गेम चेंजर हो सकता है ‘ओएनडीसी’

पारंपरिक व्यवसायों को भारी नुकसान हो रहा है.

Update: 2023-04-11 14:26 GMT

एक दशक से अधिक समय से ई-कॉमर्स में भारत और दुनिया में भारी वृद्धि हुई है. भारत में कुल खुदरा व्यापार का लगभग 6.5 प्रतिशत आज ई-कॉमर्स के माध्यम से होता है. ई-कॉमर्स ने जीवन को आसान बना दिया है, क्योंकि लोगों को घर बैठे एक बटन क्लिक कर वस्तुएं और सेवाएं मिल जाती हैं. रेल-बस टिकट हो या हवाई यात्रा, होटल बुकिंग हो या टैक्सी, ऑटो से आना-जाना, सब सुविधाजनक हो गया है. ई-कॉमर्स से विभिन्न प्रकार की घरेलू और व्यावसायिक सेवाओं तक आसानी से पहुंचा जा सकता है, लेकिन इसके साथ ही कुछ बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों का दबदबा बढ़ रहा है, जिससे पारंपरिक व्यवसायों को भारी नुकसान हो रहा है.

सवाल केवल कमीशन का नहीं है, ये कंपनियां डेटा पर अपने एकाधिकार के कारण विभिन्न विक्रेताओं के बीच भेदभाव करती हैं और अपने पसंदीदा विक्रेताओं को वरीयता देती हैं. ऐसे में अन्य विक्रेताओं को नुकसान होता है. हालांकि ये कंपनियां अपने ग्राहकों को सस्ता सामान और सेवाएं प्रदान करने का दावा करती हैं, लेकिन अपनी आर्थिक ताकत के चलते ये छोटे पारंपरिक दुकानदारों, ट्रैवल एजेंटों आदि को बाजार से बाहर करने के लिए उपभोक्ताओं को भारी छूट देती हैं. अपने स्वयं के पैसे से और ड्राइवरों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने भारी प्रोत्साहन भी दिया, पर व्यवसाय स्थापित करने के बाद उबर सरीखे एग्रीगेटर उपभोक्ताओं को अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर करते हैं और ड्राइवरों की कमाई का लगभग एक-तिहाई ये एग्रीगेटर छीन लेते हैं.
ऐसे में छोटे वेंडरों और गरीब कामगारों के पास केवल दो विकल्प हैं- या तो अपना शोषण होने दें या व्यवसाय छोड़ दें. इतना ही नहीं, ई-कॉमर्स कंपनियों के कैश बर्निंग मॉडल की वजह से परंपरागत कारोबारी भी धंधे से बाहर हो रहे हैं. चाहे किराना दुकान हो या रेडीमेड परिधान की दुकान या इलेक्ट्रॉनिक्स और घरेलू सामान के शोरूम या पारंपरिक ट्रैवल एजेंट, इन कंपनियों के आने से खुदरा व्यापार में रोजगार का क्षरण हुआ है. कहा जा सकता है कि आज का ई-कॉमर्स समावेशी नहीं है. हम ई-कॉमर्स को बंद नहीं कर सकते हैं और ऐसा करने की आवश्यकता भी नहीं है, पर सवाल विक्रेताओं और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा का है. क्या हम इन ई-कॉमर्स दिग्गजों के लालच पर रोक लगा सकते हैं? इन सवालों के जवाब भारत सरकार द्वारा शुरू किये गये ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) में मिल रहे हैं, जो एक पंजीकृत कंपनी है.
ओएनडीसी नेटवर्क ई-कॉमर्स को एक चैनल प्रदान कर रहा है. यह खरीदारों और विक्रेताओं के बीच एक कड़ी प्रदान करने की कोशिश करता है, जो शोषणकारी नहीं है. इस प्रणाली में कंपनियां डेटा पर एकाधिकार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग के माध्यम से विक्रेताओं के बीच भेदभाव नहीं कर सकती हैं. इसमें उपभोक्ता विभिन्न प्रकार के विक्रेता, सेवा प्रदाता आदि को आसानी से खोज सकेंगे और ई-कॉमर्स बाजार में एकाधिकार के बजाय प्रतिस्पर्धा के आधार पर व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा सकेगा.
