एहतियात की जरूरत

कोविड का प्रकोप कुछ ठंडा पड़ने लगा, तो बहुत सारे लोगों ने मान लिया कि अब महामारी से मुक्ति मिल गई है। सरकार ने भी कोविड संबंधी ज्यादातर सख्त नियम हटा दिए हैं।

Update: 2022-04-11 04:19 GMT

Written by जनसत्ता; कोविड का प्रकोप कुछ ठंडा पड़ने लगा, तो बहुत सारे लोगों ने मान लिया कि अब महामारी से मुक्ति मिल गई है। सरकार ने भी कोविड संबंधी ज्यादातर सख्त नियम हटा दिए हैं। मगर इसी बीच फिर से कोविड का नया बहुरूप प्रकट हो गया है। कई देशों में यह तेजी से फैल रहा है और खतरनाक भी माना जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इसे लेकर चिंता जताई और सतर्क रहने को कहा है। उनका कहना है कि हर चार महीने पर कोरोना विषाणु का स्वरूप बदल रहा है, इसलिए किसी भी प्रकार की ढिलाई ठीक नहीं। टीकाकरण अभियान में तेजी लाना ही इसका कारगर उपाय है।

ऐसे में हमारे यहां अब इसे लेकर एहतियात बरतने पर जोर बढ़ रहा है। कई राज्यों को सतर्क रहने को कह दिया गया है। इसी क्रम में अब अठारह साल से ऊपर आयु के लोगों के लिए भी एहतियाती खुराक की शुरुआत कर दी गई है। अभी तक अगली धार पर काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों और दूसरे कर्मचारियों और साठ साल से ऊपर के लोगों को इसे लगाया जा रहा था। अब तक करीब दो करोड़ चालीस लाख लोग एहतियाती खुराक ले भी चुके हैं। पर अब स्वाथ्य मंत्रालय ने निजी अस्पतालों में छह सौ रुपए का भुगतान कर कोविशील्ड की अतिरिक्त खुराक लगवाने की मंजूरी दे दी है। अब अठारह साल से ऊपर के लोग भी एहतियाती खुराक ले सकेंगे।

हमारे यहां टीकाकरण में काफी तेजी आई है और देश की अधिकतर आबादी को दोनों खुराक लग चुकी है। खुद स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक तिरासी करोड़ से अधिक यानी साठ फीसद से ऊपर लोगों का टीकाकरण पूरा हो चुका है। करीब बहत्तर फीसद लोगों को पहली खुराक दी जा चुकी है। फिलहाल पंद्रह साल से ऊपर के लोगों का टीकाकरण चल रहा है, उसमें भी कम से कम छियानबे फीसद लोगों को पहली खुराक दी जा चुकी है।

इस तरह अब पहले की तरह टीके के उत्पादन और उसे लगाने को लेकर अधिक मारामारी नहीं है। एहतियाती खुराक के लिए बहुत भीड़भाड़ का भय नहीं है। एहतियाती खुराक उन्हीं लोगों को लगाई जानी है, जिन्हें टीके की दूसरी खुराक लिए नौ महीने से अधिक हो चुके हैं। इसलिए इसकी व्यवस्था केवल निजी अस्पतालों को सौंपने और भुगतान करके लगवाने की शर्त कई लोगों को खटक रही है। जब दो खुराक मुफ्त दिए गए, तो एहतियाती खुराक के बारे में भी वही निर्णय लागू रखने में हिचक क्यों होनी चाहिए।

हमारे देश की बहुसंख्य आबादी गरीब है। स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में वह सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों पर निर्भर है। खुद सरकार बार-बार दोहराती रही है कि देश की करीब अस्सी करोड़ आबादी को मुफ्त सरकारी राशन पर निर्भर रहना पड़ रहा है। फिर इतनी बड़ी आबादी से छह सौ रुपए का भुगतान कर एहतियाती खुराक लगवाने की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है।

उनके अलावा भी बड़ी आबादी ऐसी है, जिन्हें परिवार के हर सदस्यपर छह सौ रुपए खर्च करके कोविशील्ड की एहतियाती खुराक लेने के बारे में कई बार सोचना पड़ेगा। ऐसे लोग प्राय: यह खुराक लेने से बचने का प्रयास करेंगे, जो कि कोविड संक्रमण की आशंका को ही बढ़ाएगा। थोड़े से लोग ही होंगे, जो निजी अस्पतालों में इस सुविधा का लाभ ले सकेंगे। इसलिए यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि सरकार एहतियाती खुराक भी सरकारी स्तर पर मुफ्त उपलब्ध कराने की व्यवस्था करे।


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