जेल से बाहर आए ओम प्रकाश चौटाला, जितने मजबूत होंगे उतना ही बीजेपी को होगा फायदा
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल की सजा खत्म करके अब बाहर आ चुके हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल की सजा खत्म करके अब बाहर आ चुके हैं. कोरोना की वजह से वह पहले ही जेल से बाहर थे, शुक्रवार को तिहाड़ जेल पहुंचकर उन्होंने कागजी औपचारिकताएं पूरी कीं. मंगलवार को वो नई दिल्ली में देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री देवी लाल (Devi Lal) की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित करने पहुंचे. जेल से बाहर आते ही उनके तेवर बताते हैं कि वह अभी एक और पारी खेलने के मूड में हैं.
उन्होंने हरियाणा (Haryana) की जनता के हितों के लिए हर पाबंदी तोड़ने का हुंकार भर दिया है. जाट पॉलिटिक्स में उनकी पकड़ और हरियाणा में कोई सर्वमान्य किसान नेता के ना होने के चलते यह कहना आसान है कि उन्हें नजरअंदाज करना बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ी भूल होगी. हालांकि, हरियाणा में विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं पर 17 सालों में हरियाणा की राजनीतिक पिच बहुत बदल चुकी है. अब देखना है कि इस बदले हुए पिच पर ओमप्रकाश चौटाला कितनी देर टिक कर कितना रन बना पाते हैं.
1- 2 ध्रुवीय राजनीति अब 4 कोणीय हो चुकी है
ओमप्रकाश चौटाला जिस समय हरियाणा में सीएम थे उस समय प्रदेश में कांग्रेस और इनेलो का ही मुख्य मुकाबला था. ये दो पार्टियां ही मुख्यधारा में थीं. बीच में बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी भी कुछ दिन के लिए मजबूत हुई थी. पर आज समय बदल चुका है. भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी और ओपी चौटाला के आने के बाद इनेलो भी मेन स्ट्रीम में आ सकती है. आम आदमी पार्टी ने अभी खुलकर ऐलान तो नहीं किया है पर उनका कुछ कहा नहीं जा सकता. अधिक पार्टियां हो जाने से राजनीति भी अब उतनी आसान नहीं रही.
ओपी चौटाला अपने पुराने समर्थकों को ही एकजुट कर लें तो यही बहुत बड़ी बात होगी. कभी ओपी चौटाला को पंजाबी वोटर्स का भी खूब साथ मिलता था, पर अब ऐसा नहीं होने वाला है. भारतीय जनता पार्टी के उत्थान के साथ प्रदेश में एक और लाल का जन्म हो चुका है. वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल का यह दूसरा टर्म है. पंजाबी होने के चलते उन्होंने पंजाबी वोटर्स को हरियाणा में मजबूती से बांध रखा है. जाट आरक्षण के नाम पर हुई हिंसा के बाद से पंजाबी और पिछड़ा वोटर्स अब बीजेपी का साथ छोड़कर दूसरे के साथ नहीं जाने वाले. दरअसल प्रदेश की राजनीति में अभी पंजाबी-पिछड़ा राजनीति हॉवी है.
2-जाट राजनीति पर हुड्डा परिवार का कब्जा
हरियाणा में 4 दशकों से जाट और गैर-जाट की राजनीति हो रही है. वर्तमान में जाट राजनीति में प्रदेश के सबसे बड़े सितारे हैं पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा, ओमप्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अभय चौटाला और पौत्र दुश्यंत चौटाला. अपने 2 टर्म के मुख्यमंत्रित्व काल और उसके बाद चौटाला परिवार में विघटन के चलते जाटों के बीच भुपेंद्र सिंह हुड्डा की पकड़ सबसे अधिक मजबूत हुई है. 2014 में इनेलो ने अभय चौटाला के नेतृत्व में 24 फीसदी वोट पाकर 19 सीटें जीतने में सफल हुई थी, जबकि कांग्रेस भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में लड़कर 20 फीसदी वोट ही हासिल कर सकी और सीटों की संख्या तो 15 ही रह गयी.
लेकिन 2019 में इनेलो कुनबा बिखरने का फायदा हुड्डा को मिला. 2019 के चुनावों में बीजेपी को 2014 से 3 परसेंट अधिक वोट मिले जो करीब 36 परसेंट रहा पर 7 सीटें घट गईं. इनेलो के वोटों का ट्रांसफर जेजेपी की ओर होने से जेजेपी को 18 परसेंट वोट मिले और उसके विधायक भी 10 जीते. इस तरह पिछले चुनाव में कांग्रेस को सबसे अधिक 28 परसेंट वोट मिले और वह करीब 31 सीटें भी जीतने में कामयाब हुई. इसका सबसे कारण ये रहा है कि जाट आरक्षण आंदोलन के चलते जाट बीजेपी सरकार से नाराज थे और उन्होंने भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर भरोसा जताया. यही कारण है कि जेजेपी और इनेलो के टार्गेट पर येन केन प्रकाणेन भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही होते हैं.
पर अब ओपी चौटाला के फिर एक बार मैदान में आने के चलते कांग्रेस और इनेलो के बीच जाट नेताओं और वोटर्स पर पकड़ के लिए युद्ध होना तय है. हुड्डा ने भी कांग्रेस के अंदर खुद को मजबूत करने के लिए मुहिम छेड़ रखी है. भूपेंद्र सिंह हुड्डा लगातार कांग्रेस नेताओं को ये समझाने में लगे हुए हैं कि ओम प्रकाश चौटाला से निपटने के लिए उन्हें पार्टी पर नियंत्रण चाहिए. शैलजा को हटाने के लिए उनके समर्थक विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं.
3- ओपी चौटाला के मजबूत होने से बीजेपी को हो सकता है फायदा
दरअसल राजनीति का असली खेल डिवाइड एंड रूल है. भारतीय जनता पार्टी को अगर हरियाणा में तीसरी बार सत्ता में आना है तो उसे या तो जाटों को वोट पाना होगा या तो जाटों के वोट को विभाजित करना होगा. किसान आंदोलन के चलते अभी यह बिल्कुल भी नहीं लगता कि जाटों का वोट अगले चुनाव में भी बीजेपी को नहीं मिलने वाला है. इसलिए सबसे आसान यही है कि जाट वोटों को बंटने दिया जाए. दरअसल पंजाबी और पिछड़ा वोट तो बीजेपी के साथ अगले चुनाव में भी रहने वाला है. जाटों के जो वोट इस बार कांग्रेस के साथ गए हैं, वो बंट जाते हैं तो बीजेपी 36 परसेंट से कम वोट पाकर भी बहुमत हासिल कर लेगी. जैसा 2014 के चुनावों में हुआ था. बीजेपी 33 परसेंट वोट पाकर भी पूर्ण बहुमत हासिल कर ली थी.