लोकतंत्र में विपक्ष
देश में इस वक्त सियासी सरगर्मियां बहुत तेज है। कांग्रेस और भाजपा के बीच जमकर जुबानी हमले हो रहे हैं और एक पार्टी दूसरी पार्टी पर खूब निशाना साध रही है। इस सियासी जंग के बीच संसद का सत्र खूब प्रभावित हुआ। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जहां तमाम सवाल पूछ रहे हैं
Written by जनसत्ता: देश में इस वक्त सियासी सरगर्मियां बहुत तेज है। कांग्रेस और भाजपा के बीच जमकर जुबानी हमले हो रहे हैं और एक पार्टी दूसरी पार्टी पर खूब निशाना साध रही है। इस सियासी जंग के बीच संसद का सत्र खूब प्रभावित हुआ। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जहां तमाम सवाल पूछ रहे हैं, तो वहीं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी निशाना साध रहे है। लेकिन इस बीच एक सवाल यह है कि अब देश में क्या और कितना बचा है, इस पर सोचना होगा।
मगर समस्या यह है कि पक्ष-विपक्ष को एक दूसरे पर हमला करने से फुर्सत मिले, तब तो नेतागण जनता का समाधान कर सकेंगे। जिस प्रकार कई नेताओं के भ्रष्टाचार का पिटारा खुल रहा है, उससे बहुत सारे संकेत निकलते हैं। कहा जाता है कि एक स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण तभी हो सकता है, जब उस देश का विपक्ष मजबूत हो। लेकिन हमारे देश में जैसे-जैसे विपक्ष कमजोर हो रहा है, लोकतंत्र भी कमजोर होता जा रहा है।
सरकार चाहे राज्य की हो या केंद्र की, किसी भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल की हो और चाहे कितना ही रामराज्य का दावा कर रही हो, मगर सरकारी नौकरी की इच्छा रखने वाले युवाओं की प्रतियोगी परीक्षाओं को सुरक्षित तरीके से सम्पन्न करा पाने में असमर्थ है। प्रत्येक परीक्षा के बाद जब विद्यार्थियों को रिजल्ट और कटआफ अंकों का इंतजार करना चाहिए, तब वे इस ऊहापोह में उलझे होते हैं कि परीक्षा रद्द होगी या फिर हर बार की तरह उनके भविष्य का निर्णय न्यायालय में लंबित रहेगा। हाल ही में रद्द हुई बिहार लोकसेवा आयोग की परीक्षा हो या राजस्थान की रीट और उत्तर प्रदेश कि यूपीटीईटी परीक्षा में हुई पेपर लीक की घटना। यूपीएसआइ में भी धांधली का दावा अभ्यार्थियों के द्वारा किया गया।
अब उत्तर प्रदेश में आयोजित हुई लेखपाल परीक्षा में धांधली की खबरों के बाद कई प्रश्न पत्र हल करने वालों को और अनुचित सामग्रियों के साथ परिक्षार्थियों को गिरफ्तार किया गया है। ये गिरफ्तारियां किस हद तक परीक्षा को नकलविहीन कर पाएंगी, कोई नहीं जानता। क्या सभी नकलची पकड़े गए या फिर सिर्फ कुछ गिरफ्तारी को सामने रखकर बाकी नकलचियों और धांधली में सक्रिय विभागीय कर्मचारियों को ईमानदारी का तमगा थमा दिया गया?
मेहनती विद्यार्थियों के मन का सबसे बड़ा सवाल यही है जो उनके अंदर असुरक्षा की भावना को जन्म देता है और बार-बार होती ऐसी घटनाएं इस असुरक्षा की भावना को पोषित करती हैं। इन घटनाओं के लिए सरकार को दोषी ठहराया जाए या संबंधित विभाग को या कि दोनों को फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि सामाजिक न्याय और समता प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकार की है, जो लगातार इसमें असफल रही है।
सरकार की यह असफलता न केवल विद्यार्थियों की उम्मीदें खत्म करती है, बल्कि सरकारी कर्मचारियों के रूप में हुई अयोग्य व्यक्तियों कि नियुक्ति पूरी व्यवस्था को गर्त की ओर धकेल देती है। सरकारें अपनी विफलताओं को स्वीकार करने के बजाय उसे विभिन्न प्रकार से छिपाने का प्रयास करती हैं और यही ऐसी घटनाओं के फिर से घटित होने को बढ़ावा देता है।