नई शिक्षा नीति : आजादी के 75 वें साल की एक नई व्यवस्था
34 वर्षों के बाद 29 जुलाई 2020 को भारत सरकार ने भारतीय संस्कृति एवं उसकी परंपरा को देखते हुए अंग्रेजों द्वारा विशेषकर मैकाले की शिक्षा नीति की जगह नई शिक्षा नीति की घोषणा की है
by Lagatar News
DR. SKL DAS
34 वर्षों के बाद 29 जुलाई 2020 को भारत सरकार ने भारतीय संस्कृति एवं उसकी परंपरा को देखते हुए अंग्रेजों द्वारा विशेषकर मैकाले की शिक्षा नीति की जगह नई शिक्षा नीति की घोषणा की है. पुरानी शिक्षा नीति में बदलाव कर, आने वाली पीढ़ी को मानसिक और बौद्धिक स्तर पर प्रबल बनाने पर बल दिया गया है. शिक्षा किसी भी देश का सबसे शक्तिशाली हथियार होता है, जिससे आप अपनी मानसिकता के साथ-साथ अपने राष्ट्र को भी नई दिशा प्रदान कर सकते हैं.
मुगल-ब्रिटिश ने हमारी व्यवस्था को कमजोर किया
यदि हम अपनी पुरानी शिक्षा व्यवस्था पर गौर करें तो मालूम पड़ेगा कि हमारे यहां नालंदा, तक्षशिला जैसी अनेक विश्व प्रसिद्ध संस्थाएं थी. इन संस्थानों ने आर्यभट्ट जैसे विद्वान को जन्म दिया था. चाहे चिकित्सा शास्त्र, धर्म शास्त्र, भौगोलिक शास्त्र हो या गणित की गणना आदि इन्हीं संस्थाओं के द्वारा विश्व को दिया गया. लेकिन मुगल तथा ब्रिटिशों ने हमारी पुरानी व्यवस्था को कमजोर कर उसके स्थान पर अपनी शिक्षा व्यवस्था प्रारंभ की, जिसने हमारी सारी परंपरा तथा बौद्धिक विकास को कमजोर कर दिया. नई शिक्षा नीति में हमारी पुरानी परंपरा तथा इतिहास को ध्यान में रखकर क्रियान्वयन पर जोर दिया गया है, जिससे हमारी आने वाले पीढ़ी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पाएगी तथा एक बौद्धिक व शिक्षित समाज की स्थापना हो पाएगी.
5 + 3 + 3 + 4 का मॉडल तैयार किया
नई शिक्षा नीति में 10 + 2 के पाठ्यक्रम को समाप्त कर 5 + 3 + 3 + 4 का मॉडल तैयार किया गया है. जिसमें पहले 5 वर्ष के अध्ययन को फाउंडेशन स्टेज कहा जाता है. 5 वर्ष को निम्न प्रकार से बांटा गया है : फाउंडेशन स्टेज के अंतर्गत पहले तीन वर्ष बच्चों को आंगनबाड़ी में प्री-स्कूल शिक्षा लेनी होगी. यहां बच्चों में एक मजबूत एवं बेहतरीन भविष्य की नींव को तैयार करना है. बच्चे 3 साल के बाद चौथे वर्ष में पहली तथा पांचवें वर्ष में दूसरी कक्षा में प्रवेश करेंगे. यानी 3 वर्ष में बच्चों का नामांकन होगा तथा वह 3 वर्ष प्राइमरी यानी प्रीपेट्री के बाद पहली वर्ग में प्रोन्नत होंगे. यानी 8 वर्ष की आयु में बच्चे तीसरी वर्ग में आएंगे. कहा जाता है कि 5 वर्ष की आयु में बच्चों के ब्रेन का 80 प्रतिशत विकास हो जाता है. यदि इन वर्षों में उन्हें नैतिक तथा सामाजिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है, तो उनका आधार मजबूत हो जाता है तथा भविष्य में वे एक सक्षम नागरिक बन सकते हैं.
शिक्षण के तरीके में भी सुधार होगा
विशेषकर इन बच्चों को गणित, कला, सामाजिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाए जाएंगे. इसके माध्यम से शिक्षण के तरीके में भी सुधार हो सकता है. आज हम बच्चों को केवल रटने का ज्ञान देते हैं. उनमें अपने से सोचने की शक्ति नहीं होने देते. इसे दूर करना आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है. साथ-साथ इस नीति में स्थानीय भाषा में शिक्षा व्यवस्था पर भी जोर दिया गया है. जिससे बच्चे अपने पारंपरिक व्यवस्थाओं, भाषा तथा संस्कार का ज्ञान प्राप्त कर सकें. नई शिक्षा नीति के बाद 11वीं एवं 12वीं के पाठ्यक्रम में स्ट्रीम सिस्टम खत्म हो जाएगा. अब बच्चे अपने पसंद से विषय का चयन कर सकते हैं. इसका यह लाभ होगा कि शिक्षार्थी की जिस विषय में रुचि होगी, उस पर अपना विशेष ध्यान दे सकेंगे. हमारे प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा है : 'हमें डिग्री नहीं बल्कि देश को आगे ले जाने वाले युवा चाहिए'. मानवीय संस्थानों के विकास में यह शिक्षा नीति एक मिसाल कायम कर सकती है.
