उपन्यास: Part 43- बंटवारा

Update: 2024-10-21 14:21 GMT
Novel: जैसे ही सासूमाँ ने आँखे मूंदी, घर मे बंटवारे का दौर शुरू हो गया। सासूमाँ इतने दिनों तक रटती रही कि मेरे जीते जी घर का बंटवारा कर दो पर किसी ने ध्यान नही दिया। अब बंटवारे के लिए कुछ प्रतिष्ठित लोगो को बुलाया गया। सबसे पहले खेत का बंटवारा हुआ। बड़े जेठ ने कहा कि मैं सबसे पहले अपने पसंद की खेत को अपने छोटे भाई को देना चाहता हूँ फिर बाकी जो खेत है उसको 4 हिस्से में बांटा जाएगा। आप सब को मंजूर है? सब ने कहा - "हां ,ठीक है।"
अब बड़े जेठ ने एक जगह की खेत सर को दे दी । सर बहुत खुश हुए। सर को लगा बड़े भैया का मेरे ऊपर कितना प्रेम है जो उन्होंने मुझे पहले दी बाद में सबको दिया। बाद में सर को पता चला, जो उन्हें दिया गया वो सबसे छोटी खेत थी। बाकी बची खेत बांकी चार भाइयो में बाटी गयी।अब बर्तन के बँटवारे की बात आई। सर ने तुरंत ही कह दिया कि मेरे दहेज़ में मुझे कुछ नही मिला इसलिए आप लोग बर्तन के 4 हिस्से कर लीजिए, मुझे कुछ नही लेना है।
जो लोग बंटवारा करने आये थे उन्होंने कहा- "नही, माता पिता की संपत्ति में सब का हिस्सा होता है इसलिये बर्तन 5 भागो में बांटा जाएगा।" सभी पैतृक बर्तनों के 5 हिस्से किये गए फिर जो बर्तन सर के हिस्से में आये उधर सभी भाभियाँ बारी बारी से आई। उन्होंने कहा- "जब ये अकेले रहते थे तो मैंने इसे एक थाली दी थी तो मैं एक थाली इनके हिस्से से ले रही हूं।" किसी ने कहा- "मैने एक बाल्टी दी थी।" किसी ने कहा - "मैंने एक चम्मच दिया था।"
इस तरह सर के हिस्से से सभी भाभियों ने अपने अपने बर्तन के बदले में बर्तन निकाल लिए।शेष बचे बर्तन सर के हिस्से में आये। अब घर का बंटवारा हुआ। घर के सामने ही 2 खाली जमीन थी उस जमीन पर हालर मिल और किराने की दुकान थी। वो दो बड़े भाइयों का हुआ। अब मुख्य घर 3 भाइयो में बांटना था तो बड़े भाइयो ने कहा -क्योकि ये माता पिता का मूल घर है तो इसमें भी हमारा हिस्सा होना चाहिए। इस बात पर विवाद इतना बढ़ा कि 3 भाइयो का हिस्सा विवादित हो गया और जो बंटवारा करने आये थे वो भी हाथ जोड़कर वापस चले गए।
सभी भाइयो का उस समय व्यवसाय था नौकरी थी। सभी के बच्चे बड़े हो चुके थे। सभी की घर गृहस्थी बसी हुई थी। सभी अपने-अपने घर चले गए। सर बड़े दुखी थे। मां भी नही रही। सर और मिनी की नौकरी भी नही रही। न ही घर मिला, न ही घर बसाने का कोई सामान मतलब दहेज़ ही मिला। अब मिनी और सर कहाँ जाए। सर उदास होकर बैठे थे। बड़े भैया आये और सर से बोले- "तुम चिंता मत करो। जब तक तुम्है नौकरी नही मिल जाती तुम मेरे साथ ही रहना।" सर को जैसे बहुत बड़ा सहारा मिल गया। सर ने तुरंत ही कहा - "भैया! आप मेरा खेत भी रख लीजिए और मेरे हिस्से का बर्तन भी। जब हम लोग बाहर जाएंगे हमे सिर्फ हमारे उपयोग के लिए चांवल दे दीजिएगा।" अब सबका किचन अलग हो चुका था। मिनी और सर बड़े भैया के साथ ही खाना खाने लगे।
लगभग दो महीने के बाद मिनी की पोस्टिंग होनी थी। इस बार मिनी सर के साथ ऑफिस गयी थी। साथ मे छोटा सा बच्चा। मिनी ऑफिस के एक रूम में बच्चे को लेकर बैठी हुई थी। उसी समय एक सज्जन आए। उन्होंने मिनी से बातों ही बातों में सारी जानकारी ले ली। मिनी ने उन्हें बताया कि हम दोनों पति पत्नी अलग अलग जिले में है और समझ नही आ रहा है कि मेरी पोस्टिंग कहाँ होगी। उस सज्जन व्यक्ति ने कहा- "आप चिंता मत कीजिये । आपकी पोस्टिंग हम वहाँ करेंगे जहाँ से दोनो को अपने अपने विद्यालय जाने में सुविधा हो।" मिनी चौक गयी। सौभाग्य से पोस्टिंग उन्ही के द्वारा की जा रही थी। उन्होंने कहा - "आप दोनों के जिले के बीच मे नदी है। हम आपकी पोस्टिंग इस जिले के अंतिम गांव में करते हैं जिसके बाद नदी है और नदी पार करते ही दूसरा जिला लग जाता है। इस तरह आप दोनों एक साथ रह सकेंगे।"
मिनी ने बस इतना पूछा कि वो गांव ठीक तो है न ? उन्होंने कहा - "आप बिलकुल चिंता मत कीजिये। आपको वहाँ कोई तकलीफ नही होगी।" मिनी और सर दोनो ने हामी भर दी और उस सज्जन व्यक्ति ने वहाँ मिनी की पोस्टिंग भी कर दी। ईश्वर का और उस सज्जन व्यक्ति का धन्यवाद करते हुए मिनी और सर उस गांव में गए जहाँ पोस्टिंग हुई थी। 4 महीने के बच्चे के साथ मिनी ने नए विद्यालय में पदभार ग्रहण किया। किराए से एक घर लिए फिर सर ने मिनी को माँ के पास पहुँचा दिया क्योंकि पुराने स्कूल वाले घर से सामान भी लाना था और नए जगह शिफ्ट भी होना था। सर भी इंटरव्यू दिला चुके थे, उनकी पोस्टिंग उन्ही के जिले में हुई .........क्रमशः 

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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