'द गॉडफादर' के आकर्षण से कोई भी भारतीय फिल्ममेकर बच नहीं सकता
वह ‘हेमलेट’ पढ़ने के बाद इसलिए हैरान रह गई क्योंकि पूरे नाटक में लिखी बातें उसे सुनी-सुनाई लगी
आशीष मेहता।
एक महिला के बारे में एक किस्सा है कि वह 'हेमलेट' (Hamlet) पढ़ने के बाद इसलिए हैरान रह गई क्योंकि पूरे नाटक में लिखी बातें उसे सुनी-सुनाई लगी. वाकई – अगर जोक्स का खुलासा करें तो – शेक्सपियर (William Shakespeare) के नाटकों की लगभग सभी लाइन इतनी बार अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल की गई हैं. सिनेमा जगत में, 'द गॉडफादर' (The Godfather) उन चुनिंदा कृतियों, 'कैसाब्लांका' इनमें सर्वश्रेष्ठ हो सकती है, में से एक है जिसे पहली बार देखने वाला दर्शक 'हेमलेट' की उस महिला पाठक से सहानुभूति रह सकता है.
क्लासिक बनाम एपिक
क्या 'हेमलेट' एक क्लासिक और एक एपिक के अंतर को दर्शाता है? साहित्य के जानकार या समीक्षक इस आसान अंतर को खारिज कर सकते हैं, लेकिन एपिक ऐसी सांस्कृतिक कृतियां होती हैं जिनकी कहानियों से अधिकतर लोग परिचित होते हैं, भले ही उन्होंने संबंधित कृति को पढ़ा या देखा नहीं हो. जैसे कि रामायण या द ऑडिसी, इन्हें बिना पढ़े या देखे भी आप इनके बारे में पहले से ही काफी कुछ जानते होते हैं. इसलिए जब आप 'हैमलेट' पढ़ते हैं या फिर 'द गॉडफादर' देखते हैं, आपको ऐसा लग सकता है कि आपने इनके बारे में पहले से पढ़ या देख रखा है, भले ही आपने ऐसा नहीं किया हो.
शिक्षाप्रद साहित्य बनाम अन्य साहित्य
एपिक, एक तरह से शिक्षाप्रद साहित्य होते हैं और द गॉडफादर, मानवीय प्रवृत्तियों को गहराई से दिखाने वाली एक रचना है. ज्ञान को लेकर उत्सुक लोगों ने फिल्मों से जीवन की शिक्षा और बुद्धिमानी की बातों को एकत्रित किया है. जैसा कि जो फॉक्स You've Got Mail में कैथलीन केली से कहता है, 'द गॉडफादर' सभी ज्ञानों का सारांश है. हां, यह सही है कि यह आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित न होकर दुनियादारी की सीख देती है, जो इसे रोजमर्रा के जीवनचर्या के प्रति ज्यादा प्रासंगिक बनाता है.
कला बनाम वास्तविकता
एक तो वास्तविकता होती है और फिर एक होती है कला जो इसकी व्याख्या की कोशिश करती है. हालांकि बिरले ही ऐसा होता है वास्तविकता कला को व्यक्त करना चाहती है. जॉन ले कैरे के जासूसी कथाओं को ही ले लें. वास्तविक दुनिया के जासूसों ने उन शब्दों का इस्तेमाल शुरू किया जिन्हें इन कृतियों में पहली बार गढ़ा गया – लैंपलाइटर्स, बेबीसिटर्स, चिकनफीड और सर्कस – बाद में ये सारे शब्द डिक्शनरी में भी नजर आने लगे. 'द गॉडफादर' के बाद, असल जीवन के माफियाओं ने डॉन कॉर्लियोन के स्टाइल को अपनाना शुरू कर दिया.
प्रेरणा बनाम नकल
फ्रांसिस फोर्ड कोपोला (द गॉडफादर के निर्देशक) की यह फिल्म शायद आपको इनके अंतर को समझने में मदद नहीं करेंगी. खास तौर पर भारत में, जहां कॉपीराइट के मसले को पारंपरिक तौर पर अलग तरीके से लिया जाता है. इस फिल्म के बाद तीन अलग-अलग तरीके के परिणाम सामने आए. एक में तो सीधे टाइटल समेत पूरी की पूरी फिल्म वहां से उठा ली गई – भले ही उसका अस्पष्ट अनुवाद ऐसा कुछ हो कि राष्ट्रपिता के सम्मान में बनी 'महात्मा' को 'धर्मात्मा' (1975) कर दिया गया. 'आतंक ही आतंक' (1995) में जब आमिर खान अस्पताल में अपने से पिता से मिलने जाते हैं तो वे ठीक उसी तरह के कोट में नज़र आते हैं जैसा माइकल कॉर्लियोन पहनते थे.
