ना तो लता मंगेशकर और न ही वीर सावरकर इस चुनाव के राजनीतिक मुद्दे हैं
8 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने संसद में कांग्रेस पार्टी (Congress Party) पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का आरोप लगाया
बिक्रम वोहरा
8 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने संसद में कांग्रेस पार्टी (Congress Party) पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का आरोप लगाया. मोदी राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई बहस का जवाब दे रहे थे. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान में कहा कि वह सभी को याद दिलाना चाहते हैं कि कैसे कांग्रेस-सरकार ने वीर सावरकर पर एक कविता पढ़ने पर लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) के भाई को ऑल इंडिया रेडियो से बर्खास्त कर दिया था.
पीएम मोदी ने सदन में कहा, "मैं उन लोगों के इतिहास का खुलासा कर रहा हूं जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करते हैं. लता मंगेशकर का परिवार गोवा से है. लेकिन देश को पता होना चाहिए कि कांग्रेस ने उनके परिवार के साथ कैसा व्यवहार किया. उनके छोटे भाई हृदयनाथ मंगेशकर को ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था. उनका दोष बस इतना था कि उन्होंने वीर सावरकर की देशभक्ति पर एक कविता प्रस्तुत की थी." शिवसेना सांसद संजय राउत ने पीएम पर पलटवार करते हुए कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि हृदयनाथ को ऑल इंडिया रेडियो से बर्खास्त किया गया था.
क्या तला मंगेशकर के भाई हृदयनाथ को ऑल इंडिया रेडियो से बर्खास्त किया गया था?
स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन को अभी एक हफ्ता भी नहीं हुआ है. इसके बावजूद, प्रधानमंत्री ने इसे जायज़ समझा कि इतिहास में दबी बातों को उभारा जाए और एक कमजोर कड़ी निकाल कर कांग्रेस को इस बात के लिए लताड़ा जाए कि उसने लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ मंगेशकर को आजादी पर वीर सावरकर की कविता पढ़ने के कारण ऑल इंडिया रेडियो से बर्खास्त कर दिया था. वाकई? सत्तर साल पुरानी इस कहानी को आसानी से खारिज किया जा सकता है क्योंकि यह कविता, शिवसेना सांसद संजय राउत के मुताबिक, वर्षों से आकाशवाणी पर लगातार सुनाई जाती रही है. इसके अलावा इस बात का क्या सबूत है कि लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ को ऑल इंडिया रेडियो से बर्खास्त किया गया था?
अगर केवल तर्क-वितर्क के लिए एक बार मान भी लेते हैं कि पचास के दशक में चीजें ठीक उसी तरह घटीं जैसा कि प्रधानमंत्री ने अपने बयान में बताया. किशोर हृदयनाथ ने सावरकर की कविता सुनाई और उन्हें बर्खास्त कर दिया गया. इस सत्तर साल में हम में से लाखों को बर्खास्त किया गया, किनारे किया गया, बाहर का दरवाजा दिखाया गया, कई लोगों को नौकरी से निकाल बाहर किया गया. तो यह कौन सी बड़ी बात हो गई? इसके अलावा यह भी बड़ा अजीब लगता है कि कांग्रेस पार्टी ऑल इंडियो रेडियो के एक कर्मचारी को निकालने में इतनी ज़्यादा सक्रिय थी कि अब इस बात का मुद्दा बना दिया जाए.
