हवाई यात्रा के नए संकट
जब विमान कंपनियों के पास धन की कमी होती है, तो वे अक्सर एक विमान के पुर्जों का इस्तेमाल दूसरे विमानों में करती हैं। इससे सुरक्षा खतरे में पड़ती है। आपात स्थिति में विमान उतारने जैसे मामलों में हुई बढ़ोतरी बताती है कि रखरखाव और निगरानी में कुछ दोष अवश्य हैं।
संजय वर्मा; जब विमान कंपनियों के पास धन की कमी होती है, तो वे अक्सर एक विमान के पुर्जों का इस्तेमाल दूसरे विमानों में करती हैं। इससे सुरक्षा खतरे में पड़ती है। आपात स्थिति में विमान उतारने जैसे मामलों में हुई बढ़ोतरी बताती है कि रखरखाव और निगरानी में कुछ दोष अवश्य हैं।
जब से ऊंची श्रेणियों का रेल किराया विमान यात्राओं के लगभग बराबर हुआ है, हवाई यात्रा का विकल्प ही बेहतर समझा जाने लगा है। सड़क हादसों के आंकड़े देखें, तब भी विमान यात्रा ज्यादा सुरक्षित लगती है। लेकिन उड़ते विमान की खिड़की का शीशा चटक जाए, इंजन से लपटें निकलती देख यात्रियों की सांसें अटकने लगें या केबिन से धुआं आने की सूरत में विमानों को आपात स्थिति में दूसरे देशों में उतारने की नौबत आ जाए, तो विमान सेवाओं पर सवाल क्यों नहीं उठेंगे? सुरक्षा से जुड़े ऐसे मुद्दे केवल किसी एक विमानन कंपनी तक सीमित नहीं हैं। हाल में कई कंपनियों के विमानों में उड़ान के दौरान ऐसी गंभीर समस्याएं देखने को मिलीं हैं जो यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से बेहद गंभीर हैं।
ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्तियों के मद्देनजर नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) में साफ तौर पर आदेश दे दिए हैं कि अब विमानपत्तनों पर सभी विमानों की जांच एक खास लाइसेंसधारक कर्मचारी ही करेंगे। वही तय करेंगे कि विमान उड़ान भरने योग्य है या नहीं। यही नहीं, खुद डीजीसीए ने भी अपनी ओर से ऐसी जांच शुरू कर दी हैं।
अगर डीजीसीए के हालिया निर्देशों पर गौर करें तो पता चलेगा कि विमान सेवा उद्योग अंदरूनी समस्याओं से जूझ रहा है। हाल में एक निजी विमान कंपनी के कर्मचारियों ने ही विमान निर्माता कंपनी को ही चिट्ठी लिख कर दावा किया कि उसके विमानों का रखरखाव ठीक से नहीं किया जा रहा। यह कारण उचित प्रतीत नहीं होता कि कोरोना काल में करीब दो साल तक हवाई अड्डों में खड़े रहे विमानों में कुछ गड़बड़ियां पैदा हो गर्इं।
जानकारों का मानना है कि विमानों मे छोटी-मोटी दिक्कतें आना आम बात है, लेकिन पिछले कुछ समय में एक के बाद एक ऐसी सूचनाएं मिलना किसी बड़ी गड़बड़ी के संकेत से कम नहीं हैं। डीजीसीए ने एक नियामक की हैसियत से जिन विमान कंपनियों के विमानों की जांच की, उनसे मिले नतीजे खासतौर से रखरखाव में खामियों की ओर इशारा करते हैं। यह भी सामने आया कि विमान सेवा कंपनियों के पास प्रशिक्षत कर्मचारियों की कमी है।
हालांकि डीजीसीए के निर्देशों और जांच के कदमों से कंपनियां दबाव में हैं। इसलिए वे अपनी कमियां छिपाने के लिए कई कारणों का हवाला देती रही हैं।कंपनियों को लग रहा है कि ये निर्देश नए हैं, पहले इनका जिक्र नहीं होता था। या फिर महामारी के दौरान विमानों के खड़े रहने से उनका खर्च बढ़ गया और इस खर्च की भरपाई के लिए उन्हें छूटें नहीं मिल रही है, जिसका असर रखरखाव पर होने वाले खर्च पर पड़ता है।
लेकिन सुरक्षा संबंधी कायदे नए नहीं हैं। ये कोविड के दौर से पहले ही अमल में लाए जा रहे थे। वर्ष 2010 से देश में हवाई सुरक्षा के नियमों और गतिविधियों के लिए जो सुरक्षा कार्यक्रम लागू किया गया था, डीजीसीए ने हाल में उन्हीं नियमों की पुनरावृत्ति की है। सुरक्षा के स्थापित मानकों व रखरखाव संबंधी नियमों के अनुपालन में कोताही ही हाल की उन ज्यादातर घटनाओं के केंद्र में है, जिनके चलते विमान उड़ानों के दौरान गड़बड़ी की शिकायतें मिली हैं।
