योजनानुसार जेट एयरवेज सूचीबद्ध कंपनी बनी रहेगी। इसके नए मालिक मुरारी लाल जालान उजबेकिस्तान में रियल एस्टेट के कारोबारी हैं। उनका भारत, रूस और उजबेकिस्तान में निवेश है। नई व्यवस्था के तहत जालान के पास जेट की 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी, जबकि 14 प्रतिशत की हिस्सेदारी कालरॉक कैपिटल के पास और 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी ऋणदाताओं के पास होगी। कालरॉक कैपिटल लंदन की वित्तीय सलाहकार और वैकल्पिक परिसंपत्ति प्रबंधन इकाई है। उल्लेखनीय है कि कालरॉक कैपिटल और मुरारी लाल जालान की प्रस्तावित समाधान योजना को जेट एयरवेज के ऋणदाताओं ने अक्टूबर में मंजूरी दे दी थी और अब राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) से मंजूरी मिलने का इंतजार जेट के नए निवेशक कर रहे हैं। नए कंर्सोिटयम ने जेट एयरवेज में करीब 1,000 करोड़ रुपये निवेश करने का प्रस्ताव किया है और नियामकीय मंजूरियां मिलने के बाद कंपनी के नए मालिक जेट में और निवेश करने के लिए तैयार हैं। हवाई अड्डा स्लॉट जल्द से जल्द जेट एयरवेज को मिलने पर भी इसकी कामयाबी निर्भर होगी।
जेट का परिचालन बंद होने के समय उसके पास लगभग 700 स्लॉट थे। चूंकि जेट के बंद होने पर दूसरी विमानन कंपनियों को इन स्लॉटों का आवंटन अस्थायी तौर पर किया गया था, इसल माना जा रहा है कि एनसीएलटी से योजना को मंजूरी मिलने पर उसके आवंटित स्लॉट वापस कर दिए जाएंगे। जेट एयरवेज का घाटा मार्च 2019 को समाप्त हुए वित्त वर्ष में 5,535.75 करोड़ रुपये था। वर्ष 2018-19 में एयरलाइन की कुल आय एक साल पहले के मुकाबले घटकर 23,314.11 करोड़ रुपये रह गई थी। पिछले साल कंपनी ने 23,958.37 करोड़ रुपये का कारोबार किया था। इस दौरान ईंधन के दाम बढ़ने से कंपनी का कुल खर्च बढ़कर 28,141.61 करोड़ रुपये हो गया था। परिचालन बंद करने के बाद जेट को जून 2019 में कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया का हिस्सा बनना पड़ा।
बंद होने से पहले बढ़ते घाटे के कारण जेट अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रहा था। जेट का जेटलाइट में विलय नहीं होने से भी इसकी वित्तीय स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के कारण आयकर विभाग द्वारा कंपनी के मुंबई और दिल्ली दफ्तर पर छापे डालने से भी इसकी साख को धक्का लगा। इसके अलावा जेट एयरवेज इंडिगो की तुलना में ईंधन की लागत को छोड़कर अन्य खर्चों पर एक रुपये ज्यादा खर्च कर रहा था, जिससे वर्ष 2015 के अंत में जेट को इंडिगो की तुलना में हर सीट पर प्रति किमी 50 पैसे ज्यादा कमाई हो रही थी। जेट को पीछे छोड़ने के लिए इंडिगो ने टिकट को सस्ता किया, लेकिन जेट ने ऐसा नहीं किया, जिस कारण उसे नुकसान हुआ, जिसकी वह बाद में भरपाई नहीं कर सका। जेट को सबसे ज्यादा नुकसान वर्ष 2017 में हुआ, जब ईंधन की कीमतें बढ़ने लगीं। पहले से कर्ज में डूबे होने के कारण उसकी उसकी स्थिति और भी ज्यादा खराब हो गई।
नए निवेशकों को भी जेट के प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए परिचालन को चाक- चौबंद, कर्मचारियों को बदलते परिवेश के अनुसार प्रशिक्षित एवं जागरूक बनाने की जरूरत होगी, क्योंकि समय पर परिचालन हेतु कर्मचारियों मसलन पायलट, केबिन क्रू, इंजीनियरिंग सेक्शन, ग्राउंड हैंडलिंग आदि की अहम भूमिका होती है। विमानों के बुद्धिमत्तापूर्ण इस्तेमाल जैसे जिस मार्ग पर यात्रियों का आवागमन अधिक है, वहां एक से अधिक विमानों का उपयोग किया जा सकता है। वैसे विमानों का ज्यादा उपयोग किए जाने की जरूरत है, जिसमें कम ईंधन की खपत होती है। यात्रियों को लुभाने के लिए विज्ञापन का सहारा लिया जा सकता है। यात्री किराया में कमी करना भी अच्छा विकल्प हो सकता है।
त्योहारों में या सीजन के अनुसार बेसिक किराये में कमी करके या सौगात देने वाली योजनाओं के माध्यम से भी यात्रियों को लुभाया जा सकता है। कम किराया की भरपाई विमानों के अधिक फेरे लगा कर किए जा सकते हैं। प्रतिबद्ध तथा गुणवत्तापूर्ण सेवा के द्वारा भी इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। अगर जेट के नए निवेशक इन उपायों को अपनाते हैं तोदूसरी विमानन कंपनियों को कड़ी चुनौती देने में सफल रहेंगे। वर्तमान में विमानन क्षेत्र में एयरलाइंस की लागत ज्यादा है, लेकिन राजस्व कम। गलाकाट प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के चक्कर में उनकी वित्तीय स्थिति और भी खराब हो जाती है। व्यस्त रूट में कितनी उड़ान भर रहा है, उस पर भी वित्तीय प्रदर्शन निर्भर करता है। कहा जा सकता है कि इसे आम आदमी का परिवहन बनाने में अभी बहुत मुश्किलें हैं। इस क्षेत्र का सबसे स्याह पक्ष यह है कि सुरक्षा और मुआवजा देने के मामले में भी यह क्षेत्र चमकीला नहीं है।
