पेगाससः जांच तो होने दें

संसद का बजट सत्र शुरू होने से ठीक पहले अमेरिकी अखबार 'न्यू यॉर्क टाइम्स' में पेगासस को लेकर हुए खुलासे ने देश का राजनीतिक माहौल एक बार फिर गरमा दिया है

Update: 2022-02-01 18:24 GMT

संसद का बजट सत्र शुरू होने से ठीक पहले अमेरिकी अखबार 'न्यू यॉर्क टाइम्स' में पेगासस को लेकर हुए खुलासे ने देश का राजनीतिक माहौल एक बार फिर गरमा दिया है। कांग्रेस ने सरकार पर संसद को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए केंद्रीय सूचना व तकनीक मंत्री अश्विनी वैष्णव के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने की मांग की है। जैसा कि इस तरह के मामलों में आम तौर पर होता है, आसार यही लगते हैं कि बजट सत्र में इस विषय पर जोर-शोर से हंगामा होगा। हालांकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही चल रहा है। कोर्ट की ओर से एक समिति भी गठित की जा चुकी है, जिसे उन लोगों की पहचान करनी है जिन पर नजर रखी गई, यह पता करना है कि क्या किसी सरकारी अजेंसी ने पेगासस हासिल किया और यह तय करना है कि इस क्रम में कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया या नहीं। ऐसे में 'न्यू यॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट से जो सवाल उठा है कि क्या सचमुच सरकार ने इजराइल से पेगासस खरीदा था, उसका सबसे प्रामाणिक जवाब सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित यह समिति ही दे सकती है।

जाहिर है, इस पर हाय-तौबा मचाने से बेहतर है समिति की जांच पूरी होने का इंतजार किया जाए। इस बीच, विपक्ष संसद में चर्चा की मांग जरूर कर सकता है, लेकिन इस मसले पर यदि वह बजट सत्र को बाधित करता है तो इसका उसे भी कोई फायदा शायद ही मिले। हालांकि पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की वोटिंग जल्दी ही शुरू होने वाली है, लेकिन चुनावों में यह कोई बड़ा मुद्दा बनता अभी तक नहीं दिखा है। बहरहाल, सरकार को जरूर इस जांच में अपनी तरफ से पूरा सहयोग करना चाहिए क्योंकि अब तक इतना तो साफ हो चुका है कि चुप रहने से काम नहीं चलेगा। इस बात का साफ-साफ जवाब मिलना ही चाहिए कि क्या सरकार ने पेगासस खरीदा है और अगर हां तो उसकी क्या प्रक्रिया रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से सरकार को एक हद तक निगरानी रखने का काम करना पड़ता है, लेकिन इसमें भी संदेह नहीं कि किसी लोकतंत्र में विपक्ष के नेताओं, जजों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की जासूसी करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इस संदर्भ में देखें तो देश को जरूरत है एक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की, ऐसे स्पष्ट प्रावधानों की जिनसे निगरानी की पूरी प्रक्रिया को नियमित किया जा सके। अफसोस की बात यह है कि चाहे बीजेपी की अगुआई वाली सरकार हो या कांग्रेस की, अब तक किसी ने भी इस तरफ ध्यान देने की जरूरत नहीं महसूस की। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में निगरानी का काम चलताऊ आदेशों के जरिए नहीं संचालित किया जा सकता और न ही नागरिकों के निजता के अधिकार को सुरक्षा अजेंसियों के भरोसे छोड़ा जा सकता है। पेगासस प्रकरण का यही सबसे बड़ा सबक है।

 नवभारत टाइम्स

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