नवाब मलिक केस में एनसीपी के रुख को 'चोरी ऊपर से सीनाजोरी' मुहावरे से जोड़ सकते हैं
महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक की गिरफ़्तारी पर बवाल ऐसे शुरू हो गया है
महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक (Nawab Malik) की गिरफ़्तारी पर बवाल ऐसे शुरू हो गया है मानो जैसे रूस का उक्रेन पर हमला करना. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) जिसके मलिक वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता हैं, ने इस गिरफ्तारी को राजनीतिक प्रतिशोध कहा है, एनसीपी के सहयोगी दल शिवसेना (Shiv Sena) और कांग्रेस पार्टी ने भी इसकी आलोचना की है, घोषणा की गई कि मलिक मंत्रिमंडल में बने रहेंगे, और साथ में एक धमकी भरा स्वर भी सुनने को मिला है कि इसका जवाब वह 2024 में देंगे. अब महाराष्ट्र की अवसरवादी सत्ताधारी गठबंधन को इतना विश्वास कहां से आ गया कि उन्हें लगने लगा है कि 2024 में देश में उनकी सरकार होगी, यह कहना कठिन है.
2024 के चुनाव में कौन जीतेगा और किसकी सरकार बनेगी इस बारे में ज्योतिषों के सिवा किसी और को फ़िलहाल कुछ नहीं पता. और अगर ज्योतिषों की भविष्यवाणी इतनी अचूक होती तो अभी तक दुनिया का अंत भी हो चुका होता. अभी संभावनाओं का ही जिक्र हो सकता है और मौजूदा परिस्थितियों में सम्भावना यही है कि फ़िलहाल बीजेपी कहीं नहीं जा रही, यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि कुछ समय पहले प्रशांत किशोर ने कहा था.
नवाब मलिक प्रतिशोध के काबिल हैं?
रही बात राजनीतिक प्रतिशोध की तो यह आरोप हास्यास्पद है. मलिक को विवाद और बड़बोलेपन के लिए ही जाना जाता है, इस पर शक है कि महाराष्ट्र से बाहर उन्हें लोग जानते भी हैं. वह एनसीपी के बड़े नेता हो सकते हैं, पर इतने बड़े नेता भी नहीं हैं कि केंद्र सरकार उनसे प्रतिशोध लेना चाहती है. उनकी गिरफ़्तारी से बीजेपी को उत्तर प्रदेश और मणिपुर में, जहां विधानसभा चुनाव अभी ख़त्म नहीं हुआ है, ना तो कुछ फायदा होगा ना ही नुकसान. अगर बीजेपी को प्रतिशोध ही लेना होता तो केंद्र सरकार या तो ठाकरे परिवार को या फिर पवार परिवार को टारगेट करती, क्योंकि उनके ही कारण बीजेपी महाराष्ट्र में सत्ता से बाहर है, मलिक को क्यों? इसका जवाब तो शायद एनसीपी के पास भी नहीं होगा.
एनसीपी के सर्वोच्च नेता शरद पवार ने भी गुस्से में कुछ ऐसा कह डाला कि उसे तथ्यों से परखना लाजिमी बन जाता है. पवार ने कहा कि 90 के दशक में उनपर भी इसी तरह के गलत आरोप लगे थे और उन्हें राजनीतिक कारणों से परेशान किया गया था. यह जानना भी जरूरी है कि पवार चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, कभी भी पूरे पांच वर्षों तक पद पर नहीं बने रहे और कुल 6 वर्ष 21 दिनों तक ही मुख्यंत्री पद पर रहे. महाराष्ट्र के इतिहास में पवार के नाम ही चार बार मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड है. जब भी कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें पद से हटाया तो उसका सबसे बड़ा कारण था उनपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, खासकर बिल्डर माफिया से उनकी सांठ-गांठ. यूं हीं नहीं पवार एक धनाढ्य राजनेता बन गए.
शरद पवार के दो करीबी, मंत्री बनते ही जेल गए
एक नज़र डालते हैं कि महाराष्ट्र में और देश में 1990 के दशक में किसकी सरकार थी. 1988 से 1991 तक पवार मुख्यमंत्री थे, फिर कांग्रेस पार्टी ने उन्हें हटा कर सुधाकर राव नायक को मुख्यमंत्री बनाया और 1993 में पवार की मुख्यमंत्री पद पर वापसी हुई. उनके कुशल नेतृत्व में ही 1995 के विधानसभा में कांग्रेस पार्टी हारी और पहली बार महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी की सरकार बनी थी जिसमे मुख्यमंत्री पद शिवसेना के पास था.
