अफगानिस्तान में अफीम की खेती भारत और इस क्षेत्र के लिए गंभीर सुरक्षा खतरे पैदा कर रही है
अफगानिस्तान में अफीम की खेती का चलन जोर पकड़ रहा है और इसी के साथ भारत
जहांगीर अली.
अफगानिस्तान (Afghanistan) में अफीम (Opium) की खेती का चलन जोर पकड़ रहा है और इसी के साथ भारत (India) और आसपास के क्षेत्रों के सामने सुरक्षा को लेकर बड़ा खतरा खड़ा हो गया है. फिलहाल विश्व शक्तियां अफगानिस्तान में अफीम के उत्पादन को रोकने में दिलचस्पी नहीं ले रही हैं, जो हेरोइन की वैश्विक आपूर्ति का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा है. अफगानिस्तान की अंतरराष्ट्रीय संपत्ति और विदेशी सहायता पर रोक लगने के बाद खड़े हुए वित्तीय संकट को दूर करने के लिए तालिबान ने देश में अफीम उगाने की पुरानी प्रथा को दोबारा शुरू कर दिया है.
यहां इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि अफगानिस्तान में अगर अफीम की खेती बड़े पैमाने पर फलती-फूलती है तो ये न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित होगी. भारत के लिए, इस तथ्य से डर बढ़ गया है कि पिछले साल जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियों ने हेरोइन की कई खेप जब्त थीं, जो घाटी में आतंकवादी समूहों और उनकी गतिविधियों को पैसा पहुंचाने के लिए भेजी गई थीं. सितंबर 2021 में राजस्व खुफिया निदेशालय ने गांधीधाम के मुंद्रा पोर्ट हेरोइन की खेप पकड़ कर हाल के दिनों में सबसे बड़े ड्रग रैकेट का खुलासा किया था. अफगानिस्तान के कंधार से 3,000 किलोग्राम हेरोइन की ये खेप ऐसी कई शिपमेंट में से एक थी जो तालिबान के अफगानिस्तान अधिग्रहण के बाद यहां भेजी गई हैं.
अफगानिस्तान: अफीम की नर्सरी
साल 2001 से अफगानिस्तान हेरोइन का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है, जहां प्रतिबंधित ड्रग की कुल वैश्विक आपूर्ति की लगभग 80 प्रतिशत फसल पैदा होती है. इस काम से युद्धग्रस्त देश में लगभग चार लाख नौकरियां निकलती हैं. यूएन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में अफगानिस्तान में 224,000 हेक्टेयर भूमि पर अफीम की खेती हो रही थी जो 2019 की तुलना में 37 प्रतिशत ज्यादा है. इस प्रतिबंधित ड्रग की बिक्री से होने वाली आय का अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है.
अफगानिस्तान में अफीम का अधिकांश उत्पादन न सिर्फ हेलमंद, कंधार, बदख्शां और हेरात जैसे परिधीय प्रांतों में होता है, बल्कि राजधानी काबुल में भी इस प्रतिबंधित ड्रग की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. UNODC के अनुसार, 2019 में अफगानिस्तान ने 7,500 टन कच्ची अफीम का उत्पादन किया था. अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सांख्यिकी (National Statistics) और सूचना प्राधिकरण और यूएनओडीसी द्वारा इस साल मई में संयुक्त रूप से जारी अफगानिस्तान अफीम सर्वेक्षण 2020 से सामने आया है कि 224,000 हेक्टेयर जमीन के साथ अफगानिस्तान में अफीम की खेती अब तक के सबसे बड़े स्तर पर हो रही है.
अफीम पर अफगानिस्तान की निर्भरता
अफगानिस्तान में उत्पादित हेरोइन न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था में मदद करती है बल्कि सेना की तुलना में अफगानों को रोजगार के कहीं अधिक अवसर भी प्रदान करती है. 2001 में अमेरिकी आक्रमण के बाद भी अफगानिस्तान में अफीम के उत्पादन पर अंकुश लगाने के विदेशी प्रयास बड़े पैमाने पर विफल रहे हैं. इसकी वजह है कि आजीविका के लिए किसान इसी खेती पर निर्भर हैं और इसके अलावा उनके सामने कमाई का कोई भी विकल्प नहीं बन रहा है.
