ओलंपिक : ब्यूटीफल संडे और मंडे

टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए संडे ब्यूटीफुल रहा तो मंडे सुबह ही खुशखबरी मिल गई।

Update: 2021-08-03 02:01 GMT

आदित्य चोपड़ा| टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए संडे ब्यूटीफुल रहा तो मंडे सुबह ही खुशखबरी मिल गई। संडे को पी.वी. सिंधु ने कांस्य पदक जीता, वहीं 41 साल बाद भारत की पुरुषों की हाकी टीम ने सेमीफाइनल में प्रवेश किया। सोमवार को भारत की महिला हाकी टीम ने चोटी की आस्ट्रेलियाई टीम को 1-0 से पराजित कर पहली बार सेमीफाइनल में प्रवेश कर इतिहास रच डाला। भारत की तरफ से एकमात्र गोल गुरजीत कौर ने किया। इस जीत ने सुनिश्चित कर दिया है कि हाकी में भारत का स्वर्णिम युग लौट रहा है।

दुनिया भर में केवल दर्जन भर देश क्रिकेट खेलते हैं जबकि बैडमिन्टन एक वैश्विक दर्जे वाला खेल है और भारत के पास बैडमिन्टन के विश्व स्तरीय खिलाड़ी भी हैं। रियो 2016 से पहले तक देश के लिए लगातार दो ओलंपिक खेलों में पदक दिलाने वाले खेल भी महज चार ही रहे। जिसमें हाकी, मुक्केबाजी, कुश्ती और निशानेबाजी शामिल रहे। इस सूची में रियो से एक और नाम जुड़ा बैडमिन्टन। इसमें साइना नेहवाल ने 2012 के लन्दन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। जबकि पी.वी. सिंधु रियो ओलंपिक में रजत पदक के साथ एक पायदान ऊपर चढ़ गई थी। यही नहीं पी.वी. सिंधु ने रियो की स्वर्ण पदक विजेता स्पेन की कैरोलिना मार्टिन के साथ मिलकर चीनियों का दबदबा भी तोड़ दिया था। पिछले कई वर्षों से भारत के प्रतिभावान बैडमिंटन खिलाड़ी​ विश्व स्तर पर छा जाने के लिए बेताब थे। 1992 में पहली बार बैडमिंटन को ओलंपिक प्रतिस्पर्धाओं में शामिल किया गया था। उसके बाद रियो ओलंपिक में पी.वी. सिंधु ने अपने से ऊंची वरीयता वाली तीन खिलाड़ियों को हराते हुए रजत पदक हासिल किया था जबकि 23 वर्ष के श्रीकांत किदांबी क्वार्टर फाइनल में इतिहास बनाने और उलटफेर करने से महज तीन प्वाइंट से चूक गए थे। इस मैच में उनके सामने दुनिया के तीसरे नम्बर के खिलाड़ी चीन के लिन डेन थे। भारतीय बैडमिंटन की राजकुमारी माने जाने वाली पुसरला वेंकट सिंधु ने टोक्यो ओलंपिक में लगातार दूसरी बार पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। यद्यपि इस बार उसे कांस्य पदक पर ही संतोष करना पड़ा लेकिन इस पदक की चमक भारतीयों के लिए किसी स्वर्ण पदक से कम नहीं है। बैडमिंटन में भारत को अब तक केवल तीन पदक मिले हैं जिनमें से एक साइना नेहवाल का है और दो पदक सिंधु के नाम पर हैं।
पदक कोई भी हो सिंधु के पदक की चमक कम नहीं किसी से कम नहीं है। भले ही वह ताइपे की खिलाडी से हार गई लेकिन कांस्य पदक के लिए उसने चीनी खिलाडी का वर्चस्व तोड़ा है। 2018 सें राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई खेलों तथा विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतकर उसने हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि टोक्यो ओलंपिक में 6 भारतीय लड़कियां न्यूज मेकर बनी हैं जबकि लड़के अब तक कहीं नजर नहीं आ रहे। भारोत्तोलन में मीराबाई चानू ने रजत पदक जीत कर इतिहास रचा, असम की लवलीना ने मुक्केबाजी में पदक पक्का कर लिया है। टोक्यो ओलंपिक में उत्तराखंड की वंदना कटारिया का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। दक्षिण अफ्रीका के साथ करो या मरो के मैच में वंदना कटारिया ने लगातार तीन गोल दागकर भारतीय महिला हाकी टीम को 4-3 से जीत दिलाई। वंदना कटारिया गोल की हैट्रिक लगाने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं। इसी साल मई में वंदना कटारिया के पिता का निधन डंका बजता था एक समय था जब जर्मन तानाशाह हिटलर तक भारतीय हाकी खासकर ध्यानचंद के फैन थे। 1928 से 1980 के बीच भारत ने 8 बार लगातार गोल्ड मेडल जीते। इसे भारतीय हाकी का स्वर्णिम युग कहा जाता है। बाद में एशियाई खेलों की कलात्मक और कौशलपूर्ण हाकी का सूरज डूब गया और एस्ट्रो टर्फ पर ताकत के दम पर खेली जाने वाली तेज-तर्रार हाकी ने उसकी जगह ले ली। 29 जुलाई 1980 को मास्को ओलंपिक खेलों में अंतिम बार भारत ने हाकी स्वर्ण पदक जीता था। तब वासुदेवन भास्करन टीम के कप्तान थे। उसके बाद से भारतीय हाकी टीम के प्रदर्शन में लगातार गिरावट आती गई। 41 वर्ष बाद भारतीयों के लिए यह गौरव का समय है जब भारतीय हाकी टीम ने शानदार प्रदर्शन किया है। सेमीफाइनल में भारत का मुकाबला विश्व चैम्पियन ब्राजील से होगा। सवाल इस समय पदक का नहीं है बल्कि हाकी में खोई प्रतिष्ठा को हासिल करने का है। हमें भारत की बेटियो पर गर्व है।


Tags:    

Similar News

-->