नया बिहार नारों से नहीं हमारे-आपके इस संकल्प से ही बनेगा
दलों की दलदल में भविष्य का कमल खिलाना आसान नहीं.. लेकिन फैसला तो करना ही होगा।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दलों की दलदल में भविष्य का कमल खिलाना आसान नहीं.. लेकिन फैसला तो करना ही होगा। मगध, अंग, वैशाली, मिथिला, कोसी, भोजपुर सबको सोचना होगा। जाति की सड़ियल राजनीति से बस एक बार ऊपर उठ जाओ। आप उठ सकते हैं। पता है मुझे। जाति के नाम पर सोचना सिर्फ एक छोटी सी आदत है तुम्हारी, जो किसी भी वक्त बदली जा सकती है। तुम्हारे शरीर में बहता खून क्रांति के वेग से चलता है, वो एक झटके में पूरी व्यवस्था बदलने की ताकत रखता है, तो फिर इस छोटी सी आदत की क्या बिसात?
बिहारियों, याद रखना तुम्हारी सिर्फ एक जाति है और वह है- बिहारी। खुद को चाहे जो समझो, लेकिन पूरे भारतवर्ष में इस वक्त सिर्फ यही पहचान है तुम्हारी। कुछ लोगों के दिमाग में तो कमरिया लचके और लॉलीपॉप से आगे बिहार की कुछ और छवि बनती ही नहीं.. और तुम इस तंज से भी खुश हो जाते हो। इससे ऊपर उठो। कब तक धकिया कर भगाए जाते रहोगे, अकाल में काल के मुंह में धकेले जाने के अभिशप्त रहोगे। कब तक कोई सेठ, कोई पोटली पति तुम्हारा एजेंडा सेट करता रहेगा। कब तक तुम्हारे बच्चे अपनी धरती से दो जून की रोटी के लिए दूर जाते रहेंगे।
मां-बाप, गांव-घर, खेत-खलिहान, मकान-दुकान, रिश्ते-नाते सबसे दूर। ऊंचे अवसरों की तलाश में बाहर जाना बुरा नहीं, लेकिन अगर सामान्य कामों के लिए भी हजार दो हजार किमी दूर जाना पड़े तो फिर समझो तुम सिर्फ कच्चा माल रह गए हो.. भट्ठी में झोंके जाने से ज्यादा किसी और लायक नहीं। इस दुष्चक्र को खत्म करो। कुछ नया गढ़ने की शुरूआत आज से ही करो। याद रखना तुम सिर्फ संक्रमण के शिकार हो। बस इस संक्रमण को दूर करना है। मूल रूप से बिहार का कोई भी नागरिक जातिवादी नहीं। अगर ऐसा होता तो वह समाज और देश के लिए हर युग में क्रांति की मशाल लेकर कुर्बानी देने नहीं निकल पड़ता। इसका ऐतिहासिक सबूत है कर्नाटक के जॉर्ज फर्नाडीज का बिहार से बार-बार चुनकर संसद पहुंचना।
याद रखना क्रांति का शक्तिपीठ है बिहार। जिसने हर युग में अंधकार के खिलाफ प्रकाश का शंखनाद किया। कभी सशस्त्र तो कभी वैचारिक। कभी बलिदानी तो कभी सर्व समावेशी। कभी अपूर्ण तो कभी संपूर्ण। घनानंद के अराजक राज को चाणक्य की चुनौती से लेकर चौसा की जंग तक। वर्ष 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से लेकर चंपारण सत्याग्रह तक। विनोबा के भूदान आंदोलन और 1975 की संपूर्ण क्रांति तक, व्यवस्था परिवर्तन के लगभग हर आंदोलन की तुम धुरी रहे। अब वक्त आ गया है जब जातिवाद की नफरती सोच के खिलाफ आंदोलन करो। जैसे धर्म व्यक्ति का निजी मसला है वैसे ही जाति का मामला भी निजता के दायरे में रहे।