बरसी पर भी चैन की सांस लेने की स्थिति नहीं

जनता कर्फ्यू से शुरू होकर लॉकडाउन में उसके बदलने का एक साल पूरा हो गया है। लेकिन

Update: 2021-03-24 05:29 GMT

जनता कर्फ्यू से शुरू होकर लॉकडाउन में उसके बदलने का एक साल पूरा हो गया है। लेकिन उसकी बरसी पर भारत तनिक भी चैन की सांस लेने की स्थिति में नहीं है। बल्कि कुछ समय पहले चैन की सांस की जो उम्मीद बनी थी, वह रोज टूटती जा रही है। बीते एक साल में कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम का टीका आ चुका है। मगर संक्रमण पर रोक लगने की कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती। उलटे कोरोना की लहर भी तेजी से बढ़ रही है। एक बार फिर सबसे बुरा हाल महाराष्ट्र का है। कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री के. सुधाकर पुष्टि कर चुके हैं कि राज्य में कोरोना वायरस की दूसरी लहर शुरू हो गई है। इसी तरह आठ राज्यों में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। मगर इस बार लोग उतने चिंतित नहीं हैं। फिलहाल आलम यह है कि लोग अब बिना मास्क के ही बाजारों, सड़कों और अन्य जगहों पर नजर आ जाते हैं। कोरोना के प्रति लोगों की गंभीरता कम हो चुकी है। ऐसा क्यों है?


जाहिर है, इसलिए कि अभी सरकार भय का माहौल का माहौल नहीं बनाना चाहती। तो मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए भी कोरोना संक्रमण के एक साधारण खबर है। वरना, साल भर पहले जब देश में संक्रमण का खतरा मामूली था, तब लॉकडाउन की घोषणा हो गई थी। और तब सभी लोग अपने-अपने घरों में कैद हो गए और सड़कों पर सन्नाटा पसर गया था। अब यह तो सरकार ने भी माना है कि लोगों की लापरवाही ने कोरोना को ताकतवर होने का मौका दिया है। लोग अब कोरोना दिशा-निर्देश का पालन नहीं कर रहे हैं। पहले जिस तरह से लोग मास्क का इस्तेमाल किया करते थे, हैंड सैनिटाइज करते थे और सामाजिक दूरी का पालन करते थे, अब लोगों में वैसी गंभीरता नहीं दिख रही है। अंगभीर रुख खुद सरकारों और राजनीतिक दलों का भी है।
जब नेता लाखों लोगों की चुनाव सभाएं संबोधित कर रहे हैं, तो लोग आखिर क्यों घरों में दुबकें? फिर यह भी गौरतलब है कि केंद्र ने उत्तराखंड सरकार को खत लिखकर कुंभ मेले में कोरोना जांच बढ़ाने और कोरोना से बचाव के नियमों का सख्ती से पालन कराने को कहा है। जबकि उत्तराखंड सरकार ने अखबारों में विज्ञापन देकर को लोगों को कुंभ में बुलाया है। इससे समझा जा सकता है कि देश कोरोना के खतरे के प्रति अब कितना सतर्क रह गया है।


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