इस बयान की टाइमिंग से और एक सेलिब्रिटी की मौत को भुनाने की बात से लोग आहत हैं. फिर अचानक लता मंगेशकर को गोवा की बेटी बता दिया गया. यह वो तथ्य है जिस पर शायद ही पहले कभी चर्चा हुई हो. गोवा के वोटरों की भावुकता से खेलते हुए मतदान से सिर्फ 72 घंटे पहले इस मुद्दे को उठाना और भी अरुचिकर हो जाता है. प्रधानमंत्री के पूरे बयान का मतलब इतना ही था कि देखिए गोवा की बेटी के भाई को कांग्रेस ने ऑल इंडिया रेडियो से बाहर कर दिया. ऐसे में कांग्रेस के लिए नहीं, बीजेपी के लिए वोट करें. अगर साफ-साफ कहा जाए तो इस बयान की टाइमिंग बिल्कुल ही सही नहीं है. क्या हम राजनीति में इतने गिर चुके हैं? क्या हमारे नेता अब सियासी फायदे और दूसरों पर कीचड़ उछालने के लिए ऐसे मुद्दे भी सामने लेकर आ रहे हैं जिनकी अब आम जनता के बीच कोई प्रासंगिकता नहीं बची है.
ना तो लता मंगेशकर और न ही वीर सावरकर इस चुनाव के राजनीतिक मुद्दे हैं
मगर गोवा के लोगों की भावनाएं भड़काने की कमजोर कोशिश से ज्यादा यह उनकी अक्ल को कमतर आंकने की मिसाल है. क्योंकि बयान देते वक्त यह माना गया कि इससे लोग विपक्ष से दूर चले जाएंगे और जमकर बीजेपी के लिए वोट करेंगे. क्योंकि गोवा के लोगों को याद दिलाया जा रहा है कि देखो तुम्हारे हृदयनाथ मंगेशकर को 1963 में वीर सावरकर की एक कविता पढ़ने के कारण नौकरी गंवानी पड़ी. और इस चक्कर में लोग वह बात भूल जाएं जो संजय राउत हमें याद दिला रहे हैं कि ये कविता आज भी ऑल इंडिया रेडियो पर चलाई जाती है.
गोवा में एक अखबार चलाने के अनुभव के कारण मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह बात अच्छी तरह से पता है कि वहां के लोग इस तरह के रवैये को बिलकुल पसंद नहीं करते. हमने बगैर सोचे समझे उन्हें एक ऐसे समाज की तरह दर्शाया है जहां दोपहर की नींद के वक्त को छोड़कर हर समय लोग पार्टी और शराब के नशे में डूबे रहते हैं, जिंदगी के प्रति उनका रवैया आलस से भरा है. इसी सोच की वजह से हमें लगता है कि हमेशा नाचते-गाते रहने वाले ये लोग कमअक्ल होते हैं. इसलिए, भारत के प्रधानमंत्री तक यह सोचते हैं कि हृदयनाथ मंगेशकर वाला यह वाकया चुनाव के नतीजे पर असर डालेगा.
आइये इसे एक परिप्रेक्ष्य में रखें. मैं यहां एक जोखिम ले सकता हूं. चाहे गोवा हो या कोई दूसरा राज्य, ऐसी किसी भी बात से लोगों का मन बदलने वाला नहीं है जो सात दशक पहले हुई हो (यदि ऐसी घटना सच में हुई भी हो तो) और उनके दैनिक जीवन से उसका कोई संबंध नहीं रहा हो. इसके अलावा, कोई इतना भोला भी नहीं है कि यह विश्वास करे कि मतदान से महज तीन दिन पहले ये कहानी बगैर किसी इरादे के सामने लाई गई है. तीसरी बात यह है कि न तो लता मंगेशकर और न ही वीर सावरकर इस चुनाव के राजनीतिक मुद्दे हैं. सबसे अधिक हैरानी की बात यह है कि किसी ने इतिहास के पन्ने से इस मुद्दे को खोज कर निकाला और प्रधानमंत्री को थमा दिया. अब अगर प्रधानमंत्री ने खुद ये जानकारी हासिल की हो, तब तो ये और भी चिंता की बात है. मुझे लगता है कि लता मंगेशकर के निधन के तुरंत बाद इस निरर्थक मुद्दे को उठाना गोवा के लोगों के साथ एक भद्दा मजाक है. बीजेपी सात साल से अधिक समय से वहां सत्ता में है. इस दौरान उसने हृदयनाथ के लिए पहले कभी आंसू नहीं बहाए.