दूसरी श्रेणी ऐसी है जहां 'द गॉडफादर' को भारतीय संदर्भ में कल्पित करने की कोशिश की जाती है. फिल्म 'सरकार' इसका एक उदाहरण हो सकती है, जहां कोपोला की कृति को मुंबई के तर्ज पर कॉपी करने का प्रयास किया गया. भारतीय राजनीति को दिखाने के लिए 'राजनीति' में भी महाभारत के दांव पेंचों का सहारा लिया गया.
तीसरी श्रेणी वह है, जहां इस मास्टरपीस को सीधे तौर पर या परोक्ष रूप से श्रद्धांजलि दी जाती है. कई निर्देशकों या लेखकों के लिए 'द गॉडफादर' एक ऐसी कृति है जिसे दोबारा नहीं बनाया जा सकता, इसलिए ऐसे निर्देशक या लेखक इसके सामने अपना सिर झुका देते हैं. अब इस लिहाज से 'नायकन' (1987) और 'दयावन' (1988) को तीनों में किस श्रेणी में डाला जाए यह बहस की बात हो सकती है. वहीं 'परिंदा' (1989) की बात करें तो कोपोला की फिल्म की कहानी तो इससे नहीं मेल खाती, लेकिन इसका एस्थेटिक्स 'द गॉडफादर' से प्रेरित है.
'द गॉडफादर' की महानता इस तथ्य में हो सकती है कि यह 'कैसाब्लांका' के उलट है
यह एक दिलचस्प श्रेणी है. ब्रायन डी पाल्मा की क्लासिक फिल्म 'द अनटचेबल्स' (1987) के एक लंबे सीन में सर्गेई ईसेनस्टीन की 'बैटलशिप पोटेमकिन' के मशहूर ओडेसा स्टेप्स सीक्वेंस का नकल किया गया है. जब आप जिम मेलोन (सीन कॉनरी) की हत्या होते देखते हैं तो आपको अल्फ्रेड हिचकॉक की याद आती है. इसमें एंटोनियोनी और कोपोला जैसे बेहतरीन निर्देशकों की झलक (जिसे फिल्म समीक्षक संदर्भ के तौर पर देखते हैं) नजर आती है. लेकिन इसे नकल नहीं कहा जा सकता, बल्कि इसे प्रेरणा या फिर एक तरह की श्रद्धांजलि ही कही जाएगी.
यह एक तरह का मेटा-फिक्शन बन जाता है, जहां एक फिल्म में किसी दूसरी फिल्म का संदर्भ के तौर पर जिक्र या समानता प्रदर्शित किया जाता है. फिल्मों में दिलचस्पी रखने वाले लोग इन संदर्भों को शामिल करने के लिए काफी मेहनत करते हैं, जैसा कि 'जॉनी गद्दार' (2007) में हुआ. और सिनेमा में 'द गॉडफादर' संभवत: सबसे अधिक संदर्भित फिल्म है. जब 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' (2012) में फैजल खान (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) ट्रेन के डिब्बे में पिस्टल को शौचालय में छुपाता है तो वह अनजाने में ही माइकल ऑर्लियोन द्वारा ड्रग माफिया सोलोजो को खत्म करने की चतुर चाल की नकल करता है.
दार्शनिक अम्बर्टो इको, 'कैसाब्लांका' पर लिखे अपने निबंध में कहते हैं, "यह केवल एक फिल्म नहीं है, बल्कि यह कई फिल्मों का एक संकलन है." – कुछ हद तक 'हेमलेट' की तरह. साथ ही, "यह एक कल्ट मूवी है क्योंकि इसमें सभी तरह के आदर्श शामिल हैं." 'द गॉडफादर' की महानता इस तथ्य में हो सकती है कि यह 'कैसाब्लांका' के उलट है. इस फिल्म ने भारत सहित कई देशों में आर्किटाइप और प्रेरित एंथोलोजीज (संकलन) दोनों तैयार किए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)