अवैध पर विपक्ष

दिल्ली के शाहीन बाग में अवैध अतिक्रमण हटाने को लेकर खूब हो-हल्ला हुआ, सियासी दल अदालत पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख शब्दों में कहा कि ‘अदालत को सियासत का मंच मत बनाइए’! आजकल राजनीति अजीबोगरीब हो गई है।

Update: 2022-05-12 03:00 GMT

Written by जनसत्ता: दिल्ली के शाहीन बाग में अवैध अतिक्रमण हटाने को लेकर खूब हो-हल्ला हुआ, सियासी दल अदालत पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख शब्दों में कहा कि 'अदालत को सियासत का मंच मत बनाइए'! आजकल राजनीति अजीबोगरीब हो गई है। बात-बात पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना नौटंकी बनता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अच्छी नसीहत दी है कि अवैध अतिक्रमण है, तो उसे हटाया जाना चाहिए।

अगर जायज के साथ अन्याय होता है, तो अदालत जरूर हस्तक्षेप करेगी। विपक्ष ऐसे मुद्दों पर जनता का साथ दे, उसका काम है, मगर पहले तय करे कि वह अवैध काम करने वाले का सहयोग तो नहीं कर रहा है, ताकि अदालत में उनकी किरकिरी न हो!

आखिरकार वही हुआ, जिसका अंदेशा था। एक बार फिर बिहार लोक सेवा आयोग विवादों के घेरे में आ गया। संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्नपत्र तमाम दावों और सुरक्षा घेरों के बीच परीक्षा के पूर्व ही बाहर आ गए और सोशल मीडिया पर तैरने लगे। इसके साथ ही करीब छह लाख अभ्यर्थियों का भविष्य एक बार फिर दांव पर लग गया।

नौकरी की आपाधापी और बढ़ती बेरोजगारी के बीच किस तरह दिन रात एक कर के और खून पसीना बहा कर विद्यार्थी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते हैं, पूरे उत्साह से परीक्षा केंद्र पर परीक्षा देने जाते हैं, लेकिन विडंबना है कि परीक्षा प्रणाली में सेंधमारी हो जाती है और देर-सबेर परीक्षाएं रद्द कर दी जाती हैं।

सवाल है कि सिर्फ परीक्षा रद्द कर देने से विद्यार्थियों के समय, उर्जा और पैसों के नुकसान की भरपाई हो जाती है? आखिर कौन ऐसा गिरोह है, जो बीपीएससी में सेंधमारी कर रहा है? क्या बीपीएससी नैतिकता के आधार पर विद्यार्थियों को क्षतिपूर्ति देगी? इस मामले में क्या बड़ी मछलियां भी पकड़ी जाएंगी या सिर्फ छोटी मछलियों को पकड़ कर सरकारी खानापूर्ति कर दी जाएगी?

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी आंकड़ों में कोविड-19 से भारत में सैंतालीस लाख से ऊपर मौतों का दावा किया गया है। इस रिपोर्ट पर भारत सरकार ने आपत्ति जाहिर की है। मगर यह सच्चाई दुनिया के सामने आने पर सरकार के पसीने छूटने लगे। सरकार ने इससे पहले भी विदेशी एजेंसियों की कई रिपोर्टों को खारिज किया है।

मसलन, वैश्विक भूख सूचकांक ने भारत में भूख से मरने वालों के आंकड़े उजागर किया था। कुल 116 देशों में भारत का स्थान 101 था। भारत ने भुखमरी मामले में पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल को भी पीछे छोड़ दिया है। इस पर भी भारत सरकार ने आपत्ति जताई थी। यह सिलसिला पिछले सात सालों से चला आ रहा है।

केंद्र ने मानवाधिकार, प्रेस स्वतंत्रता, लोकतंत्र सूचकांक जैसे विभिन्न विषयों पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा जारी रिपोर्ट को भी खारिज किया।

आज देश एक नाजुक दौर से गुजर रहा है। आज रुपया अपने ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया है। खुद रिजर्व बैंक के गवर्नर का आकलन है कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर करने में पंद्रह साल का समय लगेगा। देश में अधिकतर लोगों को दो जून की रोटी जुटाने में कठिनाई हो रही है, मगर सरकार की पूंजीवाद सोच की वजह से चंद कंपनियों में आगे बढ़ने की होड़ लगी हुई है।

आज देश के मौजूदा हालात पर नजर डालें तो आश्चर्य होगा कि समय की मांग कुछ है और देश में कुछ और ही बताया दिखाया जा रहा है। देश में महंगाई चरम सीमा पर है। ऐसी परिस्तिथियों में बात होनी चाहिए रोजगार, शिक्षा, महंगाई, विकास की, पर बात मंदिर, मस्जिद, धर्म, जातिपांति की हो रही है। इससे समाज में द्वेष की भावना पैदा हो गई है।

ऐसा परिवेश बनाने में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है। मीडिया ने आज समाज में जहर घोलने के साथ साथ अपनी भी छवि खराब कर ली है। आज न्यूज चैनल पार्टियों की तरह विभाजित हो गए हैं। मगर यह बात याद रखनी चाहिए कि संसार में हर चीज का विलोम उपस्थित है। अंधेरी रात के बाद एक सुनहरा सवेरा है।


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