सियासी बिसात : कांग्रेस के पास विकल्प क्या है

आज ममता को नेता मानने से कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी।

Update: 2021-12-08 01:54 GMT

इन दिनों संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है, लेकिन राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है। मानसून सत्र के दौरान हुए हंगामे और अनुशासनहीनता के आरोप में राज्यसभा के 12 विपक्षी सांसदों को निलंबित करने के खिलाफ लगभग समूचा विपक्ष एकजुट होकर विरोध कर रहा है। ऐसा बहुत कम होता है कि पिछले सत्र के हंगामे और कथित अनुशासनहीनता के खिलाफ अगले सत्र में सांसदों को निलंबित किया जाए।

विपक्ष ने इस फैसले की निंदा करते हुए सांसदों के निलंबन को अलोकतांत्रिक बताया है। प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इसमें प्रमुख भूमिका निभा रही है। तीनों कृषि कानूनों को भी बिना बहस के रद्द करने के खिलाफ भी कांग्रेस मुखर रही और किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों की मौत के मुआवजे की मांग की। कृषि कानूनों को रद्द करने का प्रधानमंत्री का फैसला वाकई अच्छा कदम है, लेकिन संसद चल रही हो और बहस ही न हो, तो फिर उसका क्या मतलब है!
लेकिन एक सोची-समझी रणनीति के तहत तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी खुद को कांग्रेस से अलग दिखाना चाहती हैं और उन्होंने कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है। एक तो वह हर जगह कांग्रेस के लोगों को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कर रही हैं। मेघालय में तो तकरीबन पूरी पार्टी को ही तृणमूल कांग्रेस ने अपने में मिला लिया। मोटे तौर पर ममता ने साफ भी कर दिया है कि वह क्षेत्रीय दलों को तोड़ने का काम नहीं करेंगी, बल्कि जहां कांग्रेस भाजपा के खिलाफ लड़ नहीं पा रही है, वहां वह कांग्रेसी नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करेंगी।
इस तरह से स्पष्ट है कि कांग्रेस उनके निशाने पर है। दरअसल ममता बनर्जी चाहती हैं कि कांग्रेस की जगह ली जाए। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि कांग्रेस के बिना 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष में एकजुटता नहीं हो सकती है। ऐसे में वह चाहेंगी कि कांग्रेस से ज्यादा मजबूत हो जाएं और तब कांग्रेस के साथ सौदेबाजी करें। लेकिन उन्होंने जो कांग्रेस पर प्रहार किया है, वह काफी तीखा है। यह कहना कि कांग्रेस डीप फ्रीज की स्थिति में है, का तात्पर्य है कि कांग्रेस भाजपा के खिलाफ कुछ कर ही नहीं पा रही है।
हालांकि ममता की इस तीखी आलोचना में कुछ तथ्य भी हैं। सात साल हो गए हैं, लेकिन देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कुछ नहीं कर रही है और ढाई साल से पार्टी के पास अध्यक्ष नहीं है। लेकिन सब आराम से बैठे हुए हैं। ऐसे में वह भाजपा को कैसे टक्कर दे पाएगी? यानी कांग्रेस में इच्छाशक्ति की भारी कमी है। उत्तर प्रदेश में तो कई साल हो गए हैं, कांग्रेस की सरकार ही नहीं बनी है। जुलाई, 2013 में भाजपा ने अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा था और मई, 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा को 71 सीटों पर जीत दिलाई, जबकि पार्टी के पास राज्य में मात्र दस लोकसभा सीटें थीं।
