जलीय खाद्य की जरूरत

मनुष्य के लिए भोजन एक सबसे महत्वपूर्ण विषय है। भोजन के लिए लोग न जाने क्या-क्या करते हैं

Update: 2021-09-19 17:36 GMT

मनुष्य के लिए भोजन एक सबसे महत्वपूर्ण विषय है। भोजन के लिए लोग न जाने क्या-क्या करते हैं और न जाने कहां से कहां तक चले जाते हैं। फिर भी हमारी दुनिया की एक बड़ी सच्चाई है कि रोज लगभग 70 करोड़ लोग भूखे रह जाते हैं, जिनमें से करीब 25 करोड़ लोग भुखमरी जैसी स्थिति में रहने को मजबूर हैं। दुनिया में बहुत प्रयासों के बावजूद खाद्य असुरक्षा की समस्या बढ़ती चली जा रही है। जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक बारिश या कम बारिश के कारण भी सामान्य खाद्यान्न उत्पादन पर गहरा असर पड़ रहा है। दुनिया में एक बड़े इलाके में स्थायी रूप से खेती प्रभावित होने लगी है। लोग खेती छोड़कर दूसरे व्यवसायों में लगने को मजबूर हो रहे हैं और खेती करने वालों की संख्या घट रही है। कृषि उत्पादों की कीमत बढ़ रही है और लगे हाथ मंदी का दौर भी चल ही रहा है। तो कुल मिलाकर दुनिया में यह एक बड़ी चिंता है कि आने वाले समय में वंचितों या भूखे लोगों का पेट कैसे भरा जाएगा? ऐसे में, ब्ल्यू फूड की चर्चा दिनों दिन तेज होती जा रही है। ब्ल्यू फूड मतलब जलीय खाद्य पदार्थ।

इसमें कोई शक नहीं कि हमें पानी से मिलने वाले खाद्य पदार्थों के बारे में पूरी जानकारी है, लेकिन हमने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि जलीय खाद्य पदार्थ क्षेत्र में कितनी संभावना है। खाद्य आपूर्ति की हमारी योजनाओं में थल भाग या खेतों-वनों में पैदा होने वाले उत्पादों की ही बहुलता होती है। ये ब्ल्यू फूड कई खाद्य प्रणालियों का महत्वपूर्ण घटक हैं, फिर भी खाद्य नीति बनाते समय इन पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। हमें अपनी खाद्य नीति में जलीय खाद्य पदार्थों को भी शामिल करके खाद्य सुरक्षा का विस्तार करना चाहिए। भारत में ओडिशा या दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में दोपहर के भोजन में ब्ल्यू फूड के ही एक प्रकार मछली का उपयोग शुरू हो रहा है, लेकिन इस कार्य को बड़े पैमाने पर उन तमाम क्षेत्रों में तो किया ही जा सकता है, जहां जलीय खाद्य पदार्थों की प्रचुर उपलब्धता है। जलीय खाद्य पदार्थ, मीठे पानी और समुद्री परिवेश से प्राप्त पशु, पौधे और शैवाल दुनिया में 3.2 अरब से भी अधिक लोगों को प्रोटीन की आपूर्ति करते हैं। दुनिया के कई तटीय, ग्रामीण समुदायों में यह पोषण का मुख्य आधार है। यह बात भी छिपी नहीं है कि जलक्षेत्र 80 करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका का आधार है। लेकिन इतना विशाल क्षेत्र होने के बावजूद दुनिया में लोग भूखे सोने को मजबूर हैं। पोषण का बड़ा अभाव है। हमें जमीन आधारित खाद्य प्रणालियों की सीमा और उसके खतरों को भी समझना चाहिए। गौर कीजिए, ये खाद्य प्रणालियां संपूर्ण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में एक चौथाई के लिए जिम्मेदार हैं। अत: जलीय खाद्यों को बढ़ावा देने के बारे में हमें गंभीरता से सोचना चाहिए। यह पौष्टिक और टिकाऊ आधार है। जिन देशों में जलीय खाद्य की संभावना ज्यादा है, उन देशों को अपने यहां भोजन स्रोत में परिवर्तन पहले करना चाहिए। इस दिशा में प्रयास तेज होने चाहिए। स्टॉकहोम रेजिलिएंस सेंटर और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के बीच साझेदारी में 100 शोधकर्ता इस पर काम कर रहे हैं, तो आशा है कि आने वाले दिनों में दुनिया में इसका फायदा दिखना चाहिए। एक सभ्य दुनिया में भोजन से जुड़े नैतिक दबावों के बजाय ज्यादा जरूरी यह है कि किसी भी इंसान को भूखे न सोना पड़े।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान 

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