उड़ान के दौरान विमान की खिड़कियों के शीशे चटकने, इंजन से धुआं निकलने जैसी घटनाओं में जो बढ़ोत्तरी हुई है, उससे विमान यात्राओं की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। कंपनियां बार-बार दावा करती रहीं कि वे सुरक्षा व रखरखाव संबंधी सभी मानदंड और उपाय अपना रही हैं। हालांकि उनके ये तर्क गले नहीं उतरते, क्योंकि इसी दौरान उन्होंने कोविड प्रतिबंधों का हवाला देकर यात्री संख्या में कमी का बहाना बनाया।
रखरखाव और मरम्मत पर खर्च के दबाव को कारण बताया। र्इंधन की ऊंची कीमतों का हवाला भी दिया। एक कंपनी के प्रमुख ने तो साफ कहा कि बीते एक साल में विमान में इस्तेमाल होने वाले र्इंधन (एटीएफ- एविएशन टर्बाइन फ्यूल) की कीमत एक सौ बीस फीसद बढ़ गई है, जिसे वहन कर पाना विमान कंपनियों के लिए संभव नहीं है। यही नहीं, भारत में दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा महंगा तेल मिलता है और डालर के मुकाबले गिरते रुपए के कारण हालात और कठिन हो गए हैं। आकलन के अनुसार विमान उड़ाने में आने वाली लागत में एटीएफ का हिस्सा पचास फसदी होता है। ऐसे में महंगा र्इंधन विमान कंपनियों के संचालन और रखरखाव के खर्च पर भारी दबाव पैदा कर रहा है। निश्चय ही दबाव काफी ज्यादा हैं, पर इस तस्वीर का दूसरा पहलू भी है।
उल्लेखनीय है कि विमान कंपनियों को कोविड के झटके से उबारने के लिए सरकार ने विमानन नीति में कई बदलाव किए। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने यह मानते हुए कि 2027-28 तक देश में 54.2 करोड़ लोग विमानों से यात्रा करेंगे (जो कोविड-पूर्व महामारी के स्तर से बीस करोड़ अधिक है), कई रियायतें विमान कंपनियों को प्रदान कीं। जैसे सीटों के बीच अंतर रखने (बीच की सीट खाली छोड़ने) संबंधी प्रतिबंध हटा लिया गया। मरम्मत और रखरखाव पर जीएसटी दर अठारह फीसद से घटा कर पांच फीसदी कर दी गई।
हालांकि जहां तक र्इंधन की कीमतों का सवाल है, तो इससे सिर्फ विमानन उद्योग पर असर नहीं पड़ रहा है, बल्कि अर्थव्यवस्था का हर हिस्सा इससे प्रभावित है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि विमान कंपनियां र्इंधन की कीमतों से हो रही परेशानी का हवाला देकर सुरक्षा में रह जाने वाली खामियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से बरी मान ली जाएंगी। उन्हें ध्यान रखना होगा कि उनकी एक लापरवाही देश के पूरे विमानन उद्योग, भारत सरकार और यहां तक कि देश की छवि पर एक नकारात्मक असर डालती है।
गड़बड़ियों का स्तर क्या है, इसकी जांच में डीजीसीए को कुछ खास कारणों का पता चला है। जैसे मौके पर की गई जांच में डीडीसीए ने इस एक बड़ी खामी का पता लगाया कि कोई खराबी पता चलने पर कंपनियां उस खामी के सही कारणों का पता नहीं लगा पार्इं। इसके अलावा किसी विमान को किसी समस्या या खराब उपकरणों के साथ एक निश्चित अवधि के लिए तब तक उड़ाया जाता है, जब तक कि वह उपकरण मरम्मत के लिए उपलब्ध न हो जाए। इसी तरह यदि एक ही कंपनी की दो उड़ानों के बीच समय का बहुत कम अंतर हो, तो जांच के लिए जरूरी प्रशिक्षित स्टाफ उपलब्ध नहीं हो पाता। कर्मचारी नहीं मिलने की सूरत में भी उड़ानों को रोका नहीं जाता क्योंकि उन पर यात्रियों को समय पर उनके गंतव्य तक पहुंचाने का दबाव होता है।
विशेषज्ञों की मानें तो जब विमान कंपनियों के पास धन की कमी होती है, तो वे अक्सर एक विमान के पुर्जों का इस्तेमाल दूसरे विमानों में करती हैं। इससे सुरक्षा खतरे में पड़ती है। आपात स्थिति में विमान उतारने जैसे मामलों में हुई बढ़ोत्तरी बताती है कि रखरखाव और निगरानी में कुछ दोष अवश्य हैं। अच्छा यही होगा कि डीजीसीए विमान कंपनियों की जवाबदेही-जिम्मेदारी तय करते हुए खुद विमान कंपनियों के अंदरूनी हालात का जायजा ले और कड़ाई से उनके विमानों की जांच करे।
जांच सिर्फ विमानों की नहीं, बल्कि हवाई अड्डों की भी होनी चाहिए और जरा-सी गड़बड़ी मिलने पर भी उड़ान को रोकने का नियम बनाना चाहिए। यात्रियों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखने के जिस तर्क के साथ विमानों को आपात हालत में उतारा जाता है, उसी तर्क के साथ विमानों को उड़ने से पहले ही रोका भी जा सकता है। इस छोटी-सी बात को समझने के लिए किसी नियम-पुस्तिका की जरूरत तो नहीं होती।