भूमि क्षरण से बेघर होते लोग : बाढ़-भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझते पूर्वोत्तर के राज्यों को राहत की दरकार

पूर्वोत्तर की नदियों से गाद निकालकर उसकी गहराई को बढ़ाया जाए। इसके किनारे पर सघन वन लगें और रेत खनन पर रोक लगे।

Update: 2022-06-27 02:36 GMT

हाल में त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर और दक्षिणी असम का बड़ा हिस्सा एक हफ्ते तक देश से सड़क मार्ग से पूरी तरह कटा रहा, क्योंकि राष्ट्रीय राजमार्ग छह मेघालय के पूर्वी जयंतिया जिले में भूमि कटाव से पूरी तरह नष्ट हो गया था। सोनापुर सुरंग लुम-श्योन के पास बंद हो गई। नगालैंड में नोकलाम जिले में कई गांव ही गायब हो गए। असम के नगाव जिले के कलियाबर में पचास साल पुराने दो स्कूल देखते ही देखते पानी में समा गए।

सदियों पहले नदियों के साथ बहकर आई मिट्टी से निर्मित असम अब इन्हीं व्यापक जल-शृंखलाओं के जाल में फंसकर बाढ़ व भूमि कटाव के श्राप से ग्रस्त है। ब्रह्मपुत्र और बराक व उनकी कोई 50 सहायक नदियों का द्रुत बहाव पूर्वोत्तर भारत में अपने किनारों की बस्तियों-खेतों को उजाड़ रहा है। बरसात होते ही कहीं तेज धार जमीन को खा रही है, तो कहीं पहाड़ कट रहे हैं। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के आंकड़े बताते हैं गत छह दशक के दौरान अकेले असम की 4.27 लाख हेक्टेयर जमीन कटकर पानी में बह चुकी है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7.40 प्रतिशत है।
हर साल औसतन आठ हजार हेक्टेयर जमीन नदियों के तेज बहाव में कट रही है। वैसे तो ब्रह्मपुत्र की औसत चौड़ाई 5.46 किलोमीटर है, लेकिन कटाव के चलते कई जगह नदी का पाट 15 किलोमीटर तक चौड़ा हो गया है। वर्ष 2010 से 2015 के बीच नदी के बहाव में 880 गांव पूरी तरह बह गए, जबकि 67 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए। असम की लगभग 25 लाख आबादी ऐसे गांवों में रहती है, जहां हर साल नदी उनके घर के करीब आ रही है।
इनमें से कई नदियों के बीच के द्वीप भी हैं। तिनसुखिया से धुबरी तक नदी के किनारे जमीन कटाव, घर-खेत की बर्बादी, विस्थापन, गरीबी और अनिश्चितता की तस्वीर बेहद दयनीय है। कहीं लोगों के पास जमीन के कागजात हैं, तो जमीन नहीं, तो कहीं बाढ़-कटाव में उनके दस्तावेज बह गए और वे नागरिकता रजिस्टर में 'डी' श्रेणी में आ गए। इसके चलते आपसी विवाद, सामाजिक टकराव भी पैदा हुआ है। वर्ष 2019 में संसद में एक प्रश्न के उत्तर में जल संसाधन राज्यमंत्री ने जानकारी दी थी कि अभी तक राज्य में 86,536 लोग कटाव के चलते भूमिहीन हो गए।
दुनिया का सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुली ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों की तेज लहरों के कारण मिट्टी क्षरण की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। माजुली का क्षेत्रफल पिछले पांच दशक में 1,250 वर्ग किलोमीटर से घटकर 800 वर्ग किलोमीटर रह गया है। हाल ही में रिमोट सेंसिंग से किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, पिछले 50 सालों में ब्रह्मपुत्र के पश्चिमी तट की 758.42 वर्ग किलोमीटर भूमि बह गई। इसी दौरान नदी के दक्षिण किनारों का कटाव 758.42 वर्ग किमी रहा।
जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ रहा है। बीते एक दशक में पूर्वोत्तर की अक्षुण्ण प्रकृति पर जंगल काटने से लेकर खनन तक ने जमकर कहर ढाया है। भूमि कटाव का बड़ा कारण राज्यों के जंगलों व आर्द्र भूमि पर हुए अतिक्रमण और कई जगह खनन भी हैं। असम के पड़ोसी राज्य पहाड़ों पर हैं और वहां से नदियां तेज बहाव के साथ नीचे की तरफ आती हैं। तेज बहाव में उन राज्यों के भूमि कटाव से निकली मिट्टी भी तेजी से आती है। असम के उपरी अपवाह में कई बांध बनाए गए। चीन ने तो ब्रह्मपुत्र पर कई विशाल बांध बनाए हैं।
इन बांधों में पर्याप्त जल भर जाने पर पानी को अनियमित तरीके से छोड़ा जाता है, जिससे नदियों के प्रवाह की गति तेज हो जाती है और जमीन का कटाव होता है। केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि असम में नदी के कटाव को रोकने के लिए बनाए गए अधिकांश तटबंध जर्जर हैं और कई जगह पूरी तरह नष्ट हो गए हैं। एक तो बरसों से इनकी मरम्मत नहीं हुई, दूसरे नदियों ने अपना रास्ता भी खूब बदला। इसलिए जरूरी है कि पूर्वोत्तर की नदियों से गाद निकालकर उसकी गहराई को बढ़ाया जाए। इसके किनारे पर सघन वन लगें और रेत खनन पर रोक लगे।

सोर्स: अमर उजाला 

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