अनुसंधान युक्त शिक्षा को विशेष बल मिलेगा
अब बोर्ड से लेकर विश्वविद्यालय की परीक्षा पद्धति में परिवर्तन होगा. यदि यह नीति सही तरह से प्रारंभ से ही लागू की जाती है तो व्यावहारिक ज्ञान पर आधारित तथा अनुसंधान युक्त शिक्षा को विशेष बल मिलेगा. यह नीति न केवल स्कूली बच्चों के लिए है बल्कि यह महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के छात्रों पर भी लागू होता है. महाविद्यालय में भी शिक्षार्थी अपने मनपसंद के विषयों का चयन कर अपना पूरा ध्यान ज्ञान अर्जन में लगाकर एक सक्षम नागरिक बनकर देश तथा समाज के विकास में अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं. हम यह जानते हैं कि शिक्षा का अर्थ होता है सीखना या सिखाने की क्रिया. लेकिन पहले वाली शिक्षा में न तो कोई सीखने वाला मिला और ना कोई सिखाने वाली वस्तु. केवल एक रटने वाले प्राणी को हम जन्म दिया करते थे. उनका सर्वांगीण विकास अवरुद्ध हो जाता था.
सांस्कृतिक, वैज्ञानिक व ऐतिहासिक ज्ञान प्राप्त होगा
नई शिक्षा नीति ठीक इसके विपरीत है. यह बहुल दिशा दृष्टिकोण पर आधारित है. इसके माध्यम से किताबी ज्ञान के अतिरिक्त भौगोलिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक व ऐतिहासिक ज्ञान प्राप्त होगा, जो समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. वास्तव में यह बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन की स्थापना पर आधारित नीति है. इसमें भारतीय भाषाओं की विविधता पर भी बल दिया गया है. कक्षा 5 तक के बच्चों को मातृभाषा, स्थानीय भाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन का माध्यम बनाने पर बल दिया गया है. वैसे इस नीति को हम आजादी के 75 वें साल की एक नई व्यवस्था कह सकते हैं. यह एक दूरदर्शी शिक्षा नीति करार दी जा सकती है, लेकिन, अभी तक राज्यों में विशेषकर सरकारी विद्यालयों में इस नीति पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है. हां, विद्या भारती द्वारा संचालित विद्यालयों में इस विषय पर विशेष सत्र चलाकर शिक्षकों को जागरूक करने तथा पाठ्यक्रमों में बदलाव प्रारंभ हो गया है.
पर अमल की राह में अनेक बाधा
भारत जैसे विशाल देश में इसे पूरी तरह अमल में लाने में अनेक बाधा हैं. भारत में 15 लाख से अधिक विद्यालयों में 25 करोड़ से अधिक शिक्षार्थी को लगभग 89 लाख शिक्षक या आचार्य शिक्षा प्रदान करते हैं. इन शिक्षकों और आचार्यों के बीच नई शिक्षा नीति के प्रति जागरूकता का अभाव है. इन्हें जागरूक बनाकर इसे लागू किया जा सकता है. इसी तरह लगभग चार करोड़ छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. देश में लगभग 40,000 महाविद्यालय, 1000 विश्वविद्यालय तथा 10,000 से अधिक स्वतंत्र संस्थान है. इनमें नई शिक्षा नीति लागू करना एक कठिन कार्य हो सकता है. इसके लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम के साथ-साथ पाठ्यक्रमों में बदलाव लाना आवश्यक एवं महत्वपूर्ण चुनौती है. नई शिक्षा नीति में पुराने पाठ्यक्रमों के स्थान पर प्रायोगिक शिक्षा और गहन शोध पर आधारित शिक्षा की ओर बढ़ना आवश्यक कदम होगा. इसके अतिरिक्त इस नीति की सफलता केंद्र तथा राज्यों के बीच के सहयोग पर भी निर्भर करेगा. हाल के वर्षों में राजनीतिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया ने केंद्र एवं राज्यों के बीच संबंधों पर प्रभाव डाला है. जिसके कारण नई शिक्षा व्यवस्था पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिसका अंतिम प्रभाव शिक्षार्थी पर ही होगा.
8 से 10 प्रतिशत बजट शिक्षा पर व्यय करना होगा
इसके साथ-साथ समावेशी दृष्टिकोण को साकार करने में उच्च शिक्षा व्यवस्था की भूमिका निर्णायक है. हम यह कह सकते हैं कि नई शिक्षा नीति को लागू करने में वित्तीय संस्थानों की पर्याप्त आवश्यकता होगी. इसके लिए बजटीय प्रावधान में परिवर्तन करना आवश्यक होगा. सकल घरेलू उत्पाद [GDP] का 8 से 10 प्रतिशत बजट शिक्षा पर व्यय करना आवश्यक होगा. तभी हम इस नीति को लागू कर सकते हैं. इसके साथ ही इसे सफल बनाने के लिए अधिक से अधिक विद्यार्थियों को शिक्षा से जोड़ने का लक्ष्य भी पूरा करना होगा. वर्तमान में देश में ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) 20-21 प्रतिशत है, इसे बढाकर वर्ष 2030 तक दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है. इसलिए यह नीति यदि सही तरह से कार्यान्वित हो जाती है, तो इस लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है. [लेखक BBMKU के पूर्व रजिस्ट्रार हैं ]