गरीब का राशन
सुप्रीम कोर्ट ने ‘एक देश एक राशन कार्ड’ योजना लागू करने की समय सीमा तय कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने 'एक देश एक राशन कार्ड' योजना लागू करने की समय सीमा तय कर दी है। अब सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इसे 31 जुलाई तक लागू करना है। केंद्र सरकार ने एक जनवरी 2020 को बारह राज्यों में इस योजना को लागू किया था। उसके बाद अन्य राज्यों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया। लेकिन डेढ़ साल बीत जाने के बावजूद चार राज्यों ने इसे अब तक लागू नहीं किया है।
इनमें असम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और देश की राजधानी दिल्ली है। इसे बिडंबना ही कहा जाएगा कि जिस राजधानी में योजनाएं बनने और लागू होने का काम होता है, वहीं यह योजना अब तक लागू नहीं हो पाई है। जबकि दिल्ली में प्रवासी और असंगठित कामगारों की संख्या लाखों में है। गौरतलब है कि 'एक देश एक राशन कार्ड' योजना प्रवासी और असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए इसलिए बनाई गई थी ताकि कोई भी कामगार अपने कार्ड पर देशभर में किसी भी राज्य में कहीं से भी राशन ले सके। योजना का मकसद हरेक को भोजन सुनिश्चित कराना है। पर दुख की बात यह है कि इस योजना को जिस प्रभावी तरीके से लागू किया जाना था, उसमें उल्लेखनीय प्रगति दिखाई नहीं दी। इसलिए अब सर्वोच्च अदालत के दखल से हो सकता है कि सरकारें हरकत में आएं और गरीबों को उनका हक मिलने की दिशा में काम तेजी से बढ़े।
पिछले साल मई और जून में प्रवासी मजदूरों को जिस यातना से गुजरना पड़ा था, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। पूर्णबंदी के दौर में करोड़ों कामगार बेरोजगार हो गए थे और घरों को लौट गए थे। लोगों को कई-कई दिन बिना भोजन के गुजारने पड़ गए। कई जानें भी गईं। इन्हीं सब घटनाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और सामाजिक संगठनों ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया था। अगर तब तक एक देश एक राशन कार्ड योजना पूरे देश में लागू हो चुकी होती तो इसके हकदार लाभ उठा पाते और बड़ी संख्या में लोग भूखे न सोते। इसलिए सर्वोच्च अदालत ने अब साफ कहा है कि यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि भूख से किसी की जान न जाए। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस योजना को प्रभावी तरीके से लागू करना ही होगा। अदालत ने भोजन के अधिकार को जीवन के अधिकार में शामिल बताया है। इसलिए प्रवासी कामगारों को अब राशन और खाना कैसे मिले, यह राज्य सरकारों को देखना होगा।
प्रवासी मजदूर रोजी-रोटी के इसलिए शहर जाते हैं। लेकिन काम की जगहों से लेकर सरकारों के स्तर पर उन्हें बाहरी के रूप में देखा जाता है। ज्यादातर लोगों की नौकरी पक्की नहीं होती। ऐसे में वे सामाजिक सुरक्षा के दायरे में भी नहीं आ पाते और सरकारी योजनाओं के लाभ से भी वंचित रहते हैं। हालत यह है कि केंद्र सरकार अभी तक ऐसा पोर्टल भी नहीं बना पाई है जिस पर प्रवासी कामगारों का पंजीकरण हो। इसलिए अदालत ने केंद्र सरकार से 31 जुलाई तक ऐसा पोर्टल बनाने को कहा है जिस पर देश के सारे कामगारों के आंकड़े हों। केंद्र व राज्य सरकारों के पास कामगारों का ब्योरा नहीं होना इस हकीकत को दर्शाने के लिए काफी है कि रोज कमाने-खाने वाले तबके के प्रति हमारी सरकारों का रवैया कैसा है। किसी योजना का बनना और उनका लागू होना आखिरी इसी मकसद के लिए तो होता है कि हकदारों तक उनका फायदा पहुंचे। वरना ऐसी योजनाओं का क्या मतलब जो कागजों में चलती रहें और लोग रोटी को तरसते रहें!