आम तौर पर ये कंपनियां एक प्लेटफॉर्म के जरिये काम करती हैं. विक्रेता या सेवा प्रदाता संबंधित प्लेटफॉर्म पर अपना पंजीकरण कराते हैं और उन्हें कई प्लेटफॉर्म पर पंजीकरण कराना होता है. हालांकि ये प्लेटफॉर्म उपभोक्ताओं और विक्रेताओं को छूट और प्रोत्साहन का लालच देकर उन्हें आकर्षित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन व्यवसाय स्थापित होने के बाद वे उपभोक्ता और विक्रेता का शोषण करते हैं. ओएनडीसी वास्तव में विभिन्न प्लेटफॉर्म और उपभोक्ताओं के बीच की एक कड़ी है, जो लाभ के उद्देश्य से काम नहीं करता है. अभी तक सामान्य ई-कॉमर्स में विक्रेता और सेवा प्रदाता उन प्लेटफॉर्म पर निर्भर होते हैं.
उपभोक्ता प्लेटफॉर्म पर केवल उन्हीं विक्रेताओं को देख पाते हैं, जो उस प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत हैं. ओएनडीसी में विभिन्न प्रकार के प्लेटफॉर्म को ही पंजीकरण की सुविधा प्रदान की जाती है. लेकिन ओएनडीसी की शर्त यह है कि इनमें से किसी भी प्लेटफॉर्म पर जिन वेंडरों या सेवा प्रदाताओं ने खुद को पंजीकृत कराया है, उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुएं और सेवाएं ओएनडीसी पर आने वाले सभी ग्राहकों को दिखाई देंगी. इस प्रणाली में कुछ भी अपारदर्शी नहीं है.
यह प्रणाली जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) यानी भौगोलिक सूचना प्रणाली के माध्यम से काम करती है और विक्रेताओं व उपभोक्ताओं को उनके स्थान के आधार पर सुविधा प्रदान कर सकता है. उदाहरण के लिए, यदि कोई उपभोक्ता घर बैठे किसी रेस्तरां से खाना मंगवाना चाहता है, तो ओएनडीसी प्रणाली में वह आस-पास के सभी रेस्तरां तक पहुंच सकता है. हालांकि जिन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म वेंडर के साथ अपने समझौते के अनुसार शुल्क लेना जारी रख सकते हैं, लेकिन व्यवसाय लाने के लिए विभिन्न प्लेटफॉर्म के बीच प्रतिस्पर्धा से उनका कमीशन अपने-आप कम हो सकता है. हर प्लेटफॉर्म ज्यादा से ज्यादा बिजनेस लाने के लिए अपना कमीशन कम रखना चाहेगा.
इस प्रकार, ओएनडीसी ई-कॉमर्स को प्लेटफार्म के एकाधिकार से मुक्त करता है और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करता है. ई-कॉमर्स कंपनियों ने भी ओएनडीसी के नेटवर्क में शामिल होने में रुचि दिखाई है और कुछ प्लेटफॉर्म और भुगतान कंपनियां भी ओएनडीसी के साथ पंजीकृत हो रही हैं. ओला, उबर जैसी टैक्सी सेवाओं ने अभी तक पंजीकरण नहीं कराया है, लेकिन कुछ नयी मोबिलिटी कंपनियां ओएनडीसी में रुचि दिखा रही हैं. इस प्रणाली को हाल ही में पेश किया गया है और अभी बहुत कम व्यवसाय किया जा रहा है, लेकिन उम्मीद है कि यह निकट भविष्य में तेजी से बढ़ेगा. इससे छोटे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के लिए भारी विज्ञापन खर्च के बिना उपभोक्ताओं तक पहुंचना संभव हो सकता है.
यदि ओएनडीसी प्रणाली सफल होती है, तो इसके साथ-साथ ई-कॉमर्स के सभी फायदे तो बदस्तूर मिलेंगे ही, साथ ही इसकी अधिकांश कमियों से बचा जा सकेगा. गौरतलब है कि अब तक मौजूदा सरकार के तकनीक समर्थित सभी प्रयास सफल होते दिख रहे हैं. आज यूपीआइ दुनिया में एक मिसाल बन चुका है और इसके माध्यम से ऑनलाइन भुगतान जल्दी और बिना किसी लागत के संभव हो रहे है. आज दुनिया में जितने भी ऑनलाइन लेन-देन होते हैं, उनमें से 40 फीसदी से ज्यादा भारत में हो रहे हैं. ओएनडीसी को भी एक ऐसी प्रणाली के रूप में देखा जा रहा है, जो न केवल उपभोक्ताओं और विक्रेताओं के शोषण को रोक सकती है, बल्कि स्थानीय व्यवसायों को सुविधा प्रदान कर सकल घरेलू उत्पादन और रोजगार में भारी वृद्धि करने में भी सक्षम हो सकती है.

सोर्स: prabhatkhabar

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