PM Modi In US: मोदी और बाइडेन की दोस्ती भी क्या परवान चढ़ेगी?
2014 में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के प्रधानमंत्री बनने से पहले तक अमेरिका ने प्रधानमंत्री मोदी पर बैन लगा रखा था
संयम श्रीवास्तव। 2014 में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के प्रधानमंत्री बनने से पहले तक अमेरिका ने प्रधानमंत्री मोदी पर बैन लगा रखा था, लेकिन 2014 में जैसे ही नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने उसके बाद न सिर्फ उन पर लगा बैन हटा, बल्कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपतियों से ऐसी दोस्ती की कि वह आज भी याद की जाती है. भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की पहली मुलाकात अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से हुई थी. बराक ओबामा के साथ मोदी के दोस्ती के कई किस्से हैं. एक इंटरव्यू में मोदी ने खुद कहा था कि ओबामा और वह बहुत खास दोस्त हैं और उनकी वेवलेंथ बहुत स्पेशल है.
उसके बाद जब 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बने तब उनके साथ भी प्रधानमंत्री की दोस्ती खूब गहरी हुई. हाउडी मोदी जैसे कार्यक्रम के जरिए डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी ने अपनी दोस्ती की ताकत पूरी दुनिया को दिखाई. अब अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति जो बाइडेन से नरेंद्र मोदी की पहली मुलाकात होने वाली है, जिस पर पूरी दुनिया की नजर है. हालांकि इससे पहले नरेंद्र मोदी जो बाइडेन (Joe Biden) से तीन बार फोन पर बातचीत कर चुके हैं और दो बार वर्चुवली मीटिंग के जरिए मुलाकात कर चुके हैं. हालांकि आमने-सामने यह नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन की पहली मुलाकात होगी. इस दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरीसन, जापान के पीएम योशीहिदे सुगा और अमेरिकी कंपनियों के सीईओ से भी मुलाकात करेंगे.
अपनी यात्रा से पहले ही मोदी ने दोस्ती की नींव रख दी
प्रधानमंत्री मोदी बुधवार को अमेरिका के दौरे पर रवाना हुए थे हालांकि इससे पहले ही उन्होंने एक बयान जारी कर संदेश दे दिया था कि यह दौरा अमेरिका से भारत की स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप को और मजबूत करेगा. पीएम मोदी ने कहा था, मैं अमेरिका के महामहिम राष्ट्रपति जो बाइडेन के निमंत्रण पर 22 सितंबर से 25 सितंबर तक यूएसए का दौरा करूंगा. इस दौरान राष्ट्रपति जो बाइडेन और मैं वैश्विक रणनीतिक साझेदारी और आपसी हितों के क्षेत्रीय और ग्लोबल मुद्दों पर विचार साझा करेंगे. पीएम मोदी ने अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मिलने की भी उत्सुकता जाहिर की और कहा कि उनके साथ विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहयोग के अवसरों पर चर्चा होगी.
हालांकि इन सबसे पहले नरेंद्र मोदी ने 17 नवंबर को जब जो बाइडेन की जीत हुई थी तब उन्हें फोन कर बधाई देकर अपनी मित्रता का आवाहन कर दिया था. इसके बाद 8 फरवरी को कोविड के हालात को लेकर जो बाइडेन से फोन पर बात हुई. फिर 26 अप्रैल को कोविड पर जो बाइडेन से फोन पर चर्चा हुई. 12 मार्च को क्वॉड मीटिंग के दौरान भी नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन की वर्चुवली मीटिंग हुई थी, इसके बाद 22 अप्रैल को भी क्लाइमेट चेंज को लेकर दोनों नेताओं के बीच वार्ता हो चुकी है.
दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली नीति से भी बनेगा काम
अमेरिका चीन के विस्तारवादी रवैया को लेकर हमेशा खफा रहता है और भारत भी चीन के विस्तारवादी नीतियों की वजह से परेशान रहता है. अमेरिका को मालूम है कि अगर चीन को जवाब देना है तो भारत को अपने साथ लेकर चलना होगा और भारत को भी पता है कि अगर हिंद और प्रशांत महासागर में चीन की हरकतों पर रोक लगानी है तो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों का साथ उसे चाहिए होगा. इस वजह से भी अमेरिका और भारत की दोस्ती इस दौरे के बाद और मजबूत हो सकती है. वैसे भी नरेंद्र मोदी दुनिया में अपनी दोस्ती के लिए जाने जाते हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जितने देशों के बड़े नेताओं से नरेंद्र मोदी की पर्सनल दोस्ती है, उतना शायद ही किसी नेता की होगी. नरेंद्र मोदी जब सरकार में आए थे तो विपक्ष का सबसे बड़ा हमला उनकी विदेश नीति पर था, क्योंकि देश के बुद्धिजीवी वर्ग को लगता था कि नरेंद्र मोदी भारत की विदेश नीति को संभाल नहीं पाएंगे. हालांकि आज मोदी सरकार में जो सबसे ज्यादा मजबूत स्तंभ माना जाता है, वह है भारत की विदेश नीति.
कई बड़े मुद्दों पर होगी बातचीत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय दौरे के दौरान क्वॉड देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात करेंगे. जिसमें नई टेक्नोलॉजी, साइबर सिक्योरिटी, मानवीय सहायता और डिजास्टर मैनेजमेंट, समुद्री सुरक्षा, क्लाइमेट चेंज जैसे बड़े मुद्दे शामिल होंगे. हालांकि इसके साथ साथ चीन की चुनौती का किस तरह से क्वॉड देश साझा रूप से सामना करेंगे इस पर भी बातचीत होगी. क्योंकि चीन फिलहाल अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों को तो परेशान कर ही रहा है. लेकिन वह मलेशिया, फिलीपींस, ब्रूनेई, ताइवान और जापान जैसे छोटे देशों को भी आंख दिखा रहा है. इसलिए उसे करारा जवाब देना जरूरी हो गया है.
पीएम मोदी से दोस्ती करने पर जो बाइडेन को फायदा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ही गुरुवार को वॉशिंगटन डीसी पहुंचे वहां मौजूद बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीयों ने पीएम का स्वागत किया. वहां मौजूद लोग मोदी मोदी के नारे लगा रहे थे. दरअसल अमेरिका में इस वक्त 1.2 फ़ीसदी भारतीय-अमेरिकी हैं, जो उसी का समर्थन करते हैं जिसकी दोस्ती भारत से या फिर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होती है. जो बाइडेन अगर पीएम मोदी से अपनी दोस्ती बरकरार रखते हैं और एक घनिष्ठ मित्रता वाले संबंध को बनाते हैं तो आने वाले समय में इसका उन्हें राजनीतिक फायदा भी मिल सकता है.
ट्रंप इस फायदे को जानते थे इसीलिए उन्होंने नरेंद्र मोदी से अपने दोस्ती को अमेरिका के चुनाव में खूब भुनाने की कोशिश. हालांकि चुनाव में उन्हें शिकस्त जरूर मिली. लेकिन उन्होंने जिस मकसद से नरेंद्र मोदी की दोस्ती को अपने चुनावी रणनीति में इस्तेमाल किया था उसका उन्हें फायदा मिला था. यानि कि उन्हें भारतीयों का समर्थन मिला था.
AUKUS को लेकर भारत का रुख
ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका ने मिलकर जब से एक नया सामरिक मंच बनाया है, तब से भारत इसे लेकर चिंतित है. दरअसल भारत इस चिंता में है कि कहीं आकुस की वजह से क्वॉड पर असर ना पड़े. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय दौरे में इस बात का भी जिक्र कर सकते हैं कि अमेरिका आकुस के आगे क्वॉड को ना भूल जाए. हालांकि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन लगभग आधी सदी से एक साथ सामरिक, सैन्य और कूटनीतिक मोर्चों पर काम करते आए हैं. वहीं दूसरी ओर फ्रांस इसे पीठ में छुरा घोंप ने जैसा मानता है. दरअसल फ्रांस की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण है ऑस्ट्रेलिया का अमेरिका और ब्रिटेन के साथ परमाणु पनडुब्बियों का सौदा. ऑस्ट्रेलिया इस सौदे से पहले फ्रांस से सौदा कर चुका था कि वह उससे डीजल रहित पनडुब्बी खरीदेगा, लेकिन अब ऑस्ट्रेलिया ने इस सौदे को तोड़कर ब्रिटेन और अमेरिका के साथ नया सौदा कर लिया है. जिससे फ्रांस काफी नाराज है.