समाधान निकलना ही नहीं था
अब ये साफ है कि सरकार और आंदोलनकारी किसान संगठनों के बीच बातचीत टूट चुकी है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अब ये साफ है कि सरकार और आंदोलनकारी किसान संगठनों के बीच बातचीत टूट चुकी है। बातचीत के पहले दिन से अंदाजा था कि यही होगा। सरकार की मंशा पहले आंदोलन को थकाने की थी। इसमें कामयाबी मिलती ना देख उसके समर्थक जमातों और मीडिया ने आंदोलन को बदनाम की रणनीति अपनाई। खालिस्तानी से लेकर विपक्ष प्रेरित और कम्युनिस्टों से संचालित होने के इल्जाम आंदोलन पर मढ़े गए। लेकिन इससे भी आंदोलन का मनोबल नहीं टूटा, तो फिर आंदोलनकारियों के आगे एक चारा फेंका गया। या इसे ऐसे कहा जा सकता है कि उन्हें फेस सेविंग यानी चेहरा बचाने का एक रास्ता दिया गया। सरकार ने कहा कि वह तीनों विवादित कृषि कानूनों पर अमल डेढ़ साल के लिए रोक देगी। लेकिन गजट में अधिसूचित कानूनों के मामले में ऐसा वह किस कानून के तहत करेगी, यह नहीं बताया गया।