोत्री को देकर एक तरह प्रतिभा सिंह को भी संतुष्ट किया गया है। मगर राजनीति में चुनौतियां कभी खत्म नहीं होतीं।

हिमाचल की नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी उन वादों को पूरा करना, जो चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस ने किए थे। पुरानी पेंशन योजना लागू करना, फल उत्पादकों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराना, उनकी उपज की वाजिब कीमत दिलाना और नई नौकरियां देना बड़ी चुनौती हैं। जिन राज्यों का मिजाज बारी-बारी से सरकार बदलने का होता है, वहां सरकारों के सामने बेहतर प्रदर्शन की चुनौतियां हमेशा बनी रहती हैं।

ऐसे में चुनाव के वक्त कांग्रेस ने जो वादे किए हैं, उन्हें पूरा नहीं किया गया, तो विरोध के स्वर फूटने शुरू हो जाएंगे। पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वादा पूरा करने के लिए सबसे पहले सरकार को आवश्यक धन की व्यवस्था करनी होगी। फिर नए रोजगार का सृजन बड़ी चुनौती है। उसके लिए निवेश को बढ़ावा देना होगा, जो आसान काम नहीं है। हालांकि सुखविंदर सिंह सुक्खू अनुभवी और संतुलित नेता हैं, मगर उनकी असली कसौटी इन वादों पर खरा उतरने की है।

 

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