PM Modi in US: क्यों हो रहा है मोदी-बाइडेन मुलाकात से चीन के पेट में दर्द

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) कल अपने तीन दिवसीय अमेरिकी (America) दौरे पर रवाना हो गए

Update: 2021-09-23 06:56 GMT

अजय झा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) कल अपने तीन दिवसीय अमेरिकी (America) दौरे पर रवाना हो गए. पिछले डेढ़ सालों में, जबसे पूरा विश्व कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के चपेट में आया है, यह मोदी का मार्च में बांग्लादेश दौरे के बाद दूसरा विदेशी दौरा है. मोदी का अब तक का रिकॉर्ड रहा है, वह पैसों की बचत करने के लिए अपने विदेशी दौरों में कम समय में अधिकतम काम करने का प्रयास करते हैं. इस बार वह अमेरिका के अलावा किसी और देश में नहीं जायेंगे पर वहां उनका काफी व्यस्त कार्यक्रम है, जिसमे से तीन प्रमुख हैं, संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनका संबोधन, क्वॉड सम्मेलन में हिस्सा लेना और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ द्विपक्षीय बातचीत, जो शायद सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस वर्ष जनवरी में राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के बाद यह राष्ट्रपति बाइडेन और प्रधानमंत्री मोदी की यह पहली आमने-सामने की मुलाकात होगी.

सबसे दिलचस्प है चीन की चुप्पी. दुनिया के किसी भी कोने में कुछ भी हो रहा हो उस पर चीनी विदेश मंत्रालय टिका-टिप्पणी करने के लिए कुख्यात है. चीन की चुप्पी समझी भी जा सकती है. पूरे विश्व की नज़र मोदी-बाइडेन की मीटिंग पर टिकी है. अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी का अगर किसी देश पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की आशंका है तो वह भारत ही है, खासकर जिस तरह से पाकिस्तान और चीन अफगानिस्तान में तालिबान को कंट्रोल करने की कोशिश में जुटा है. मोदी-बाइडेन मीटिंग में क्षेत्रीय सुरक्षा पर चर्चा एक प्रमुख एजेंडा है. भारत का यह सोचना कि पाकिस्तान और चीन तालिबान को भारत में आतंकवाद को बढ़ाने की कोशिश करेगा जायज है. इस बातचीत के बाद ही पता चलेगा कि क्या भारत को अकेले ही इससे जूझना है या फिर अमेरिका इसमें भारत के साथ है.
क्या मोदी-बाइडेन की दोस्ती पक्की होगी?
गौरतलब है कि 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बाइडेन अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति बने हैं. मोदी के पूर्व में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प के साथ घनिष्ट सम्बन्ध थे. अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के ठीक पहले ट्रम्प भारत के दौरे पर आये थे, यह सोच कर कि इससे अमेरिका में भारतीय मूल के निवासी उनके पक्ष में मतदान करेंगे. इससे पूर्व अपने एक अमेरिकी दौरे पर मोदी ने अमेरिका की जमीन से "अबकी बार ट्रम्प सरकार" का नारा भी दिया था. स्वाभाविक है कि बाइडेन के मन में कहीं ना कहीं भारत के प्रति शंका है.
चीन और रूस हमेशा से कहते आए हैं कि अमेरिका भारत का मित्र नहीं है, बल्कि वह भारत का इस्तेमाल कर रहा है. संभव है कि यह सच भी हो. किसी भी देश की विदेश नीति अपने राष्ट्र के हित से जुड़ी होती है. रूस (सोवियत यूनियन) पूर्व में भारत का हितैषी सिर्फ इसलिए था ताकि शीत युद्ध में अमेरिका भारत को पाकिस्तान की तरह अपनी ओर प्रभावित ना कर ले. और चीन के मुंह से दोस्ती शब्द जंचता नहीं है. खासकर यह देखते हुए कि कैसे चीन ने 1962 में हिन्दी-चीन भाई-भाई नारे के बीच भारत की पीठ पर छुरा घोंप दिया था और भारत के हजारों किलोमीटर भूभाग पर अधिग्रहण कर लिया.
सरकार बदलने के बाद भी नहीं बदलती विदेश नीति
मोदी ने पूर्व की बात भुला कर चीन के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने की कोशिश की पर बदले में लद्दाख में चीन ने अपनी सेना को भारतीय जमीन पर कब्ज़ा करने को भेज दिया था, जिसका भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में ना ही कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है ना ही स्थायी दुश्मन. किसी भी देश की विदेश नीति सरकार बदलने से बहुत ज्यादा नहीं बदलती है. यह बात चीन को भी पता है. अभी किसी को पता नहीं कि क्या मोदी और बाइडेन उसी गर्मजोशी के साथ मिलेंगे जिस तरह मोदी-ओबामा या फिर मोदी-ट्रम्प मिलते थे. कोरोना महामारी के मद्देनजर यह संभव है कि मोदी की जादुई झप्पी इस बार देखने को ना मिले, पर इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि भारत-अमेरिका सम्बन्ध में खटास आ गयी है.
अमेरिका का चीन के प्रति कड़ा रुख
करोना महामारी ने भारत और अमेरिका को और भी नज़दीक ला दिया है, क्योंकि विश्व के इन दोनो सबसे बड़े प्रजातंत्र को इसके कारण सबसे अधिक क्षति उठानी पड़ी है. राष्ट्रपति बाइडेन ने कुछ समय पूर्व अमेरिकी ख़ुफ़िया तंत्र को यह जांच करने का आदेश दिया था की वह पता करे कि क्या कोरोना वायरस चीन के किसी लेबोरेट्री में बना था और क्या उसे जानबूझ कर लीक कर दिया गया था. अमेरिका में बाइडेन सरकार बनने के बाद अमेरिका का चीन के प्रति उसके रुख में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है.
चीन की उम्मीद रहेगी कि मोदी-बाइडेन वार्ता से उसे कोई नुकसान ना हो, अगर भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में कहीं दरार दिखती है तो उससे चीन और पाकिस्तान में जश्न का माहौल बन जाएगा. पर ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं है. अमेरिका और चीन के बीच सुपर पावर की जंग चल रही है जिसमें भारत की एक अहम् भूमिका है. अमेरिका को चीन के खिलाफ इस जंग में भारत की जरूरत है. लिहाजा मोदी के अमेरिकी दौरे से दोनों देशों के संबंधों में और भी सुधार ही होगा. और इस कारण चीन के पेट में दर्द होता ही रहेगा क्योंकि चीन का भारत के खिलाफ मंसूबा सफल होता फिलहाल दिख नहीं रहा है.


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