उस समय भाजपा सत्ता में नहीं थी, केंद्र में यूपीए की सरकार थी। लेकिन इच्छाशक्ति और जुझारूपन के साथ अंमित शाह ने मात्र दस-ग्यारह महीने में न केवल पार्टी को खड़ा कर दिया, बल्कि भारी सफलता भी दिलाई। वह चीज कांग्रेस में नहीं है। ममता ने राहुल गांधी पर यह कहते हुए प्रहार किया कि बार-बार विदेश जाकर पार्टी को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ प्रशांत किशोर ने भी कहा कि आपके पास कोई दिव्य अधिकार नहीं है कि आप विपक्ष का नेतृत्व करेंगे। कहने का मतलब कि ममता अब खुलकर खुद को विपक्ष के नेतृत्व की भूमिका के लिए पेश कर रही हैं। ऐसे में, कांग्रेस के पास क्या विकल्प बचा है?
कांग्रेस के सामने एक उपाय तो यह है कि वह ममता बनर्जी को मोदी के खिलाफ विपक्ष के नेता के रूप में स्वीकार कर ले, क्योंकि राहुल गांधी को क्षेत्रीय पार्टियां अपने नेता के रूप में स्वीकार नहीं करेंगी। अगर 2024 में कांग्रेस को 150 से 170 तक सीटें आती हैं, तभी राहुल गांधी स्वीकार्य हो सकते हैं। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ, तो क्या क्षेत्रीय दलों की मांग पर कांग्रेस राहुल के बजाय पार्टी के किसी अन्य नेता को आगे करेगी?
सोनिया गांधी के लिए पार्टी के भीतर राहुल के खिलाफ किसी दूसरे नेता को आगे करने से बेहतर होगा कि वह ममता बनर्जी को ही नेता मान लें। पर समस्या यह भी है कि सोनिया यदि आज ममता बनर्जी को नेता मान लेती हैं, तो कांग्रेस के नेता और भी ठंडे पड़ जाएंगे। ऐसे में कांग्रेस का जो आक्रामक रूप और रवैया होना चाहिए, उस पर असर पड़ेगा। अगर वर्ष 2024 में चुनाव से पहले या चुनाव के बाद ममता को नेता स्वीकार करें, तो यह एक अलग बात होगी।
जो असली उपाय है कांग्रेस के पास, वह है खुद को मजबूत बनाना और अपना विस्तार करना, जैसे कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी करने की कोशिश कर रही हैं। कांग्रेस 135 साल पुरानी पार्टी है, अब भी इसके पास बहुत लोग हैं, इसलिए ऐसा वह भी कर सकती है। लेकिन पार्टी के नेता बहुत निराश हो रहे हैं। जैसे गुलाम नबी आजाद ने खुलेआम कहा कि 2024 में कांग्रेस को 300 से अधिक सीटें आती नहीं दिख रही हैं, इसका मतलब है कि उन्हें कोई रास्ता दिख ही नहीं रहा है।
इसलिए यह जरूरी है कि कांग्रेस पहले खुद को मजबूत करे, सड़कों पर उतरे, लोगों के बीच जाए, मुद्दों को उठाए, लेकिन इसका उल्टा ही दिख रहा है। राहुल गांधी ट्वीट करके भाजपा पर तीखा हमला बोलते हैं, लेकिन उस ट्वीट से पार्टी तो खड़ी नहीं होगी। लगता है, उन्होंने यह मान लिया है कि कांग्रेस पर से वे अपना नियंत्रण नहीं जाने देंगे और भाजपा से नाराज होकर जनता एक दिन उन्हें मौका देगी। भले गांधी परिवार पार्टी पर अपना नियंत्रण बनाए रखे, लेकिन किसी भरोसेमंद, अनुभवी नेता को कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में ले आए।
लेकिन लगता है कि किसी पर भरोसा ही नहीं बचा है। यह ठीक है कि गांधी परिवार के बिना कांग्रेस नहीं चल सकती, क्योंकि तब पार्टी के टूटने का खतरा पैदा हो जाएगा। लेकिन गांधी परिवार की मर्जी से किसी को नेता बनाया जा सकता है और उसे स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए, तो पार्टी फिर से खड़ी हो सकती है। अगर किसान राजनीति में नई ऊर्जा ला सकते हैं, तो कांग्रेस क्यों नहीं कर सकती? सड़कों पर उतरने के लिए भीतर आग होनी चाहिए, लड़ने का जुझारूपन चाहिए, जिसकी फिलहाल कांग्रेस में कमी दिखती है। कुल मिलाकर कांग्रेस के पास यही विकल्प है कि वह पहले खुद को मजबूत करे और आगे जाकर ममता को नेता के रूप में स्वीकार करे। आज ममता को नेता मानने से कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी।

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