अगस्त 2021 में काबुल के पतन के बाद, हेलमंद में प्रांतीय गवर्नर अब्दुल अहद ने द टाइम्स को बताया था कि भले ही तालिबान ने अफीम की खेती को गैरकानूनी घोषित करने का वादा किया हो, बावजूद इसके यूरोप की हेरोइन की अधिकांश आपूर्ति करने वाली इस फसल को रोकने की उसकी कोई योजना नहीं है. तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने सार्वजनिक रूप से ये वादा किया था कि देश में अफीम का उत्पादन बंद कर दिया जाएगा. वहीं 45 वर्षीय अहद ने द टाइम्स को बताया था कि अफगानिस्तान में अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगाने से पहले दुनिया को किसानों के लिए आय का कोई दूसरा विकल्प खोजना होगा.
अनुमान लगाया जा रहा है कि तालिबान ने 2018 और 2019 के बीच नशीली दवाओं के व्यापार से $400 मिलियन से अधिक की कमाई की है. रायटर की एक खबर के अनुसार, मई 2021 में अफगानिस्तान के लिए अमेरिकी विशेष महानिरीक्षक (SIGAR) की रिपोर्ट में एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से अनुमान लगाया है कि वे अपने वार्षिक राजस्व का 60 प्रतिशत तक अवैध नशीले पदार्थों से प्राप्त करते हैं.
कैसे होती है इसकी सप्लाई
हेलमंद और कंधार जैसे अफीम उत्पादन प्रांतों से, इस ड्रग की तस्करी पड़ोसी देशों, प्रमुख रूप से पाकिस्तान और ईरान में की जाती है. वहां से ये 'बाल्कन रूट' के माध्यम से तुर्की और 'उत्तरी मार्ग' के माध्यम से मध्य एशिया और रूस होती हुई यूरोप में पहुंचती है. अमेरिका की केंद्रीय जांच एजेंसी समेत अन्य कई देशों की जांच एजेंसियों पर भी रणनीतिक कारणों से अफगानिस्तान में अफीम के व्यापार को बढ़ावा देने और इसे एक हथियार के तौर पर लेने के आरोप लगे हैं.
कई देशों की सेनाओं और गुप्त एजेंसियों पर अफीम और हेरोइन के उत्पादन और वितरण से जुड़े लोगों को शामिल करने और उन्हें कवर प्रदान करने के आरोप लगाए जाते हैं. विश्व में इन प्रतिबंधित ड्रग्स का व्यापार अफगानिस्तान में इसके उत्पादन की वृद्धि के साथ लगातार बढ़ा है. हालांकि अफीम की अधिकांश खेप जमीनी रास्ते के जरिए भेजी जाती है, लेकिन पिछले कुछ समय में हवाई और समुद्री मार्गों से इसकी बरामदगी के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है. गुजरात वाला मामला भी इसी में से एक है.
भारत पर क्या खतरा है
माना जाता है कि अफीम और अफीम से बनने वाली ड्रग्स जैसे हेरोइन की बिक्री से जो आय होती है, उसी से ही अफगानिस्तान और पाकिस्तान में उग्रवादी और आतंकवादी ग्रुप्स की फंडिंग होती है. यदि तालिबान को लंबे समय तक ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय अलगाव का सामना करना पड़ता है, तो आने वाले महीनों और वर्षों में युद्ध से तबाह इस देश में अवैध नशीली ड्रग्स के व्यापार में और तेजी आने की आशंका है, जिसका दक्षिण एशियाई क्षेत्र पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा.
भारत नार्को-टेररिज्म से सबसे ज्यादा पीड़ित रहा है. इस साल कश्मीर में जम्मू-कश्मीर पुलिस और अन्य एजेंसियों ने लाखों डॉलर की हेरोइन की कई खेप जब्त की है. अधिकांश खेप उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में जब्त की गई हैं जो पाकिस्तान के साथ ऐसी सीमा साझा करता है जिसमें आर-पार जाया जा सकता है. कश्मीर के दो हिस्सों के बीच नियंत्रण रेखा के पार व्यापार सस्पेंड होने के बाद ड्रग्स की बरामदगी के मामले काफी बढ़ गए हैं. भारतीय एजेंसियों का मानना है कि इस रास्ते ही घाटी में उग्रवादी गतिविधियों की फंडिंग के लिए ड्रग्स भेजी जाती है.
कश्मीरी अलगाववादियों पर कार्रवाई और उग्रवाद के खिलाफ बड़ी सफलताओं के बाद, सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि न केवल कश्मीर में बल्कि नशे की गिरफ्त में आए पंजाब में भी आतंकवादी गतिविधियों को फंड करने के लिए पाकिस्तान के लिए नार्को ट्रेड ही एकमात्र रास्ता बचा है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)