आर्थिकी में तेज सुधार की आस : वर्ष 2020 के आखिरी मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर को चार प्रतिशत पर यथावत रखा गया। रिवर्स रेपो दर को 3.35 प्रतिशत और स्थायी सीमांत सुविधा व बैंक दर को भी 4.25 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया। मौद्रिक नीति समिति के सभी सदस्यों ने मुद्रास्फीति के उच्च स्तर को देखते हुए नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में निर्णय किया। चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत गिरावट आने का अनुमान है। पहले रिजर्व बैंक ने 9.5 प्रतिशत गिरावट आने का अनुमान लगाया था। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर तीसरी तिमाही में 0.1 प्रतिशत के साथ सकारात्मक दायरे में लौटने का अनुमान है, जबकि चौथी तिमाही में इसमें 0.7 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति तीसरी तिमाही में 6.8 प्रतिशत, चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है। वैसे भारतीय रिजर्व बैंक ने र्सिदयों में महंगाई दर में कमी आने की उम्मीद जताई है, जिसका कारण रबी फसलों का उत्पादन बंपर होने का अनुमान है। केंद्रीय बैंक का मानना है कि आर्पूित पर महंगाई का दबाव है, लेकिन र्आिथक गतिविधियों में तेजी आने और मानसून के ठीक रहने से महंगाई नियंत्रण में आ जाएगी। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कॉरपोरेट आय में इजाफा से पता चलता है कि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मांग में सुधार हो रहा है। रिजर्व बैंक का कहना है कि वित्तीय बाजार व्यवस्थित तरीके से काम कर रहा है। यह भी कहा है कि वाणिज्यिक व सहकारी बैंक 2019-20 का मुनाफा अपने पास रखेंगे और वित्त वर्ष के लिए लाभांश का भुगतान नहीं करेंगे। ऐसा करने से बैंक की पूंजी में बढ़ोतरी होगी और वे ज्यादा से ज्यादा ऋण वितरण का कार्य कर सकेंगे।
आरटीजीएस प्रणाली आगामी कुछ दिनों में सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे काम करने लगेगी। कार्ड से संपर्करहित लेन-देन की सीमा जनवरी से दो हजार रुपये से बढ़ाकर पांच हजार रुपये कर दी जाएगी। केंद्रीय बैंक की इस पहल से कारोबारियों को कारोबार करने में सुविधा होगी। शिकायतों के निपटारे में विलंब होने पर ग्राहकों को मुआवजा देने की व्यवस्था करने की बात भी मौद्रिक समीक्षा में कही गई है। इस व्यवस्था से ग्राहकों का विश्वास र्बैंंकग प्रणाली पर बढ़ेगा। तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था पर वैश्विक र्आिथक अनिश्चितता का भी असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि देश में आर्थिक गतिविधियों में सुधार देखा जा रहा है। अक्टूबर में कारों, दोपहिया और तिपहिया वाहनों व ट्रैक्टरों की बिक्री भी बढ़ी है, जो लोगों की आय में वृद्धि को दर्शाता है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भारत निवेशकों का पसंदीदा गंतव्य बना हुआ है और 2020-21 की पहली छमाही में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सालाना आधार पर 10 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
बीते वर्षों आइएलएंडएफएस एवं दीवान हाउसिंग लिमिटेड एनबीएफसी कंपनियों में आए संकट की वजह से एनबीएफसी की साख को भारी धक्का लगा था, जिसका एक महत्वपूर्ण कारण कमजोर ऑडिट की व्यवस्था का होना था। इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक समीक्षा में रिस्क बेस्ड इंटरनल ऑडिट को एनबीएफसी के लिए भी अनिवार्य कर दिया है। बैंकों में यह व्यवस्था 2002 से लागू थी। इसका मकसद एनबीएफसी के परिचालन में मौजूद जोखिम का प्रबंधन करना और विसंगतियों को दूर करना है। कोरोना महामारी के साये में रिजर्व बैंक का ध्यान फिलवक्त जीडीपी की दर बढ़ाने पर है। इसी को दृष्टिगत करते हुए केंद्रीय बैंक सुधारात्मक कदम उठा रहा है। भले ही रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में कटौती नहीं की है, लेकिन जरूरत पड़ने पर वह ऐसा कर सकता है। रिजर्व बैंक का मानना है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में जीडीपी वृद्धि दर में उम्मीद से ज्यादा तेजी रहेगी। पड़ताल से साफ है मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रखना रिजर्व बैंक द्वारा उठाया गया समीचीन कदम है, क्योंकि अन्य सुधारों के साथ-साथ अक्तूबर में उद्योग को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में ऋण वृद्धि दर में इजाफा हुआ है।