अत: हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने के लिए बुद्धिजीवी समाज, सुधारक, विचारक गत शताब्दियों से संघर्षशील रहे हैं। राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार में सक्रिय योगदान देने वालों में पंडित मदनमोहन मालवीय, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय, विपिनचन्द्र पाल, राजा राम मोहन राय, महात्मा गांधी, डा. राजेंद्र प्रसाद, काका कालेलकर, पुरुषोत्तम दास टंडन, सेठ गोबिंद दास आदि का नाम आदर से लिया जाता है। किसी भी भाषा को राजभाषा बनने के लिए उसमें सर्व व्यापकता, प्रचुर साहित्य रचना, बनावट की दृष्टि से सरल और वैज्ञानिकता एवं सब प्रकार के भावों को प्रकट करने की सामथ्र्य आदि गुण अनिवार्य होते हैं। इन सब विशेषताओं को ध्यान में रखकर 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 1635 भाषाएं हैं जो 10000 की जनसंख्या द्वारा बोली जाती हैं जो दो भाषा परिवारों भारतीय आर्य भाषा समूह और द्रविड़ भाषा समूह के अंतर्गत आती हैं। अब देशव्यापी इलेक्ट्रानिक मीडिया के विस्तार से हिंदी की लोकप्रियता में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है।
यूटीएफ और एनकोडिंग के प्रयोग से हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाएं आसानी से इंटरनेट पर प्रयोग में लाई जा रही हैं। युवा वर्ग हिंदी को नए कलेवर में ब्लॉग, फेसबुक, ट्विटर पर प्रयोग कर रहा है। परंतु यहां पर भाषा में एक अलग सा बदलाव भी देखने को मिल रहा है जो व्हाट्सएप हिंदी के रूप में पनप रहा है। उदाहरण के लिए 'काजल सुंदर लड़की है को अंगे्रजी वर्णमाला में लिखने का प्रचलन बढ़ रहा है। या फिर बोलचाल में आई विकृति भी विचारणीय है कि 'देखो स्काई में बर्ड फ्लाई कर रहा है। भाषा में इस तरह की मिलावट हिंदी और अंग्रेजी दोनों की ही गरिमा को धक्का है। वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर हिंदी को एक प्रकार से मान्यता प्राप्त हो चुकी है। अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी के पठन-पाठन तथा अनुसंधान की व्यवस्था है। विश्व में एक सौ से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। पूरे विश्व में लगभग 70 करोड़ हिंदी भाषी लोग हैं। विश्व पटल पर सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी को तीसरा स्थान प्राप्त है। अंग्रेजी भाषा सार्वभौमिक रूप से सर्वमान्य एक अंतरराष्ट्रीय भाषा है एवं उसका अपना कार्य क्षेत्र है। वहीं क्षेत्रीय भाषाओं, बोलियों की भी अपनी महत्ता है। किंतु एक राष्ट्रभाषा के रूप में पूर्ण रूप से सक्षम हिंदी के अतिरिक्त हमारे पास और क्या विकल्प है? हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा न मिलना चिंता का विषय है।
प्रियंवदा, लेखिका सुंदरनगर से हैं