वहीं 1991 में कांग्रेस पार्टी की केंद्र में वापसी हुई और पी.वी. नरसिम्हा राव 1991 से 1996 तक प्रधानमंत्री थे. 1996 में 13 दिनों के लिए बीजेपी की सरकार बनी थी फिर कांग्रेस पार्टी के समर्थन से संयुक्त मोर्चा की सरकार चली. अब पवार को किसने 1990 के दशक में परेशान किया था, क्या कांग्रेस पार्टी ने या बीजेपी ने? अगर कांग्रेस पार्टी को वह दोषी मानते हैं तो फिर वह 1998 तक कांग्रेस पार्टी में क्यों बने रहे और 2004 से 2014 तक वह कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के मंत्री क्यों रहे? आज भी वह क्यों काग्रेस पार्टी से चिपके पड़े हैं, यह उन्हें ही यह बेहतर पता होगा. और अगर उन्हें परेशान राज्य सरकार कर रही थी तो उसमें 1995 से 1999 तक मुख्यमंत्री शिवसेना के थे. वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पिता बाल ठाकरे फैसला करते थे कि कौन किस पद पर पर रहेगा. पहले उन्होंने मनोहर जोशी को मुख्यमंत्री बनाया और बाद में उन्हें हटा कर नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाया. अगर मिथ्या आरोप में शिवसेना के मुख्यमंत्री उन्हें परेशान कर रहे थे तो उन्हें शिवसेना से प्रतिशोध लेना चाहिए था, ना कि शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को को मुख्यमंत्री बनाना था.
एनसीपी और खास कर पवार के लिए यह बड़े शर्म की बात हैं कि उनके दो करीबी जिन्हें उन्होंने मंत्री बनाया था, अब जेल में हैं. पहले गृहमंत्री अनिल देशमुख और अब नवाब मलिक की गिरफ़्तारी, दोनों पर भ्रष्टाचार का आरोप. यह महज इत्तेफाक नहीं हो सकता, ना ही राजनीतिक प्रतिशोध की दृष्टि से लिया गया कदम. नवाब मलिक पर मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग का आरोप लगा है. कहा जा रहा है कि मलिक दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर के करीबी थे. हसीना पारकर पर आरोप था कि वह वह अपने भाई का काम मुंबई में संभालती थीं. अंडरवर्ल्ड की आय का एक प्रमुख श्रोत होता है विवादित प्रॉपर्टी में डीलिंग. ऐसे ही एक विवादित्त प्रॉपर्टी का हसीना पारकर ने भी निपटारा किया था जिसके एवज में उस बिल्डिग का एक हिस्सा उन्हें मिला, जिसे बाद में नवाब मलिक ने खरीद लिया. मलिक का दावा है कि उस खरीद फरोख्त का उनके पास दस्तावेज है और उसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं था.
ईडी पर आरोप लगाना आपत्तिजनक और निंदनीय है
चलिए एक बार को उनकी दलील मान भी लेते हैं. पर जब कोई व्यक्ति प्रॉपर्टी खरीदता है तो सबसे पहले उसके दस्तावेज़ की जांच-परख करता है, वह प्रॉपर्टी किसकी है इस बारे में भी खबर लेता ही है. ठीक है कि एक बार आपने प्रॉपर्टी खरीद ली और वह पैसा कहां गया और किस मद में इस्तेमाल हुआ, इसकी खोजखबर खरीददार नहीं रखता. इस लिए नवाब मलिक को शायद पता नहीं है कि जो पैसे उन्होंने हसीना पारकर को दिया वह दाऊद इब्राहिम के पास चला गया या उसे भारत में आंतकवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया गया, इसकी जानकारी उन्हें नहीं हो सकती. पर क्या उन्हें यह भी नहीं पता था कि हसीना पारकर किसकी बहन हैं और और वह स्वयं अंडरवर्ल्ड की सरगना बन चुकी थीं?
एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट एक केंद्रीय जांच संस्था है जिसकी एक अहम भूमिका होती है, खासकर गैरकानूनी तरीके से विदेश में पैसा भेजने या विदेश से गैरकानूनी तरीके से पैसा आने पर, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग भी कहा जाता है. अगर एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट तत्पर नहीं होती तो आतंकियों को विदेशों से खुलेमाम पैसा मिलता रहता और भारत में अराजकता की स्थिति होती. ऐसे संस्था के खिलाफ यह आरोप लगाना कि उसने राजनीतिक कारणों से प्रेरित हो कर नवाब मलिक को गिरफ्तार किया है, आपत्तिजनक और निंदनीय है.
सही अर्थों में निंदनीय तो पवार हैं जो अनिल देशमुख और नवाब मलिक जैसे नायब नगीने ढूंढ कर लाते हैं और उन्हें मंत्री बना देते हैं. वह भ्रष्टाचार करते रहे और उन्हें कोई टोके नहीं तो ठीक, पर उनपर कार्रवाई हुई तो फिर राजनीतिक प्रतिशोध. ऐसा क्यों? इन सवालों का जवाब तो दूध के धुले और ईमानदारी के प्रतीक शरद पवार ही दे सकते हैं, और कोई नहीं. इसका जवाब देने की उम्मीद उद्धव ठाकरे से नहीं की जाती, क्योंकि उन्हें तो मुख्यमंत्री पद से मलतब है, राज्य और देश से उन्हें क्या लेना देना? रही एनसीपी की बात तो इसे ही शायद कहते हैं चोरी भी और सीनाजोरी भी!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)