चुुनावी घोषणा पत्रों का पिटारा
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक दलों ने चुनावी घोषणा पत्र जारी करने शुरू कर दिए हैं।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक दलों ने चुनावी घोषणा पत्र जारी करने शुरू कर दिए हैं। घोषणा पत्र हर राजनीतिक दल सत्ता में आने पर अपने कार्यक्रमों और नीतियों का प्रारूप पेश करता है। लोक लुभावन वादे किए जाते हैं ताकि मतदाता आकर्षित होकर उन्हें वोट डाल सकें। दक्षिण भारत की राजनीति में मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए मुफ्त रेवड़ियां बांटने का सिलसिला काफी पुराना है। तमिलनाडु की सियासत में दिवंगत द्रमुक प्रमुख एम. करुणानिधि के 2006 के घोषणा पत्र में मुफ्त रंगीन टीवी और अन्य चीजों का वादा किया था, उसके बाद तो राजनीतिक दलों के बीच ऐसे वादों जैसे मुफ्त लैपटाप, दुधारू गाय, मिक्सर ग्राइंडर और सोने के मंगलसूत्र की होड़ लग गई। अन्नाद्रमुक की दिवंगत नेत्री अम्मा जयललिता भी जनता के वोट बटोरने के लिए ऐसे ही उपहारों की घोषणा हर चुनाव में करती थीं। तमिलनाडु में 1937 से लेकर 1971 तक पूर्ण शराबबंदी लागू थी जब एम. करुणानिधि के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो द्रमुक सरकार ने शराबबंदी को हटा िलया था। इस बार के चुनाव में अन्नाद्रमुक और द्रमुक ने शराब मुक्त तमिलनाडु का वादा किया है। दोनों ही दलों के चुनावी घोषणा पत्र में शराबबंदी का उल्लेख एक संदर्भ है जिससे संकेत मिलता है कि इसे लागू करने की कोई प्रतिबद्धता नहीं है। दोनों ही दल ऐसी रेवड़ियां बांटने के वादे पर एक सा जान पड़ रही हैं। इतना ही नहीं उन्होंने नागरिकता कानून के निरस्त करने और राजीव गांधी हत्याकांड के 7 अभियुक्तों को रिहा करने जैसे विवादास्पद वादे भी कर डाले। तमिलनाडु पहले ही भारी कर्ज में डूबा हुआ है, ऐसे में इन वादों पर एक बहस छिड़ गई है।